भ्रष्टाचार से हार गये लोकायुक्त

भ्रष्टाचार से हार गये लोकायुक्त

नई दिल्ली। गोवा में पूर्व न्यायाधीश लोकायुक्त प्रफुल्ल कुमार मिश्र अर्थात् पीके मिश्र ने भ्रष्टाचार से हार मान ली और सरकार पर कई आरोप लगाए हैं। गोवा के दूसरे लोकायुक्त के रूप में शपथ लेने वाले पीके मिश्र ने कभी कहा था कि भ्रष्टाचार संभवतः मानव जाति की शुरुआत के समय से ही है और जब तक लोग खुद में बदलाव नहीं लाते तब तक इसे खत्म करना बेहद कठिन है। पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पीके मिश्र ने राज्यपाल मृदुला सिन्हा से शपथ ग्रहण करते हुए कहा था कि किसी भी जगह से भ्रष्टाचार को पूरी तरह खत्म करना बेहद कठिन है। भ्रष्टाचार केवल भारत में ही नहीं सभी देशों में है। मौजूदा परिस्थितियों में देश में हर जगह लोकायुक्त की जरूरत है। यह बेहद महत्वपूर्ण काम है। दुर्भाग्य की बात है कि गोवा के लोकायुक्त उसी भ्रष्टाचार से पराजित होकर अपने पद से विदा हो गये हैं।

गोवा के लोकायुक्त रहे रिटायर्ड जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा राज्य सरकार पर जमकर बरसे। उनका कार्यकाल खत्म हुआ और उन्होंने अपना सरकारी आवास खाली कर दिया। इससे पहले उन्होंने अपनी नाराजगी और दुख जाहिर किया। प्रफुल्ल कुमार ने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान आई शिकायतों पर जांच की और 21 पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार को रिपोर्ट दीं लेकिन एक भी रिपोर्ट पर सरकार ने ऐक्शन नहीं लिया। नाराजगी जाहिर करते हुए प्रफुल्ल कुमार ने कहा कि सरकार को लोकायुक्त संस्था खत्म कर देनी चाहिए। इसमें सिर्फ जनता के धन का दुरुपयोग हो रहा है। लोकायुक्त जांच रिपोर्ट देते हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। उनकी रिपोर्ट्स को कूड़े की तरह डंप कर दिया जाता है। जब ऐसा ही करना होता है तो इस पद का कोई महत्व नहीं है। इसे खत्म कर देना चाहिए।

लगभग 73 साल के प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने बताया कि उन्होंने 18 मार्च 2016 को गोवा के लोकायुक्त का पद ग्रहण किया था। उनका कार्यकाल 16 सितंबर 2020 को खत्म हो गया। उन्होंने अपना सरकारी आवास भी खाली कर दिया है लेकिन वह सरकार की कार्यप्रणाली से बहुत दुखी हैं। पूर्व लोकायुक्त ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें 191 शिकायतें मिलीं। इन 191 शिकायतों में से उन्होंने 133 का निस्तारण किया। 21 मामलों में शासन को रिपोर्ट्स भेजीं। इन रिपोर्ट्स में कार्रवाई की सिफारिश की गई थी, जिसमें विधायकों से लेकर एक पूर्व मुख्यमंत्री का नाम भी शामिल था। रिपोर्ट्स भेजने के बाद वह कार्रवाई का इंतजार करते रहे लेकिन कोई ऐक्शन नहीं लिया गया।

पूर्व लोकायुक्त प्रफुल्ल कुमार ने बताया कि मौजूदा गोवा के लोकायुक्त ऐक्ट में बहुत सारी कमियां हैं। लोकायुक्त के पास अभियोग की पावर नहीं है जबकि कर्नाटक और केरल का लोकायुक्त ऐक्ट बहुत प्रबल है। वहां लोकायुक्तों के पास अभियोग की शक्तियां हैं। यहां तक कि इन राज्यों में लोकायुक्त को अवमानना तक का अधिकार है। वह सिर्फ रिपोर्ट भेजने तक सीमित थे। उनके हाथ बंधे थे कार्रवाई नहीं कर सकते थे।

लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत राज्यों के लिए लोकायुक्त की व्यवस्था की गई थी। लोकायुक्त की तैनाती का मकसद सरकारी अधिकारियों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करना है, मगर अब इस व्यवस्था को ही खत्म करने की मांग उठ रही है. यह मांग भी गोवा में करीब साढ़े 4 साल तक लोकायुक्त रहे रिटायर्ड जस्टिस पीके मिश्रा ने की है. इतना ही नहीं, सरकार के रवैये से खफा रिटायर्ड जस्टिस पीके मिश्रा ने 6 अक्टूबर को गोवा ही छोड़ दिया। पूर्व लोकयुक्त का गोवा से मोहभंग होने का कारण राज्य सरकार का रवैया ही है. रिटायर्ड जस्टिस पीके मिश्रा का आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में कई अधिकारी और नेताओं के खिलाफ सरकार को 21 रिपोर्ट सौंपी थीं. मगर गोवा सरकार ने उनकी एक भी रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, पीके मिश्रा का कहना है, अगर गोवा में लोकायुक्त के रूप में शिकायतों से निपटने के अनुभव के बारे में पूछा जाए तो मैं सिर्फ यही कहूंगा कि लोकायुक्त की संस्था को समाप्त कर देना चाहिए।

अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, रिटायर्ड जस्टिस ने कहा कि उन्होंने जिन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दी, उनमें पूर्व सीएम और एक वर्तमान विधायक भी शामिल हैं. पीके मिश्रा ने कहा, जनता के पैसे को बिना मतलब खर्च किया जा रहा है. अगर लोकायुक्त अधिनियम को इतनी ताकत के साथ कूड़ेदान में डाला जा रहा है तो लोकायुक्त को खत्म ही कर देना बेहतर है।

लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत केन्द्र के लिए लोकपाल और राज्यों के लिए लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की गयी है। ये संस्थाएं बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं। इनके गठन में राज्य सरकारें मनमर्जी से प्रावधान तय कर देती हैं और लोकायुक्त की सिफारिशों की भरपूर अनदेखी की जाती है। गोवा के लोकायुक्त पीके मिश्रा ने भी इसी तरह की शिकायतें की हैं। इससे पूर्व कर्नाटक में जब बी एस येदियुरप्पा की सरकार हुआ करती थी, तब पूर्व न्यायधीश संतोष हेगड़े लोकायुक्त थे और उन्होंने येदियुरप्पा के कुछ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के चार्ज लगाकर उन्हें हटाने की सिफारिश कर दी। मुख्यमंत्री ने उनकी सिफारिश नहीं मानी। इसके चलते जस्टिस संतोष हेगड़े नेइस्तीफा दे दिया। इसे लेकर राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था और भाजपा नेतृत्व को बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना पड़ा था। लोकायुक्त के साथ कई राज्यों में सरकार की अनबन रही है।

गोवा में जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्र को भी मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और उनकी सरकार से शिकायत है। लोकायुक्त मिश्र इसीलिए कहते है कि राज्य के मौजूदा अधिनियम में कई कार्मियां है। लोकायुक्त को अभियोग की शक्तियां दी जानी चाहिए। जस्टिस मिश्र कहते हैं कि मेरी किसी रिपोर्ट पर सुनवाई नहीं हुई। मेरे पास खुद के आदेशों की तामील कराने की शक्तियां नहीं थी। सेवानिवृत्त लोकायुक्त की इन शिकायतों पर गौर करना चाहिए।

ध्यान रहे कि लोकपाल या लोकायुक्त अनुचित शासन, अनुचित लाभ पहुंचाने या भ्रष्टाचार से संबन्धित किसी मंत्री या केन्द्र या राज्य सरकार के सचिव के द्वारा की गयी कार्यवाही से पीड़ित व्यक्ति द्वारा लिखित शिकायत करने पर अथवा स्वतः से ज्ञान लेते हुए जांच प्रक्रिया शुरू कर सकता है लेकिन न्यायिक कोर्ट के निर्णय के संबंध में किसी प्रकार की जांच नहीं की जा सकती। गोवा के लोकपाल के पास तो अपना दफ्तर भी नहीं है, किराए के भवन में काम हो रहा है। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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