कोतवाल कपरवान और मनेन्द्र का साहस,जब एक अपील पर रुक गया था पथराव

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मुजफ्फरनगर नागरिकता संशोधन कानून 2019 के विरोध में शहर में उमड़ा आक्रोशित और बवाली तूफान थम कर गुजर चुका है, पत्थरबाजों के जौहर से से इस मुहब्बतनगर को लगी काली नजर भी अफसरों के हाथों तक पहुंचे अमन के फूल ने उतार दी है। हिंसा और उपद्रव के 10 दिन बाद बहाल हुए इंटरनेट के सफर ने फिर से परिवारों को सर्दी के सितम के बीच कोनों में गुमशुम सा कर दिया है, ऐसे में शहर बेफिक्र मदमस्त होकर नई मंजिल की ओर बढ़ गया है। खट्टी मीठी यादों के बीच ही इस हिंसा की कई कहानियां फिजां में सुनाई दे रही हैं, उनमें पुलिस और प्रशासन लोगों की निगाहों में एक खलनायक की तरह है, लेकिन कई ऐसे साक्ष्य सामने आ रहे हैं, जिनमें शहर को बचाने के लिए पुलिस अफसरों को पत्थरों के आगे खुद को समर्पित कर शांति बनाने काम किया है। एक सिपाही निजामुल हक ने जहां अपने घायल होकर भी अपने साथियों को बलवाईयों के बीच से सुरक्षित निकाली, वहीं मीनाक्षी चौक पर पथराव करती भीड़ के आगे शहर कोतवाली प्रभारी अपने सिपाहियों के साथ बेखौफ होकर डटे नजर आये। उनको समझाया और पथराव रोक दिया गया।





20 दिसम्बर को पुलिस प्रशासन के सारे अनुमान के विपरीत शहर में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में न केवल प्रदर्शन हुआ, बल्कि शहरी मौहल्लों के साथ ही आसपास के देहात से भी प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ उमड़ने के कारण हालात बेकाबू हो गये। प्रदर्शनकारी भीड़ ने आव देखा ना ताव, सुरक्षा के लिहाज से खड़े पुलिस फोर्स और अफसरों को निशाना बनाकर पत्थरबाजी शुरू कर दी। सिविल लाइन थाना क्षेत्र के मदीना चौक से पहला टकराव शुरू हुआ। वहां हालात इतने खराब हुए कि अफसरों और पुलिस फोर्स को भागना पड़ा।

