बरौदा का किला जिताएंगे ओपी धनकड़?

बरौदा का किला जिताएंगे ओपी धनकड़?

लखनऊ। लगभग आठ महीने से चिर प्रतीक्षित हरियाणा भाजपा अध्यक्ष की घोषणा कर दी गई है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने ओम प्रकाश धनकड़ को सुभाष बराला के स्थान पर हरियाणा भाजपा अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। आमतौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस नियुक्ति का स्वागत किया है। परन्तु लोग सवाल खड़े कर रहे हैं कि जब यही करना था तो आठ महीने क्यों लगाए गए? जब हरियाणा मन्त्रिमण्डल का गठन किया गया था, तब भी जाटों की भाजपा से नाराजगी का मुद्दा गर्म था, अब हरियाणा भाजपा अध्यक्ष की घोषणा करते समय भी जाटों को संतुष्ट करने को प्राथमिकता दी गई है। पूर्व भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला भी जाट समुदाय से आते हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम बताते हैं कि जाट समुदाय भाजपा से छिटका तो रहा भी, अन्य समुदाय भी उसके पीछे पूरी तरह से गोलबंद नहीं हुआ। पिछले मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाले मन्त्रिमण्डल में जाट समुदाय से आने वाले दो नेताओं-ओम प्रकाश धनकड़ व कैप्टन अभिमन्यु को भारी भरकम विभाग देकर शामिल किया गया था। 2019 के लोकसभा चुनावों में हरियाणा से भाजपा को भारी जीत मिली। परन्तु विधानसभा चुनावों में 75 से अधिक का नारा अतिरेक साबित हुआ। परिणामतः दुष्यंत चैटाला की जननायक जनता पार्टी व निर्दलीयों के सहारे भाजपा सरकार बना सकी। कांग्रेस की सरकार इसलिए नहीं बन पाई क्योंकि चैटाला परिवार से कद्दावर कांग्रेसी नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रिश्ते सहज नहीं हैं। जाटों की नाराजगी का मुद्दा बार बार उछाला जाता है। परन्तु यह भाजपा नेतृत्व इस बात को समझना नहीं चाहता है कि हुड्डा, चैधरी देवीलाल व बंशी लाल के परिवार के आगे भारी महत्व देने के बावजूद भाजपा के जाट नेताओं को जाट समुदाय स्वीकार नहीं कर पा रहा है। ऐसा लगता है कि भाजपा जाटव, सैनी समाज सहित कई अन्य छोटे छोटे समाजों की अपेक्षाओं पर भी खरी उतर नहीं पा रही है। हरियाणा मन्त्रिमण्डल में जाट समुदाय का इस समय तीन कैबिनेट मंत्री व एक राज्य मंत्री प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । इतना महत्व अन्य किसी जाति को नहीं दिया गया है । बताया जा रहा है कि हरियाणा में नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर लंबे समय से यह मंथन किया जा रहा था कि नया अध्यक्ष बनाने के लिए क्या मापदंड तय किए जाएं?

भाजपा का एक वर्ग चाहता था कि न तो किसी को सांसद को अध्यक्ष बनाए और न ही किसी ऐसे नेता को प्रदेश की कमान सौंपी जो पिछला विधानसभा चुनाव हार गए हों? अंततः पार्टी नेतृत्वने लंबे विचार विमर्श के बाद तमाम सियासी गणित के साथ साथ जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को दृष्टिगत रखते हुए हार के पहलू को नजरअंदाज कर ओमप्रकाश धनकड़ के नाम को स्वीकार करते हुए उन के हाथों में प्रदेश भाजपा की बागडोर सौंपी। इस प्रकार हरियाणा में भाजपा के सत्ता में आने के बाद लगातार दूसरी बार किसी जाट नेता को ही अध्यक्ष का बनाया गया है।

ज्ञात हो कि भाजपा में प्रदेशाध्यक्ष के फैसले को लेकर पिछले लंबे समय से अटकलों का दौर चल रहा था। चर्चाओं के इन्हीं दौर में कई बड़े नाम जैसे- केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर, पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यु महिपाल व नायब सिंह सैनी सरीखे नेताओं के नाम सामने आने लगे। साथ-साथ जाट व गैरजाट को लेकर भी मंथन किया जाने लगा। जबकि पूर्व मंत्री ओ.पी. धनकड़ को हाईकमान ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंप कर अटकलों पर विराम लगा दिया है तो राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा धनकड़ के रूप में हुई इस नियुक्ति के भी मायने तलाशे जा रहे हैं।

