इस बार सच में ऊंट पहाड़ के नीचे

इस बार सच में ऊंट पहाड़ के नीचे

जयपुर। राजस्थान में इस बार ऊंट सचमुच पहाड़ के नीचे आ गये हैं। बिसलेरी का प्रचार प्रसार करने में ऊंटों का सहारा लिया गया। मटके के शुद्ध और शीतल जल की जगह बिसलेरी पानी की बोतल की ब्रांडिंग पर शिक्षक भड़क गये हैं और शिकायत राष्ट्रपति तक पहुंच गयी है। गुरुजनों का कहना है कि ऊंट हमसे ज्यादा समझदार कैसे हो सकते हैं। दूसरी तरफ एक और वर्ग इस विज्ञापन के विरोध में खडा हो गया है। इन लोगों का कहना है कि घड़े के शुद्ध और शीतल जल का मजाक उडाया गया है जबकि घड़ा भारतीय संस्कृति से जुडा है। हिन्दुओं के जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक घट का प्रयोग किया जाता है। इस घट को शरीर का पर्यायवाची भी माना गया है। इसलिए राजस्थान में बिसलेरी के विज्ञापन ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है। इस विज्ञापन ने राजस्थान के शिक्षकों का तो पारा ही चढ़ा दिया है। देश के अन्य हिस्सों में भी शिक्षकों ने विरोध जताया है। शिक्षकों का कहना है कि विज्ञापन में टीचर्स को मूर्ख बताने की कोशिश की गई है। साथ ही घड़े की जगह पानी के बॉटल का प्रचार कर गरीबों का अपमान किया जा रहा है। पानी के घडे का मजाक उडाया गया है। इस घड़े को गरीबों का फ्रिज कहा जाता है।

विज्ञापन शब्द वि ज्ञापन दो शब्दों से मिलकर बनता है । 'वि' का अर्थ होता है विशेष और 'ज्ञापन' का अर्थ होता है 'सार्वजनिक सूचना'। विज्ञापन एक माध्यम है, ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करके वस्तु को बेचने का। दूसरे शब्दों में - किसी उत्पाद अथवा सेवा को बेचने अथवा प्रवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार, विज्ञापन कहलाता है। विज्ञापन विक्रय कला का एक नियंत्रित जनसंचार माध्यम है। कोई चीज खरीदने या बेचने के लिए या अन्य जानकारी देने व लेने से लेकर अपने किसी अन्य विषय की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जाने वाला जनसंचार विज्ञापन कहलाता है ।विज्ञापन स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक के होते हैं। राष्ट्रीय स्तर का विज्ञापन किसी उत्पाद या सेवा का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार करने के लिए होता है। बिसलेरी जल का प्रचार एक राष्ट्रीय विज्ञापन है जिसकी भाषा और भाव दोनों ही ऐसे होने चाहिए जिससे किसी की भावना आहत न हो। जाति, धर्म, निश्ठा आदि पर चोट पहुंचाने वाला प्रचार अपराध की श्रेणी में आ जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने विज्ञापन को लेकर मापदंड भी तय किये हैं। इनमें झूठी गुणवत्ता का उल्लेख करना भी अपराध है।चूंकि हमारे देश में अनेक भाषाएं हैं, अतरू राष्ट्रीय विज्ञापन एक से अधिक भाषाओं में तैयार किए जाते हैं। एक ही वस्तु को अलग-अलग कंपनियाँ उत्पादित करती हैं। हर कंपनी को अपने ब्रांड को श्रेष्ठ बताने के लिए इस तरह के विज्ञापन का सहारा लेना पड़ता है। सौन्दर्य प्रसाधन, घरेलू उपकरण, मोबाइल सेवाएं आदि ऐसे अनेक विषय है जिनका विज्ञापन राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है लेकिन इससे किसी की भावनाएं आहत नहीं होना चाहिए। राजस्थान में बिसलेरी के विज्ञापन से शिक्षकों और घड़े दोनों का अपमान ऊंट के माध्यम से किया गया है। ये सच है कि विज्ञापन का मकसद विशुद्ध रूप से मुनाफा कमाना है। चीज चाहे जितनी घटिया हो, स्वास्थ्य के लिए घातक हो फिर भी उसे ऐसे आकर्षक तरीके से पेश किया जाता है कि लोग खरीद ही लेते हैं। आमतौर पर कॉरपोरेट कंपनियों के विज्ञापन आम आदमी को सीख देने वाले होते हैं लेकिन इस बार बिसलेरी का विज्ञापन टीचर्स की नाराजगी का कारण बन गया है। टीचर्स का कहना है कि विज्ञापन में न सिर्फ शिक्षकों के प्रति आपत्तिजनक भाषा बोली गई है, बल्कि उनके ज्ञान पर भी सवाल खड़ा किया गया है। विज्ञापन में ऊंटों को स्टूडेंट्स के तौर पर दिखाया गया, जो अपने टीचर को हे! मास्टर का संबोधन कर रहे हैं और उन्हें कांटेक्टलेस शब्द के बारे में जानकारी नहीं होने का मखौल उड़ा रहे हैं। विज्ञापन में मटके के पानी का भी मजाक उड़ाया गया है। शिक्षक संगठनों ने इस विज्ञापन को मूर्खता भरा बताते हुए बिसलेरी का बहिष्कार करने की घोषणा की है। बिसलेरी के विज्ञापन ने राजस्थान के शिक्षकों का पारा चढ़ा दिया है। शिक्षकों का कहना है कि विज्ञापन में टीचर्स को मूर्ख बताने की कोशिश की गई है। साथ ही घड़े की जगह पानी के बॉटल का प्रचार कर गरीबों का अपमान किया जा रहा है। टीचर्स का कहना है कि विज्ञापन में न सिर्फ शिक्षकों के प्रति आपत्तिजनक भाषा बोली गई है, बल्कि उनके ज्ञान पर भी सवाल खड़ा किया गया है। रेतीले धोरों के बीच फिल्माए गये इस विज्ञापन के विरोध में सोशल मीडिया पर बायकाट बिसलेरी अब ट्रेंड करने लगा है। राजस्थान के अलावा गुजरात के टीचर्स भी इस हैशटैग को आगे बढ़ा रहे हैं।

