कांग्रेस को संभलना है तो इन्दिरा गांधी को पढ़ें

कांग्रेस को संभलना है तो इन्दिरा गांधी को पढ़ें

नई दिल्ली। आप सभी को लोकसभा चुनाव-2019 तो याद ही होंगे और उसमें राहुल गांधी का एक वादा भी याद होगा लेकिन उस वादे के पीछे किसकी सोच थी, ये शायद पता न हो। राहुल गांधी ने कहा था कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो 20 फीसदी गरीब परिवारों को हर साल 72 हजार रुपये सरकार देगी। देश के हर गरीब को न्यूनतम आमदनी मिलेगी। राहुल गांधी का यह वादा उनकी दादी इन्दिरा गांधी के 1971 में गरीबी हटाओ नारे से मिलता था। इसलिए राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस को अगर फिर से उसी ऊँचाई पर पहुंचना है तो उसे इन्दिरा गांधी के विचारों का अध्ययन करना चाहिए। पंजाब में शांति की स्थापना के लिए आपरेशन ब्लू स्टार के तहत भिंडरावाले समेत कई कट्टर खालिस्तानी मारे गये थे और पंजाब का इलाज भी हो गया लेकिन दो सिरफिरों ने 31 अक्टूबर 1984 को इन्दिरा गांधी की हत्या कर दी। ये दोनों सिरफिरे उनके अंग रक्षक थे, जो भक्षक बन गये। राष्ट्र इन्दिरा जी के निर्भीक नेतृत्व को आज भी याद करता है। उनकी दूरदर्शिता का भारत ही नहीं विश्व कायल था।

पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुत्री इन्दिरा प्रियदर्शिनी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उन्होंने इकोले नौवेल्ले, बेक्स (स्विट्जरलैंड), इकोले इंटरनेशनेल, जिनेवा, पूना और बंबई में स्थित प्यूपिल्स ओन स्कूल, बैडमिंटन स्कूल, ब्रिस्टल, विश्व भारती, शांति निकेतन और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड जैसे प्रमुख संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की। उन्हें विश्व भर के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। प्रभावशाली शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा विशेष योग्यता प्रमाण पत्र दिया गया। इंदिरा गांधी शुरू से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहीं।बचपन में उन्होंने 'बाल चरखा संघ' की स्थापना की और असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी की सहायता के लिए 1930 में बच्चों के सहयोग से 'वानर सेना' का निर्माण किया। सितम्बर 1942 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। 1947 में इन्होंने गाँधी के मार्गदर्शन में दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कार्य किया। उन्होंने 26 मार्च 1942 को फिरोज गाँधी से विवाह किया। उनके दो पुत्र थे। 1955 में इंदिरा गाँधी कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी। 1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।वे एआईसीसी के राष्ट्रीय एकता परिषद की उपाध्यक्ष और 1956 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस और एआईसीसी महिला विभाग की अध्यक्ष बनीं।वे वर्ष 1959 से 1960 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं। जनवरी 1978 में उन्होंने फिर से यह पद ग्रहण किया।

इंदिरा गांधी जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक पहली बार भारत की प्रधानमंत्री रहीं। 14 जनवरी 1980 में वे फिर से प्रधानमंत्री बनीं। बीच में आपातकाल का ग्रहण लगा था। उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धियां प्राप्त कीं। उन्हें 1972 में भारत रत्न पुरस्कार, 1972 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए मैक्सिकन अकादमी पुरस्कार, 1973 में एफएओ का दूसरा वार्षिक पदक और 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा साहित्य वाचस्पति (हिन्दी) पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1953 में गाँधी को अमरीका ने मदर पुरस्कार, कूटनीति में उत्कृष्ट कार्य के लिए इटली ने इसाबेला डी 'एस्टे पुरस्कार और येल विश्वविद्यालय ने होलैंड मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया। फ्रांस जनमत संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार वह 1967 और 1968 में फ्रांस की सबसे लोकप्रिय महिला थीं। 1971 में अमेरिका के विशेष गैलप जनमत सर्वेक्षण के अनुसार वह दुनिया की सबसे लोकप्रिय महिला थीं।

इन्दिरा गांधी को निर्भीक फैसलों के लिए भी याद किया जाता है। ये फैसले पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराकर बांग्लादेश बनवाने और पंजाब की आग को शांत करने में लिये गये थे। पंजाब के गुरुद्वारों में पंजाब को भारत से अलग करके मुल्क खालिस्तान बनाने की तकरीरें की जा रही थीं। यह भी कहा जा रहा था कि इसके लिए भारत के साथ सशस्त्र संघर्ष करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। पंजाब की ये गतिविधियां दिल्ली में बैठी सरकार के लिए चिंता का कारण बन गयी थी। ऐसे में सत्ता के शीर्ष शिखर से एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। यह फैसला था आपरेशन ब्लू स्टार और इसको अंजाम देने का दायित्व सौंपा गया था मेजर जनरल कुलदीप बराड को। मेजर जनरल बराड के अनुसार इंदिरा गांधी ने आपरेशन ब्लू स्टार की जो रूपरेखा बनायी थी, उसमें न तो स्वर्ण मंदिर का अपमान होना था और न लोगों की हत्या। जनरल बराड बताते हैं कि 5 मई, 84 की सुबह साढ़े चार बजे बटालियन को समझाया था कि स्वर्ण मंदिर, जहां जनरल भिंडरावाले ने राकेट लांचर तक रखा हुआ था, के अंदर जाते हुए हमें यह नहीं सोचना है कि हम किसी पवित्र जगह को बर्बाद करने जा रहे हैं बल्कि हमें यह सोचना है कि हम उसकी सफाई करने जा रहे हैं। इस अभियान में कैजुअलटी जितनी कम से कम हो, इसका ध्यान रखना है।

काश! जनरल बराड की यह बात सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने भी समझी होती तो शायद मशीनगन का ट्रिगर दबाने को उनकी उंगलियां तैयार न होतीं। इंदिरा गांधी भी जीवित रहतीं और सन् 84 का दुखद सिख दंगा भी नहीं होता। (मोहिता स्वामी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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