इसके बाद भीड़ जब मीनाक्षी चौक पर अफसरों की सारी संभावनाओं के कहीं पार जा पहुंची तो वहां भी हालात सामान्य करने में पसीने छूट गये। यहां पर सुरक्षा के लिहाज से तमाम फोर्स और अफसर तैनात थे, लेकिन जब पथराव हुआ तो फोर्स बैकफुट पर थी। यहीं पर तैनात शहर कोतवाली प्रभारी अनिल कपरवान अपने थाने के सिपाही मनेन्द्र सिंह राणा सहित अपनी टीम के साथ डटे रहे। 20 दिसम्बर की इस घटना का एक वीडियो भी अब सामने आया है। इस वीडियो में मीनाक्षी पर जमा भीड़ सिटी सेंटर की ओर पुलिस कर्मियों पर मोटे मोटे पत्थरों और ईंटों से पथराव कर खदेड़ रही है। पत्थरों की इसी बारिश में शहर कोतवाल इंस्पेक्टर अनिल कपरवान और उनके साथ सिपाही मनेन्द्र राणा व अन्य सिपाही भी हाथ में लाठी लिये, लोेगों को रोकने के लिए आगे बढ़े जा रहे हैं। वह भीड़ का हिस्सा रहे युवकों के पथराव के बाद भी बिना कोई बदल प्रयोग किये ही अपनी बात उनको समझाने का प्रयास करते हैं। पथराव और भीड़ के हिंसक होने की परवाह किये बिना ही आगे बढ़ रहे कोतवाल और सिपाही मनेन्द्र राणा के साथ मौजूद अन्य पुलिस कर्मियों के सिर पर हेलमेट बंधा है, लेकिन लगातार पत्थर सामने से गोली की तरह आते देखने के बाद भी अनिल कपरवान ने हेलमेट को अपने हाथ में पकड़ा हुआ है। मनेन्द्र राणा भी बिना हेलमेट के पथराव में आगे और आगे बढते हैं। सिपाही मनेन्द्र सिंह राणा भी गुस्साये लोगों को शांति रखने की अपील करते हुए बिना हेलमेट ही आगे बढ़ते नजर आते हैं। इस वीडियो में कई पत्थर इन पुलिसकर्मियों को लगते दिखाई दे रहे हैं। इसके बाद भी शहर कोतवाली प्रभारी अनिल कपरवान, सिपाही मुनेन्द्र सिंह राणा और उनके हमराही पुलिसकर्मियों ने धैर्य नहीं खोया, वह लगातार भीड़ में शामिल लोगों से बात सुनो, बात तो सुन लो, हमारी बात सुन लो, कहते हुए शांति की अपील करते रहे। उनके इस धैर्य और अपील का असर भी हुआ, पथराव में आगे की पंक्ति के लोग अचानक रुक जाते हैं, इंस्पेक्टर अनिल कपरवान उनके पास जाकर उनको समझाते हुए दिखाई देते हैं, इसी बीच पीछे से और पथराव होने पर सिपाही मनेन्द्र राणा बचाव करते हैं, वह भी उनको समझाते हैं, पुलिस का सकारात्मक रुख देखकर अब प्रदर्शनकारी ही पुलिस की ढाल बन जाते हैं। वह दूसरे लोगों को समझाते हैं, यह भीड़ शांत होती है और पुलिस उनको दूर ले जाकर समझाने में सफल होती है।

जहां पर यह भीड़ पथराव करते हुए बढ़ रही थी, वहां दोनों ही समुदाय के धार्मिक स्थल और आवास भी थे। ऐसे हालात में इंस्पेक्टर अनिल कपरवान और उनके सिपाही मनेन्द्र राणा व दूसरे कर्मचारियों ने पत्थर खाकर भी जो धैर्य दिखाया, उसी का असर है कि आज मुजफ्फरनगर फिर से मुहब्बतनगर बना नजर आया है। शहर कोतवाली प्रभारी उस दिन की यह घटना याद करते हुए कहते हैं, ''मीनाक्षी चौक पर जब हम भीड़ को नियंत्रित करने में लगे थे, तो अचानक ही भीड़ की ओर से भारी पथराव शुरू कर दिया गया। सिर पर हेलमेट भी नहीं था, पुलिसकर्मियों ने हेलमेट दिया तो उसको हाथ में पकड़ने के बाद कुछ भी नहीं सूझा, मैं सिपाहियों के साथ इसी प्रयास में था कि किसी भी प्रकार इन प्रदर्शनकारियों को समझाकर रोका जाये, ताकि ज्यादा बवाल ना हो, बिना सोचे समझे ही हम सभी पथराव में ही आगे बढ़ गये। कई सिपाहियों के सिर पर भी हेलमेट नहीं था, अपनी चिंता करने की हमें सूझ ही नहीं रही थी। अचानक उपद्रव में केवल शहर दिखाई दे रहा था। हमारा प्रयास सफल भी रहा, हम कुछ ही देर में प्रदर्शन कर रहे लोगों को समझाने में सफल रहे और पथराव भी रुकवाया। वह कहते हैं, बाद में उस घटना को सोचकर उनको डर भी लगा कि उनके या फोर्स के अन्य कर्मियों के साथ कोई अनहोनी भी हो सकती थी। हमें इस बात की भी संतुष्टि है कि हम व्यापक हिंसा में भी स्थिति को बहुत जल्द कंट्रोल कर पाये।

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