पहाड़ की तस्वीर व तकदीर में बदलाव

पहाड़ की तस्वीर व तकदीर में बदलाव

नई दिल्ली। पहाड़ की हरियाली दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। इसके चलते जंगली जानवर आबादी की तरफ आ जाते हैं। पर्यावरण की विशुद्धता के लिए पृथ्वी पर जितना जंगल होना चाहिए, उसका आधा भी नहीं रह गया है। भौतिकता के विकास में प्रकृति का हमने जरूरत से ज्यादा दोहन किया है। दुनिया के कथित विकसित देशों की अपेक्षा भारत में पहाड़ काफी हरे भरे हैं । इसके बावजूद हम पहाड़ों को और हराभरा करके पहाड़ों की तस्वीर बदलना चाहते हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अभी हाल में कहा है कि हम पहाड़ की तस्वीर और तकदीर को बदलना चाहते हैं। पहाड़ों की तकदीर से उनका मतलब वहां से पलायन को रोकना है । गरीब से लेकर अमीर तक ने अपनी जरूरत के हिसाब से पहाड़ छोड़कर कर मैदान में ठिकाना बनाया है। इस समस्या को सुलझाने के लिए मुख्यमंत्री रावत ने सम्पन्न और समृद्ध लोगों से आगे आने को कहा है। इसी फार्मूले को लागू करके उत्तराखंड की तस्वीर व तकदीर बदलने का प्रयास किया जाएगा। यह मार्ग निश्चित रूप से त्याग का है लेकिन ईमानदारी से प्रयास किया गया तो बेहतरीन नतीजे मिलेंगे। कार्य के प्रारंभ से पहले आशंका नहीं उम्मीद की जानी चाहिए।

उत्तराखंड में पलायन हमेशा से ही बड़ा मुद्दा रहा है। फिर चाहे वो युवाओं से खाली होता पहाड़ हो या फिर नेताओं का एक-एक कर मैदान की ओर पलायन करना। अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण से रिवर्स पलायन का मुद्दा छेड़कर एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है। मुख्यमंत्री ने गैरसैंण में कहा कि सबसे पहले जनप्रतिनिधियों को ही रिवर्स पलायन करना होगा। रिवर्स पलायन से ही पहाड़ की तस्वीर और तकदीर बदलेगी। गैरसैंण के सारकोट में जमीन खरीदकर सीएम त्रिवेंद्र ने खुद इसे शेयर भी किया कि वो गैरसैण के भूमिधर बन गए हैं। गैरसैंण को राजधानी बनाने की कवायद पहले से चल रही है अब इसे त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया है। मुख्यमंत्री ने एक तरह से पहाड़ की ओर लौटने की अपील की है। उन्होंने फेसबुक और ट्विटर पर आम जनता से यह जानकारी शेयर की। इसके बाद एक बार फिर पहाड़ छोड़कर मैदान में अपना भविष्य तलाश रहे नेताओं को लेकर बहस शुरू हो गई है। वर्तमान में बीजेपी और कांग्रेस के अधिकांश नेता पहाड़ों से पलायन कर देहरादून, ऊधमसिंहनगर, हल्द्वानी के मैदानी क्षेत्रों में बस गए हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता आरपी रतूड़ी ने मुख्यमंत्री के इस ट्वीट पर देर आएद, दुरूस्त आएद का रिएक्शन दिया। रतूड़ी का कहना है कि बीजेपी सरकार यदि राज्य बनते ही स्थाई राजधानी की घोषणा कर देती तो आज नेता पहाड़ छोड़कर मैदान की ओर नहीं जाते। उन्होंने कहा कि पलायन रोकना है तो सरकार को गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करना चाहिए।

