SHO सुशील- आभूषण भी नहीं डिगा पाये ईमान- DGP से मिला सम्मान

SHO सुशील- आभूषण भी नहीं डिगा पाये ईमान- DGP से मिला सम्मान

मुजफ्फरनगर। किसान परिवार में जन्म लिया, सरकारी स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। इसी दौरान मन में एक विचार उपजा कि जीवन को जनता के लिए समर्पित करना है। समाज में जो गरीब, असहाय लोग हैं, उन्हें न्याय दिला सकें, ऐसा करना है। इसी को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर पुलिस में जाने के लिए तैयारी शुरू कर दी। खेती के साथ-साथ पढ़ाई की और परीक्षा की तैयारी भी की। ईश्वर की कृपा से मेहनत का परिणाम मिला और 1987 में सपना हकीकत में बदल गया। आरक्षी के पद पर रहते हुए जनता की सेवा करनी शुरू कर दी। लेकिन इससे संतुष्टि नहीं मिली और आगे बढ़ने की सोची। इसी के चलते वर्ष 1999 में सब इंस्पेक्टर की परीक्षा दी और सफलता हासिल की। यह भर्ती लगभग 7 वर्ष बाद क्लियर हुई थी। वर्ष 2007 में सब इंस्पेक्टर बनने के बाद उन्होंने न सिर्फ बदमाशों की कमर तोड़ी, वरन इंसानियत के धर्म को निभाते हुए जनता के मन में खाकी के प्रति सकारात्मक सोच उत्पन्न की। उनका उद्देश्य लोगों के मन से खाकी के खौफ को निकालना और अपराधियों में खौफ पैदा करना रहा है। असहायों को न्याय दिलाना और गरीबों की मदद करना, हमेशा से ही उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहा है।

जब उन्हें सहारनपुर थाने के रूप में पहली बार चार्ज मिला, तो कई चुनौतियां मुंह बाये खड़ी थीं। अपहरण के बाद ढाई साल के बच्चे का अपहरण कर दिया गया था। बच्चे का शव मिलने के दो घंटे बाद ही उन्होंने हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाकर अपनी विशिष्ट कार्यशैली का उदाहरण पेश किया था। उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। जब वे सहारनपुर में मां शाकुम्भरी के मेला इंचार्ज थे, उस दौरान उन्हें लाखों के कीमती जेवरात और नकदी से भरा एक पर्स मिला था। न तो नकदी उनका ईमान डिगा पाई और न ही आभूषण की चमक उनकी ईमानदारी को धोखा दे पाई। काफी प्रयासों के बाद उन्होंने पर्स की असली मालिक को ढूंढा और सारा कीमती सामान और उनकी उसे वापिस कर दी। उनकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर तत्कालीन डीजीपी ओपी सिंह ने उनको स्वयं सम्मानित किया था। जब वे नकुड़ के थाना प्रभारी थे, तो उन्होंने विद्यालय की 50 छात्राओं को थाने में बुलाया और उन्हें महिला हित में बनाये गये कानूनों की जानकारी दी। थाने का भ्रमण कराते हुए उन्होंने छात्राओं को बताया कि पुलिस उनकी मित्र है। अगर कोई दिक्कत है, तो वे तुरंत पुलिस से सहायता प्राप्त कर सकती हैं। उन्होंने न केवल छात्राओं को नाश्ता कराया, वरन एक छात्रा को एक दिन का थाना प्रभारी बनाकर छात्राओं की हौंसला अफजाई की थी। थाना प्रभारी बनी बालिका को फोटो खुद डीजीपी ने ट्विटर हैंडल पर ट्वीट किया था। इंस्पेक्टर की इन्हीं कार्यशैलियों से बयां होता है कि वे न सिर्फ नेक दिल इंसान हैं, वरन काबिल पुलिस अफसर हैं। यहां बात हो रही है थाना नई मंडी पर तैनात इंस्पेक्टर सुशील सैनी की। पेश है उनकी विशिष्ट कार्यशैली पर खोजी न्यूज की स्पेशल रिपोर्ट...


सुशील सैनी का जन्म उत्तराखंड के विकास नगर में किसान परिवार में 10 सितम्बर 1967 को हुआ था। उनके पिता का नाम धर्म सिंह है। सुशील सैनी दो भाई है। उनका छोटा भाई नरेन्द्र सिंह सैनी दिल्ली बीएसएफ हैड क्वार्टर में तैनात है। सुशील सैनी की प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई है। इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की। वह बचपन से ही पुलिस विभाग में जाकर पीड़ितों की मदद करना चाहते थे। इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। उन्होंने वर्ष 1987 में पुलिस परीक्षा दी और आरक्षी के पद पर सलेक्ट हो गयेे। 12 साल नौकरी करने के बाद सुशील सैनी ने वर्ष 1999 में उपनिरीक्षक की परीक्षा दी। इस भर्ती पर विभाग ने स्टे ले लिया था। यह भर्ती वर्ष 2007 में क्लियर हुई और सुशील सैनी सब इंस्पेक्टर बन गये। सब इंस्पेक्टर बनने के बाद सुशील सैनी ने बुलंदशहर, मेरठ, शामली, बाराबंकी, गाजियाबाद, सहारनपुर में अपनी सेवाएं दीं और पीड़ितों को न्याय दिलाया। अब वह जनपद मुजफ्फरनगर के थाना नई मंडी में तैनात हैं और जनता की सेवा करने में जुटे हैं। सुशील सैनी को शासन ने प्रमोशन देते हुए 2018 में इंस्पेक्टर बनाया था।