विश्लेषकों के अनुसार धनकड़ को अध्यक्ष बनाकर हाईकमान ने विशेष संकेत दिए हैं। इनमें एक ओर जहां मुख्यमंत्री खट्टर की पसंद को भी देखा जा रहा है तो वहीं जाट नेता को ही कमान सौंपते हुए हाईकमान ने ये साफ कर दिया है कि वे हरियाणा में जाट समुदाय को एक तरफ करके कोई बड़ा जोखिम नहीं लेना चाहते, क्योंकि निकट भविष्य में खट्टर सरकार की पहली परीक्षा विधानसभा उपचुनाव जाटलैंड बरौदा में ही होना है। इस क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा की मजबूत पकड़ मानी जाती है और भाजपा अब तक इस क्षेत्र में एक बार भी जीत दर्ज नहीं कर पाई है। 58 वर्षीय ओम प्रकाश धनकड़ का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले में हुआ है। इनके पिता का नाम वेद मोहब्बत सिंह और माता का नाम छोटो देवी है। धनकड़ की प्रारंभिक शिक्षा गांव से शुरू हुई और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से इन्होंने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया। अध्ययन पूरा होने के बाद वर्षों भूगोल के लेक्चरर के तौर पर भिवानी में अध्यापन किया। 11 वर्षों तक अध्यापक रहे। 1978 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। धीरे-धीरे सामाजिक कार्यों में रूचि दिखाई और और 1980 से 1996 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए और वहां अपनी सेवाएं दी। वर्ष 1996 में धनकड़ ने भाजपा के रास्ते राजनीति में कदम रख दिया। ये हरियाणा की राजनीति में काफी सक्रिय रहे। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के खिलाफ मैदान में उतरे लेकिन हार गए। हरियाणा में 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में धनखड़ ने बादली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। उन्हें हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री बनाया गया। सरकार में कृषि, पंचायत और पशुपालन मंत्रालय समेत पांच विभागों का दायित्व संभाला। हालांकि, मंत्री रहते हुए 2019 का विधानसभा चुनाव वह हार गए थे। अब पार्टी ने उन्हें प्रदेश संगठन की कमान सौंपी है। वह कृषि मामलों के जानकार माने जाते हैं। इसी वजह से उन्हें पिछली सरकार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कृषि मंत्री बनाया था। ओपी धनखड़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्टेच्यू ऑफ यूनिटी आयरन कलेक्शन कॉरपोरेशन के वह नेशनल कोआर्डिनेटर रह चुके हैं।

भाजपा के किसान मोर्चा के वह 2011-2013 और 2013-2015 के बीच लगातार दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे । स्वदेशी जागरण मंच से भी जुड़ाव रहा। फिर 1996 में संघ ने उन्हें भाजपा में भेजा। भाजपा संगठन का वह हिमाचल प्रदेश में भी दायित्व देख चुके हैं। भाजपा नेतृत्व अप्रत्याशित निर्णय लेने में हिचकिचाता नहीं है । जिस प्रकार मनोहर लाल खट्टर को हरियाणा का मुख्यमंत्री , सुभाष बराला को अध्यक्ष पद देकर अचम्भित किया गया था । उसी प्रकार ओपी धनकड़ को अध्यक्ष पद सौंपा गया है। लोग भले ही उनकी नियुक्ति को जातीय तुला पर कस रहे हों, परन्तु खांटी संघी पृष्ठभूमि के नाते धनकड़ के माध्यम से हरियाणा भाजपा को अनुशासन में रहने का आला कमान का संदेश है। बरौदा सीट पर होने वाला उपचुनाव मनोहर लाल खट्टर सरकार की लोकप्रियता का परीक्षण करेगा। सम्भवतः धनकड़ या कैप्टन अभिमन्यु को बरौदा सीट पर चुनाव लड़ाकर पार्टी नेतृत्व हरियाणा भाजपा की राजनीति में संतुलन स्थापित कर सकता है।

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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