राहुल गांधी के गुजरात चुनाव एजेंडा में मुसलमानों के मुद्दे नदारद क्यों

राहुल गांधी के गुजरात चुनाव एजेंडा में मुसलमानों के मुद्दे नदारद क्यों
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गुजरात :बाईस सालों से गुजरात की सत्ता से बाहर रही कांग्रेस को लगता है कि इतने सालों की सत्ता विरोधी लहर, पाटीदार, दलित, ओबीसी आंदोलन और सामने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी का न होना उसके लिए अच्छी खबर ला सकते हैं.इसलिए कांग्रेस ने गुजरात चुनावों को लेकर एक खास रणनीति बनाई थी. यह इनके चुनाव प्रसार से महसूस हो रहा है .

सियासी रणनीति के तहत कांग्रेस ने गुजरात में सत्ता वापसी के लिए नरम हिंदुत्व का रुख अपनाया .कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पहले दौरे से लेकर आखिरी दौरे यानी इस चौथे दौरे तक में जो भी कार्यक्रम बने वो मुसलमानों को दरकिनार करके हिन्दू धर्म के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे.दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान राहुल के दौरे में कोई मुस्लिम लीडर आसपास नजर नहीं आया. इस चुनाव में कांग्रेस ने मुस्लिम का मुद्दा भी नहीं उठाया अब तक के चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने या तो पाटीदार समुदाय या फिर नोटबंदी और जीएसटी का ही मुद्दा उठाया.

कांग्रेस को सबसे बड़ा खौफ इस बात का था कि गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी हिन्दू-मुस्लिम का आखिरी दांव चल सकती है. कांग्रेस आलाकमान को ऐसा महसूस होता है कि गुजरात दंगों के बाद से भारतीय जनता पार्टी हिंदू-मुस्लिम मतों के बंटवारे के चलते ही चुनाव जीतती आ रही है. इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी आखिरी मौके पर कांग्रेस के सीनियर लीडर राज्यसभा सांसद अहमद पटेल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तक बता देते थे.

कांग्रेस चाहे लाख मना करने के बावजूद अहमद पटेल का पार्टी में रुतबा और कद इतना रहा है कि वह गुजरात के सबसे बड़े नेता माने जाते रहे हैं. तभी खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों में अहमद पटेल का हमेशा का जिक्र होता था. इसीलिए इस बार भारतीय जनता पार्टी का यह दांव ना चलने पाए. इसके लिए कांग्रेस ने खास रणनीति के तहत चुनाव प्रचार किया .

खास रणनीति के तहत कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सिर्फ मंदिरों में जाकर कांग्रेस की नरम हिंदुत्व की छवि बनाएंगे. कांग्रेस के सीनियर लीडर राज्यसभा सांसद अहमद पटेल को खुद को हमेशा मुख्यमंत्री का दावेदार होने से इनकार करने वाले ने तय किया कि वह पर्दे के पीछे से ही सरगर्म रहेंगे.कांग्रेस के तमाम मुस्लिम लीडर की मुस्लिम तंजीमो से गुपचुप बात करके उनको भड़काऊ चीजों से दूर रहने की अपील करेंगे. वोटिंग के दोरान किसी उकसावे में न आकर पुर अमन तरीके से वोटिंग करने की अपील भी होगी. चुनावी बहसों में खास खयाल रखा जाए कि बहस किसी भी तरह से साम्प्रदायिक न होने पाए. भारतीय जनता पार्टी के किसी नेता के ऐसे बयान का जवाब देने की बजाय ठंडे बस्ते में डाला जाए जिससे जरा भी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का अंदेशा हो.मुस्लिम इलाकों में चुनाव प्रचार के दौरान जोश में आकर ऐसे भाषण न हों, जिससे भारतीय जनता पार्टी उसका फायदा साम्प्रदायिक रंग देने में ले सके. साथ ही नारेबाजी में कौमी नारों से ज्यादा देश के नारे हों.

भाषण में कांग्रेस जनता के बीच चल रहे मुद्दों को ही सामने रखेगी साथ ही जरूरत पड़ने पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की आतंकियों द्वारा की गई हत्या को याद किया जाएगा, वहीं हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में आर एसएस और भारतीय जनता पार्टी की भूमिका और शामिल न होने का प्रचार प्रसार किया जाएगा और कंधार में बीजेपी सरकार द्वारा आतंकियों को छोड़े जाने का मसला याद दिलाया जाएगा.


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