सुशील सैनी ने खोजी न्यूज टीम को बातचीत में बताया कि वर्ष 2017 में जब वह गागलहेड़ी थानाध्यक्ष थे। उसी दौरान एक ढ़ाई साल के बच्चे का अपहरण हो गया था। यह उनके सामने बड़ी चुनौती थी। चुनौती को स्वीकार करते हुए उन्होंने पूरे मौहल्ले की नाकाबंदी करा दी और सर्च ऑपरेशन चलाया। ऑपरेशन के दौरान बच्चे की लाश झाड़ियों से बरामद हो गई। इस मामले का खुलासा करने के लिये उन्होंने डाॅग स्क्वायड की भी सहायता ली थी। जांच के दौरान पता चला कि जिस बच्चे का अपहरण किया गया था, उसके पड़ौस में रहने वाले पुजारी ने ही ढाई साल के बच्चे को रंजिश के चलते मार दिया था। सुशील सैनी ने सिर्फ 12 घंटे में ही इस वारदात का खुलासा कर आरोपी को सलाखों के पीछे पहुंचाया था।

वर्ष 2018 में जब इंस्पेक्टर सुशील सैनी मां शाकुम्भरी देवी में चल रहे मेले के इंचार्ज थे, तो उनको एक पर्स मिला था। जब उन्होंने इस पर्स को चेक किया, तो उन्हें इसमें काफी नकदी और लाखों के जेवरात के साथ कई विजिटिंग कार्ड भी मिले। इन विजिटिंग कार्ड की मदद से उन्होंने उक्त महिला से संपर्क किया, तो पता चला कि वह दिल्ली की निवासी है। महिला अपने पति के साथ इंस्पेक्टर सुशील सैनी के पास आये। उन्होंने जब उन्हें पर्स वापिस किया, तो दोनों भावविभोर हो गये और उन्होंने इंसपेक्टर का आभार व्यक्त करते हुए उन्हें बार-बार धन्यवाद अदा किया था। उनके इस कार्य से ही पता चलता है कि वे कितने ईमानदार छवि के अफसर हैं। कुछ लोगों का चंद पैसों के लिये इमान डोल जाता है, पर उनका लाखों के जेवरात और नकदी मिलने पर भी ईमान नहीं डोला। उनके इस मानवता भरे काम के लिए तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने इंस्पेक्टर सुशील सैनी को सम्मानित किया था।


इंस्पेक्टर सुशील सैनी जब वर्ष 2019 में नकुड़ के थाना प्रभारी थे, तो उन्होंने लगभग 50 छात्राओं को थाने में बुलाया और थाने का भ्रमण कराया। उन्होंने जानकारी दी गई कि किस प्रकार पुलिस कार्य करती है। महिलाओं को लेकर बने कानूनों के बारे में छात्राओं को जानकारी दी गई। उन्होंने कानून की जानकारी देने के बाद कहा था कि पुलिस आपकी मित्र है। अगर आपको कोई प्राॅब्लम होती है, तो आप पुलिस को सूचना दें। इसके बाद उन्होंने सभी बालिकाओं को नाश्ता भी कराया था। उन्होंने उक्त छात्राओं में से शहनुमा खान को थाना नकुड़ की एक दिन की प्रभारी भी बनाया था। उन्होंने उस लड़की को एक दिन के लिये थानेदार की सभी पावर दी थी और स्वयं उसे गाइड कर रहे थे। जब शहनुमा खान को इंस्पेक्टर सुशील ने एक दिन का थाना प्रभारी बनाया, तो उसी दौरान एक व्यक्ति झगडे से संबंधित एक प्रार्थना पत्र लेकर आया। शहनुमा खान ने घंटी बजाकर मुंशी को बुलाया और आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की थी। जब उत्तर प्रदेश के डीजीपी द्वारा यह वीडियो ट्वीट की गई तो, तो पुलिस कप्तान को मामले की जानकारी हुई थी। शहनुमा को थाना प्रभारी बनने के दौरान के फोटो को उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग द्वारा विज्ञापन के रूप में प्रयोग किया गया था।


इंस्पेक्टर सुशील सैनी का कहना है कि अगर विपत्ति आती है, तो उससे घबराना नहीं चाहिए। विवेक, धैर्य और विश्वास के साथ समस्या का निपटारा करना चाहिए। जब आप किसी समस्या का सामना कर उसका समाधान करते हैं, तो कई अनुभव प्राप्त होते हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं को नशे से बचना चाहिए। नशा जीवन को सिर्फ अंधकार की ओर ले जाता है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे बड़े-बुजुर्गों को समय दें, उनके अनुभव से लाभ दें, मन लगाकर पढ़ाई करें और जीवन का लक्ष्य बनाकर उसे पाने के लिए जीतोड़ मेहनत करें, तो कोई ताकत नहीं, जो उन्हें कामयाबी दिलाने से रोक सके। उन्होंने कहा कि वे पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए हमेशा ही प्रयासरत रहे हैं और भविष्य में भी उनका उद्देश्य गरीबों की मदद करना, पीड़ितों को न्याय दिलाना और कानून व्यवस्था का राज कायम करना है।

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