गुजरात के प्राथमिक शिक्षक महासंघ के पत्र का हवाला देते सोशल मीडिया यूजर निखिल दर्जी लिखते हैं- उसका मजाक न उड़ाएं जिसने आपको जीवन की मूल बातें सिखाई हैं। जयपुर के अनिल गुप्ता ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा- अब बिसलेरी को बाय-बाय कहने का वक्त आ गया है। शिक्षकों के सम्मान में धौलपुर कलेक्टर ने कोविड सेंटर में मटके रखकर यह संदेश दिया कि इससे शुद्ध पानी कहां है? धौलपुर के कलेक्टर आर.के. जायसवाल ने सोशल मीडिया पर बायकाट बिसलेरी अभियान का समर्थन किया। जायसवाल ने मटकों का फोटो शेयर करते हुए लिखा- सदियों से पीते आ रहे हैं मटका का पानी... मटके हैं भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा... कोविड केयर सेंटर पर भी मटकों के माध्यम से की गई है पीने के पानी की व्यवस्था... न केवल ठंडा पानी मिलेगा बल्कि जीवाणु रहित भी होगा। राजस्थान के अलावा गुजरात के टीचर्स भी इस हैशटैग को आगे बढ़ा रहे हैं। गुजरात के प्राथमिक शिक्षक महासंघ के पत्र का हवाला देते सोशल मीडिया यूजर निखिल दर्जी लिखते हैं- उसका मजाक न उड़ाएं जिसने आपको जीवन की मूल बातें सिखाई हैं। जयपुर के अनिल गुप्ता ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा- अब बिसलेरी को बाय-बाय कहने का वक्त आ गया है। हमें अपने स्थानीय ब्रांड का उपयोग करना चाहिए।

राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत के प्रदेश मंत्री श्रवण पुरोहित का कहना है कि इस विज्ञापन पर रोक लगनी चाहिए। राजस्थान वरिष्ठ शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष भेरुराम चैधरी ने कहा है कि शिक्षक के साथ राजस्थान की संस्कृति का अपमान किया गया है। मटके के पानी में सारे सॉल्ट उपलब्ध होते हैं। राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश मंत्री रवि आचार्य का कहना है कि हम तो खुद मटके का पानी पीते रहे हैं। ऐसे में राजस्थान की संस्कृति का मखौल न उड़ाएं। शिक्षक ने ही आपको पढ़ना सिखाया, उसी का मजाक उड़ाना निंदनीय है। राजस्थान वरिष्ठ शिक्षक संघ ने राष्ट्रपति के नाम पत्र लिखा है। इसमें बिसलेरी कंपनी द्वारा शिक्षकों से माफी मांगने और विज्ञापन को प्रसारित करने वालों पर कार्रवाई करने की मांग की है। वहीं, राजस्थान प्राइवेट एजुकेशन महासंघ अजमेर ने मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखा है। इसमें विज्ञापन पर तुरंत प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। उन्होंने इस विज्ञापन को शिक्षकों की छवि खराब करने वाला बताया है। विज्ञापन में पानी के घड़े का भी उपहास उड़ाया गया । इसलिए विज्ञापन देने वालों को सजा मिलनी ही चाहिए। (हिफी)

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