भाजपा के अंदर तो मुख्यमंत्री के इस कदम का स्वागत ही हो रहा है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि जब तक नेता पहाड़ का रुख नहीं करेंगे, वो पहाड़ की पीड़ा को नहीं समझ पाएंगे और जब पहाड़ की पीड़ा नहीं समझ पाएंगे तो फिर विकास कैसे होगा। उन्होंने कहा कि आज कुमांऊ के नेता हल्द्वानी और ऊधमसिंहनगर के मैदानी क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं, तो गढ़वाल से कोटद्वार ओर देहरादून आकर बस रहे हैं। उत्तराखंड में सिर्फ नेता स्थाई तौर पर ही मैदानी क्षेत्रों में आकर नहीं बसे, कई ने तो अपने चुनाव क्षेत्र भी पहाड़ को छोड़ मैदान को बना लिया है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री बच्ची सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, मंत्री हरक सिंह रावत पौड़ी के विधायक खजानदास, सांसद तीरथ सिंह रावत और माला राज्यलक्ष्मी शाह के नाम उल्लेखनीय हैं। रोजी रोजगार की तलाश में पलायन करने वाले युवाओं की संख्या तो चिंता पैदा करने वाली है। कई-कई गांव एकदम खाली हो गये हैं। यहां के युवाओं नेरोजगार की तलाश में पहाड़ क्या छोड़ा, दुबारा लौटकर मुंह ही नहीं देखा। कोरोना वायरस ने काफी उथलपुथल कर दिया है। लगभग दो महीने के लाकडाउन ने मजदूरों और कामगारों को उनके अपने प्रदेश लौटने को मजबूर कर दिया। उत्तराखंड में भी लाखों की संख्या में लोग लौटे हैं। इनका भी रिवर्स पलायन कराया जा सकता है।

मजदूरों के रिवर्स पलायन के लिए मनरेगा जैसी योजनाओं को माध्यम बनाया जा सकता है। चिंता की बात यह है कि पहाड़ के प्रवासी हों या स्थानीय बेरोजगार, मनरेगा की मजदूरी से दूरी बनाने लगे हैं। गांवों में मनरेगा के तहत ना तो इन्हें 100 दिन का काम मिल पा रहा है और ना ही ठीक-ठाक मजदूरी। मजदूर 202 रुपए दिहाड़ी वाले इस सरकारी रोजगार को करने के बजाए उतने ही काम के दोगुने से भी ज्यादा दाम ले रहे हैं।

दरअसल प्रवासियों के रोजगार के लिए सरकार ने मनरेगा योजना को बड़ा हथियार बनाया है लेकिन इस योजना को लेकर पहाड़ में ही सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस ने मनरेगा के बहाने सरकार पर सवाल उठाए हैं। दरअसल कोरोना महामारी की वजह से पिछले कुछ महीनों में लाखों की संख्या में प्रवासी पहाड़ लौटे हैं। सरकार ने इन सभी को मनरेगा के तहत रास्ता, चाल-खाल दीवार, सीसी मार्ग, नहर समेत अन्य काम देने का दावा किया है लेकिन दिक्कत यह है कि घर में चार जॉब कार्ड होने पर 25 ही दिन काम मिल रहा है तो दिहाड़ी भी काफी कम होने से लोग दूसरे स्थानों पर काम के लिए जा रहे हैं। अब कांग्रेस मनरेगा के बहाने सरकार के रोजगार प्लान पर तंज कस रही है।

रोजगार के बाद उत्तराखंड में सबसे अधिक जरूरत स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने की है, बावजूद इसके बजट में आवंटित राशि सरकार की स्वस्थ्य के प्रति सरकार की गंभीरता बताती है। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के रिखणीखाल स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी) का नजारा यह है कि है आवारा पशुओं का अड्डा बन गया है। इस सीएचसी पर इस विकासखंड मुख्यालय के आसपास के 79 गांव निर्भर हैं। पलायन के बावजूद फिलहाल इन गांवों में करीब 17 हजार लोग रह रहे हैं। सीएचसी में कुल 3 डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट, दो स्टाफ नर्स और सफाई कर्मचारी नियुक्त हैं।

किसी समय राज्य की लाइफ लाइन कही जाने वाली 108 आपातकालीन सेवा को लेकर भी दावा किया गया है कि यह सेवा बेहतर हुई है और इसमें 139 नई एंबुलेंस शामिल की गई हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह सेवा अब बेहद लचर हालत में है और इस पहाड़से लोगों का विश्वास उठ गया है।

अब मुख्यमंत्री और दूसरे नेता गैरसैण में अपना मकान बनाने की बात कह रहे हैं। यह प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी है तो यहां शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहतर होंगी। गैरसैंण को भी बेंगलुरू और हैदराबाद जैसा तकनीकी शिक्षा में उन्नत शहर बनाया जा सकता है। विकास की यह रफ्तार धीरे-धीरे अन्य शहरों व गांवों तक पहुंचाई जा सकती है। इससे पलायन रुकेगा और जो पलायन कर चुके हैं, उनका रिवर्स पलायन हो सकता है। यही तरीका है जिससे पहाड की तस्वीर और तकदीर बदल सकती है।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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