UP के दो नौजवान क्या कर पायेंगे सत्ता पाने की मंजिल की नैय्या पार?

UP के दो नौजवान क्या कर पायेंगे सत्ता पाने की मंजिल की नैय्या पार?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सियासत की गाड़ियां पूरब से लेकर पश्चिम तक स्टार्ट हो चुकी है। गांव और शहर की गली कूचों से लेकर चाय-पानी की दुकानों एवं गांव की चौपालों पर चुनावी चर्चा जोरों पर चल रही है। प्रत्येक दल अपनी सरकार बनाने के लिये कड़ी मेहनत कर रहा है और नेता लोग एक-दूसरे की कमियां जनता को गिना रहे हैं। यहां बात की जा रही है उत्तर प्रदेश के उन दो नौजवानों की, जो आगामी विधानसभा चुनाव में एक साथ हाथ मिलाकर अपने पूर्वजों की सियासी विरासत को संभालकर उसे आगे बढ़ा रहे हैं। दोनों युवा मुखिया अपनी पार्टी को सींचने में निरंतर मेहनत कर रहे हैं।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पौत्र एवं रालोद मुखिया चौधरी जयंत सिंह और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के पुत्र एवं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आपस में गठबंधन कर लिया है। वैसे तो उत्तर प्रदेश के सीएम रहे अखिलेश यादव ने कई दलों से गठबधंन कर लिया है। उत्तर प्रदेश में लगभग 403 विधानसभा सीटें हैं। बहुमत हासिल कर मुख्यमंत्री बनने के लिये दो तिहाई सीटें हासिल करना जरूरी है। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अखिलेश यादव एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चौधरी जयंत सिंह के दादा चौधरी चरण सिंह यूपी के सीएम और देश के पीएम रह चुके हैं।


समाजवादी पार्टी और रालोद दोनों हाथ पकड़कर आगामी वर्ष 2022 चुनावों में उतरेंगे। बड़ी संख्या में अनेक बड़े नेताओं ने अपनी पार्टी को छोड़कर सपा की साईकिल का हैंडल अपने हाथों में ले लिया है। सपा में आये करीब-करीब सभी नेता अपने समाज में एक मजबूत पकड़ रखते हैं। इसका लाभ सपा को विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। समाजवादी पार्टी के अलावा आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कई अन्य दलों के बड़े नेता अपने भविष्य को देखते हुए रालोद में भी शामिल हुए हैं। यही कारण रहा है कि इस बार विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का कुनबा बढ़ गया है। बताया जा रहा है कि रालोद आगामी विधानसभा चुनाव में करीब तीन दर्जन सीटों पर चुनाव लडेगी। अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा और रालोद को मुस्लिम, जाट सहित पिछड़ा वर्ग की वोट मिली तो अपना परचम लहरा सकती है?

उत्तर प्रदेश में ज्यादातर लोग खेती किसानी करते हैं। तकरीबन एक बरस पहले भारत सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानूनों से किसान अभी तक नाराज हैं। हालांकि केन्द्र सरकार की ओर से किसानों के आंदोलन के चलते बने दबाव में नये कृषि कानून वापस ले लिये हैं, लेकिन एमएसपी समेत कई अन्य मांगों को लेकर अभी तक भी किसान राजधानी दिल्ली के गाजीपुर, टीकरी, शाहजहांपुर और सिंधु बॉर्डर पर धरना चल रहा है। अभी तक हुए उपचुनावों के परिणामों में किसानों के इस आंदोलन का अच्छा खास असर देखने को मिला है। शायद यही वजह रही है कि केन्द्र सरकार किसानों की नाराजगी बन रहे नये कृषि कानूनों को वापस लेने को मजबूर हुई है। अब देखने वाली बात यह रह गई है कि नई कृषि कानूनों के विरोध में किसानों द्वारा चलाया गया आंदोलन आगामी विधानसभा चुनाव में अपना क्या असर दिखाता है? वैसे यह भी साफ हो चला है कि सरकार से नाराजगी की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान अपने घर यानि रालोद में वापसी कर रहा है।

पिछले दिनों कोरोना काल में रालोद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजित सिंह का निधन हो गया था। निधन होने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के हूबहू कहे जाने वाले जयंत सिंह पर सारी जिम्मेदारी आ गई। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के कुछ दिन बाद ही चौधरी समाज ने जयंत सिंह के सिर पर पगड़ी बांधकर अपने समाज का चौधरी बना दिया। कृषि बिल, जाट आरक्षण के अलावा अजित सिंह के निधन से उपजी सहानुभूति के चलते रालोद को एक संजीवनी मिल गई है।


उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान समाजवादी पार्टी जीत हासिल करने के उपरांत दो-तिहाई बहुमत प्राप्त कर गई थी, जिसके बाद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को यूपी का सीएम बना दिया था। अखिलेश यादव वर्ष 2012 से वर्ष 2017 तक मुख्यमंत्री रहे हैं। इस दौरान उनके द्वारा प्रदेश में काफी विकास कार्य कराया गया। सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा कराये गये कार्य को लेकर और वादों को अखिलेश यादव जनता से इस बार फिर सपा की सरकार बनाने की अपील कर रहे हैं। पूर्व सीएम अखिलेश यादव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आयोजित किये गये कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचकर जनता को सम्बोधित कर अनेक वादे कर चुके हैं। रालोद और सपा का गठबंधन होने के बाद जनपद मेरठ के दबथुवा में एक मंच पर चौधरी जयंत सिंह और अखिलेश यादव एक साथ दिखाई देंगे। उम्मीद की जा रही है कि इसी मंच से वह सीटों को लेकर भी ऐलान करेंगे।

राजनीति के जानकारों के अनुसार सपा और रालोद का हाथ मिलने से गठबंधन को मजबूती मिली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकतर सीटों पर मुस्लिम और जाटों की वोट भारी मात्रा में हैं। पिछले दिनों बुढ़ाना कश्यप महासम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचकर अखिलेश यादव ने पिछडों को भी मंच से सम्बोधित किया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम, जाट सहित अगर गठबंधन को पिछड़ा वर्ग का अगर साथ मिला तो यूपी की अधिकतर सीटों पर गठबंधन का कब्जा हो सकता है। मौजूदा समय में सपा और रालोद के दोनों युवा नेता विभिन्न जनपदों में जाकर आम जनमानस को सम्बोधित कर उनसे अनेक वादे कर रहे हैं। अपने पिता की विरासत संभाल रहे दोनों पुत्र क्या यूपी में सत्ता की मंजिल को पार करने में कामयाब हो पायेंगे या नहीं, यह तो सिर्फ वक्त ही बता पायेगा?

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