कब चेतेगी गहलोत सरकार?

कब चेतेगी गहलोत सरकार?

लखनऊ। राजस्थान में इन दिनों कोरोना के आंकड़े लोगों को डरा रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से प्रदेश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में अचानक भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। प्रतिदिन कोरोना का आंकड़ा एक हजार की संख्या को पार करने लगा है। प्रदेश में कोरोना पॉजिटिव की संख्या बढ़कर 37 हजार पहुंच गई है। वही 10 हजार लोगों का अस्पताल में उपचार चल रहा है। कोरोना संक्रमण के कारण प्रदेश में 600 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

संकट के ऐसे समय में राजस्थान सरकार के सभी मंत्री, सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के सभी विधायक व यहां तक कि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी जयपुर के एक होटल में पिछले 15 दिनों से डेरा डाले हुए हैं। इससे प्रदेश में अफरा तफरी का माहौल है। जनता में डर का माहौल व्याप्त हो रहा है। अफसरशाही मनमानी कर रही है।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के मध्य चल रही वर्चस्व की लड़ाई में राजस्थान की जनता बुरी तरह से पिस रही है। सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों व विधायकों के होटल के कमरों में बंद रहने के कारण क्षेत्र की जनता अपनी समस्यायें लेकर उन तक नहीं पहुंच पा रही है। इस कारण लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है। प्रदेश की अफसरशाही हाथ पर हाथ धरे सत्तारूढ़ दल के नेताओं की राजनीतिक लड़ाई को देख रही है। अधिकारी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि जिस गुट का पलड़ा भारी रहेगा, उनका झुकाव उधर ही हो जाएगा।

समस्याएं एक नहीं कई हैं। प्रदेश में व्याप्त टिड्डी संकट के चलते किसानों में दहशत का माहौल बना हुआ है। टिड्डी दल किसानों की फसलों पर हमला कर रहा है। सरकारी तंत्र स्थिति को नियंत्रित कर पाने में नाकाम साबित हो रहा है। किसानों की आंखों के सामने देखते ही देखते टिड्डी उनकी फसल को चट करती जा रही हैं। खून के आंसू रोने के अलावा किसानों को और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है।

प्रदेश में इस बार सरकार द्धारा बिजली के बिलों में भारी बढ़ोतरी कर दी गयी है, जिससे आमजन में सरकार के प्रति रोष व्याप्त हो रहा है। बिजली बिलो में स्थाई शुल्क के नाम पर सरकार लोगों से हजारों रुपए की नाजायज वसूली कर रही है जिसने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। बिजली प्रकरणों की सरकारी स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बिजली विभाग के अधिकारी लोगों की वीसीआर भरने के नाम पर मनमानी कर रहे हैं। प्रदेश में बिजली विभाग सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है लेकिन जनप्रतिनिधियों के होटल में रहने से अधिकारियों पर किसी का नियंत्रण नहीं रहा है। पड़ोसी राज्यों की तुलना में राजस्थान में पहले से ही बिजली की दरें अधिक है। ऊपर से स्थाई शुल्क व अन्य विभिन्न प्रकार के शुल्क लगा देने से बिजली उपभोक्ताओं को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

राजस्थान में पेट्रोल और डीजल भी पड़ोसी राज्य गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश की तुलना में 8 से 10 रूपये प्रति लीटर महंगा मिल रहा है। लोक डाउन के दौरान राज्य सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर कई बार प्रदेश स्तरीय टैक्स में बढ़ोतरी कर दी थी, जिस कारण से राजस्थान में पेट्रोल और डीजल पड़ोसी राज्यों की तुलना में काफी महंगा बिक रहा है। इसका खामियाजा भी प्रदेश की आम जनता को उठाना पड़ रहा है। पेट्रोल, डीजल महंगा होने से यातायात व ट्रांसपोर्ट के साधन भी महंगे हो गए हैं। चर्चा है कि सरकार राजस्थान परिवहन निगम के यात्री किराए में भी बढ़ोतरी करने जा रही है। यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की जनता की तो कमर ही टूट जायेगी।

जनप्रतिनिधियों का नियंत्रण नहीं होने के कारण प्रदेश के सरकारी कार्यालयों में खुलकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। बिना रिश्वत आम लोगों का सरकारी कार्यालयों में काम करवाना मुश्किल हो रहा है। राज्य सरकार द्वारा घोषित बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलने से युवाओं में सरकार के प्रति नाराजगी है। प्रदेश में जन आधार कार्ड धारक लोगों को 3 लाख रूपये तक की मिलने वाली चिकित्सा सुविधा भी निजी अस्पतालों द्वारा नहीं दी जा रही है। अस्पताल प्रबंधकों का कहना है कि उनका पुराना बकाया का भुगतान सरकार ने नहीं किया। ऐसे में अब और अधिक उधार में इलाज करने की समर्थ नहीं है।

प्रदेश में अनलाक 2.0 की प्रक्रिया चल रही है। राज्य सरकार ने निजी व सरकारी बसों को चलाने की इजाजत दे रखी है लेकिन कोरोना के बढ़ते कहर से आम आदमी सहमा हुआ है तथा घरों से कम ही बाहर निकल रहा है। इस कारण अधिकांश बसों में सवारियां नहीं मिल रही है जिससे बसे खाली चल रही है।

कोरोना संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या के बावजूद सरकारी स्तर पर इसकी रोकथाम के लिए कड़े कदम नहीं उठाए जाने के कारण कोरोना को लेकर लोगों में लापरवाही देखने को मिल रही है। घरों से बाहर निकलने वाले लोग न तो मुंह पर मास्क लगाते हैं और न ही निर्धारित शारीरिक दूरी बनाए रखते हैं। प्रदेश में अन्य प्रांतों से आने वाले लोग बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण फैला रहे हैं। सरकारी छूट का फायदा उठाते हुए अन्य प्रांतों से लोग बेखौफ आ जा रहे हैं। जिस कारण से कोरोना का संक्रमण भी तेजी से फैल रहा है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने समर्थकों में जननायक कहलवाना पसंद करते हैं। गहलोत समर्थक उनको राजस्थान का गांधी भी कहते हैं। मगर पिछले एक महीने के दौरान प्रदेश में जिस तरह के राजनीतिक घटनाक्रम चल रहे है, उससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजस्थान के गांधी और जननायक वाली छवि खंडित हो रही है। लोगों का मानना है कि अपनी कुर्सी बचाने के चक्कर में मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रदेश की जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया है।

राजनीतिक उठापटक के चलते प्रदेश में उनकी सरकार कोरोना नियंत्रण पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रही है। और न ही जनता की अन्य परेशानियों को दूर कर पा रही है। इसके चलते लोगों के मन में धीरे-धीरे उनके जननायक की छवि के स्थान पर खलनायक की छवि बनती जा रही है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चाहिए कि अपनी सरकार को होटलों से बाहर निकाले। मंत्रियों को उनके प्रभार वाले जिलो में भेजकर लोगों की समस्याओं का समाधान करवायें। विधायकों को उनके निर्वाचन क्षेत्र में भेजकर कोरोना नियंत्रण की दिशा में प्रभावी कार्यवाही करवायें तभी प्रदेश में समय रहते कोरोना पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जनता में रहने से जनप्रतिनिधि आमजन की परेशानियों को भी दूर कर पायेगें। यदि समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में मुख्यमंत्री गहलोत को प्रदेश की जनता की बड़ी नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है जिसके चलते उनको राजनीतिक जीवन में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

(रमेश सर्राफ धमोरा-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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