प्रियंका का तूफानी दौरा - असम में सत्ता वापसी की जंग

प्रियंका का तूफानी दौरा - असम में सत्ता वापसी की जंग

लखनऊ। पूर्वोत्तर भारत के महत्वपूर्ण राज्य असम में विधानसभा चुनाव के जंग का ऐलान हो चुका है। राज्य की 26 सीटों पर इस बार दमदार टक्कर होने की संभावना है। भाजपा ने स्थानीय दलों की मदद से कांग्रेस से यहां सत्ता छीनी थी लेकिन इस बार कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुद मोर्चा संभाल रखा है। वे चाय के बागान में वहां काम करने वाली महिलाओं के साथ चाय की पत्ती तोड़ती है जो जनसभाओं में भारी भीड़ भी जुटा रही है। उधर, भाजपा की सहयोगी रही बोडोलैण्ड पीपुल्स फ्रंट ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया है। उत्तर-पूर्व में भाजपा के चाणक्य हेमंत विस्वासरमा अब कौन सी रणनीति अपनाते हैं, जिससे भाजपा का सत्ता पर कब्जा बना रहे, यह देखने की बात होगी। फिलहाल कांग्रेस ने मजबूत घेरेबंदी कर रखी है।

असम विधानसभा चुनाव 2021 में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी असम के दो दिनों के दौरे पर हैं। वह अपने मिशन असम के तहत दूसरे दिन 2 मार्च को राज्य के सधारू टी स्टेट पहुंचीं। वहां उन्होंने चाय बागान मजदूरों से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने वहां महिलाकर्मियों के साथ बागान में पारंपरिक रूप से चाय की पत्तियां तोड़ीं। हर चुनाव में असम के चाय बागान और मजदूर चुनावी मुद्दा बनते हैं। प्रियंका गांधी की तेजपुर में एक चुनावी जनसभा भी संबोधित की।


प्रियंका गांधी के असम दौरे से कई तरह की रणनीति दिखाई पड़ी। पहले दिन असम पहुंचीं प्रियंका गांधी ने कामाख्या देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ दो दिवसीय दौरे की शुरुआत की थी। असम में 126 सदस्यीय विधानसभा के लिए 27 मार्च, एक अप्रैल और छह अप्रैल को तीन चरणों में मतदान होगा। प्रियंका गांधी सबसे पहले जलुकबारी इलाके में रुकीं, जहां कांग्रेस समर्थकों ने उनका स्वागत किया था। इसके बाद वह नीलांचल हिल्स स्थित शक्ति पीठ के लिए रवाना हो गईं थीं। प्रियंका गांधी ने कहा था, वह काफी समय से मंदिर आना चाहती थीं और उनकी यह इच्छा पूरी हो गई। मैंने अपने, अपने परिवार और सबसे अधिक असम के लोगों लिए दुआएं मांगी। आगामी चुनाव के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि राजनीति के बारे में बाद में बात करेंगे। उन्होंने कहा, मैं भगवान का शुक्रिया अदा करने और उनका आशीर्वाद लेने मंदिर आई हूं, जिन्होंने मुझे बहुत कुछ दिया है।

असम में भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीनी है। भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी रही बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने अब गठबंधन तोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। पार्टी के अध्यक्ष हग्रामा मोहिलरी ने कहा-हम बीजेपी के साथ दोस्ती और गठबंधन नहीं निभा सकते हैं। शांति, एकता और विकास के साथ राज्य में स्थायी सरकार देने के लिए बीपीएफ ने कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ जाने का फैसला किया है। असम की 126 सीटों वाली विधानसभा में बीपीएफ के पास 12 सीटें हैं। ऐन चुनाव के पहले कांग्रेस से हाथ मिलाने को बीजेपी के नुकसान के तौर पर भी देखा जा रहा है। बीपीएफ और बीजेपी के बीच संबंधों में कड़वाहट बीते साल के अंत में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल के चुनाव के बाद ही आ गई थी। यह बात खुद उत्तर-पूर्व में बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कही थी। हेमंत बिस्वा सरमा ने करीब दो हफ्ते पहले ही कह दिया था कि चुनाव में बीपीएफ एनडीए का हिस्सा नहीं होगी। उन्होंने कहा था कि बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) के चुनाव के बाद से ही दोनों पार्टियों के संबंध में खटास आ गई है। यानी बीजेपी पहले ही यह घोषणा कर चुकी थी कि वो बीपीएफ के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी। नफा-नुकसान की गणना पहले ही की जा चुकी है।


दरअसल बोडोलैंड मुख्य रूप से चार जिलों के इलाके को कहते हैं। ये जिले हैं कोकराझाड़, बाक्सा, उदलगुड़ी और चिरांग। इन्हीं को मिलाकर बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल बनी है। 2020 के आखिरी में हुए काउंसिल के चुनाव में बीजेपी ने बीटीसी पर 17 वर्षों से काबिज बीपीएफ का वर्चस्व तोड़ दिया था। हालांकि 40 सीटों वाली काउंसिल में सबसे ज्यादा सीटें ठच्थ् को ही आई लेकिन सत्ता उसके हाथ से छिन गई। बीपीएफ को 17 सीटें मिलीं तो वहीं यूपीपीएल को 12, बीजेपी को 9। गण शक्ति पार्टी को 1 सीट मिली। बीजेपी, यूपीपीएल और गणशक्ति पार्टी मिलकर बीटीसी की सत्ता पर काबिज हो गए हैं।

बहरहाल, काउंसिल से बीपीएफ को बाहर करने की तैयारी एक साल से चल रही थी। बीजेपी ने रफ्तार के साथ बोडो संधि को क्लीयर किया। बीजेपी ने इसे ऐतिहासिक बताया और कहा कि इससे दशकों से चला आ रहा सशस्त्र संघर्ष समाप्त होगा। ये शांति समझौता प्रमोद बोरो की अगुवाई वाले ऑल इंडिया बोडो स्टूडेंट्स यूनियन और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के धड़ों के साथ किया गया था। ये जनवरी 2020 की बात है। इस संधि पर हस्ताक्षर के बाद से ही प्रमोद बोरो राज्य में चर्चा में आ गए थे। फिर बीजेपी की तरफ से भी प्रोजेक्ट किया गया कि ये संधि सिर्फ बोरो की वजह से हो पाई है।

बोडोलैंड के इलाके में बीजेपी के पास सहयोगी के तौर पर प्रमोद बोरो जैसा लोकप्रिय चेहरा भी है। इलाके में प्रमोद बोरो के प्रभाव और बीजेपी की स्मार्ट रणनीति का असर चुनाव में दिखाई दे सकता है। काउंसिल चुनाव के नतीजों के बाद से ही माना जा रहा था बीजेपी को विधानसभा चुनाव में भी फायदा मिलेगा।

अब बीपीएफ ने राज्य में कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ हाथ मिला लिया है। कांग्रेस राज्य में नागरिकता संशोधन कानून को जोर-शोर से मुद्दा बना रही है। देखना होगा कि कांग्रेस के सहयोग के साथ बीपीएफ बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचा पाएंगी और प्रियंका गांधी का मंदिर से लेकर चाय बागान तक जाना असम वासियों को कितना प्रभावित करेगा?




(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)



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