फ्लैशबैक-इस ट्रिपल एनकाउंटर के बाद इंस्पेक्टर बने थे सीओ राजेश द्विवेदी

फ्लैशबैक-इस ट्रिपल एनकाउंटर के बाद इंस्पेक्टर बने थे सीओ राजेश द्विवेदी

मुजफ्फरनगर। जनपद में भोपा सर्किल के बाद आज पुलिस क्षेत्राधिकारी नगर के रूप में एसएसपी अभिषेक यादव की टीम का अहम हिस्सा बनकर मुजफ्फरनगर में अपराध उन्मूलन का काम कर रहे पुलिस अफसर राजेश कुमार द्विवेदी की सर्विस लाइफ में कई एडवेंचर मूमेंट आये। वह जब पुलिस सर्विस के शुरूआती दिनों मे ही थे, तो उनके ऐसे ही एक अवसर पर 35 दिनों से बदमाशों के चंगुल में फंसे एक भट्टा व्यवसायी को सकुशल बरामद कर परिजनों तक पहुंचाने का काम किया था। इसके लिए उनको बदमाशों से मुठभेड़ का सामना करना पड़ा और इस ट्रिपल एनकाउंटर ने उनको सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर बनाने की राह खोली।

मुजफ्फरनगर के सीओ सिटी राजेश द्विवेदी साल 1990-91 के बैच में उप निरीक्षक के रूप में उत्तर प्रदेश पुलिस फोर्स का हिस्सा बने। साल 1996 में उनकी तैनाती बुलन्दशहर जनपद में हुई, यहां तत्कालीन एसएसपी डीएस चैहान ने उनको औरंगाबाद थाने का प्रभारी बनाया। इसी बीच कोतवाली नगर थाना क्षेत्र से बदमाशों ने 50 लाख रुपये की फिरौती के लिए भट्टा व्यवसायी नैपाल सिंह का अपहरण कर लिया। इससे पूरे जनपद में सनसनी का माहौल बन गया था। एसएसपी डीएस चौहान ने इस वारदात को बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार किया। जनता का पुलिस पर दबाव भी बढ़ा। इस अपहरण कांड के लिए थाने में मुकदमा अपराध संख्या 50/1996 के रूप में अज्ञात बदमाशों के खिलाफ दर्ज किया गया। कई दिन तक अपहरण का सुराग नहीं लगने पर इस वारदात के खुलासे के लिए एसएसपी डीएस चौहान ने औरंगाबाद थानाध्यक्ष राजेश द्विवेदी के साथ ही तत्कालीन एसओ बीबीनगर अशोक कुमार वर्मा को लगाया। दोनों अपनी पूरी टीम के साथ नैपाल सिंह और उनके अपहरणकर्ताओं की सुरागरसी में जुट गये, लेकिन लाख प्रयासों के बावजूद भी बदमाशों का कोई पता नहीं चल पा रहा था। बदमाश भट्टा व्यवसायी के परिजनों को फोन कर लगातार पैसा मांग रहे थे। टीम के हाथ खाली देखकर एसएसपी ने राजेश द्विवेदी और अशोक कुमार के थाने पर आने पर रोक लगाते हुए दोनों थानों को अपनी निगरानी में चलाना शुरू कर दिया और उनको फुल टाइम वर्क करते हुए किसी भी तरह नैपाल सिंह की बरामदगी की जिम्मेदारी सौंप दी। यह बड़ी चुनौती थी। उस समय राजेश द्विवेदी के पास अपनी निजी मारूति-800 कार थी। इसी से वह नैपाल सिंह का सुराग लगाने में जुट गये। मुखबिरों की पूरी फौज को उतार दिया गया, लेकिन लगातार मिल रही विफलता के बावजूद भी उन्होंने अपना आत्मविश्वास कम नहीं होने दिया।

राजेश द्विवेदी इस चुनौतीपूर्ण दायित्व को याद करते हुए बताते हैं, ''जब वह जंगल-जंगल बदमाशों और नैपाल सिंह की तलाश में भटक रहे थे, तो उनको अनूपशहर थाना क्षेत्र के एक जंगल में खेत की चकरोड़ पर एक कार जाती नजर आयी। उनको संदेह हुआ तो उन्होंने कार का पीछा किया। यह देखकर कार चालक ने रफ्तार तेज कर दी। रास्ता सही नहीं होने पर यह कारण खेतों की ओर पलट गयी। इसमें सवार बदमाश कार से उतरकर खेतों के रास्ते फरार हो गये। मौके पर जब कार की तलाशी ली गयी तो इसमें मानव खोपड़ी और मानव हड्डियां बरामद हुई। इस संबंध में वह बताते है, ''कार से मानव हड्डी मिलना भी गंभीर था, सारी संभावनाओं को देखते हुए इस केस की पड़ताल भी की गयी। इसमें पता चला कि बदमाशों के गिरोह में एक महिला को लेकर विवाद हुआ तो अपने साथी और महिला की कार में ही हत्या कर उसके शव को वहीं पर रखा गया था।'' यहीं से राजेश द्विवेदी के हाथ नैपाल सिंह अपहरणकांड का पुख्ता सुराग लगा। वह यह पता करने में सफल हो गये थे कि यह अपहरण किस गिरोह के बदमाशों ने किया है। इसके बाद गिरोह के बदमाशों की तलाश शुरू हुई और इसके लिए वह अपनी टीम के साथ नरौरा तक जा पहुंचे। यहां गंगा के किनारे बदमाशों द्वारा नैपाल सिंह को रखा गया था। बदमाश चौकस थे कि यदि पुलिस आई तो वह गंगा को पार कर दूसरी ओर कासगंज जनपद की सीमा में पहुंच जायेंगे। पुलिस टीम के सामने कम से कम नुकसान के साथ नैपाल सिंह की सकुशल बरामदगी की चुनौती थी।

एसएसपी डीएस चौहान खुद टीम को लीड कर रहे थे इसी दौरान राजेश द्विवेदी और पुलिस टीम ने बदमाशों की घेराबंदी की और मुठभेड़ हो गयी। यह रियल मुठभेड़ थी। बदमाशों की संख्या का पुलिस को कुछ आइडिया नहीं था। केवल एक जुनून था कि नैपाल सिंह को सुरक्षित छुड़ाना है। इस एनकाउंटर में तीन बदमाश मौके पर मारे गये थे, इतनी बड़ी कार्यवाही में भी पुलिस नैपाल सिंह को सुरक्षित बचाने में कामयाब हुई और अपहरण के 35 दिनों के बाद यह भट्टा व्यवसायी अपने परिजनों के बीच पहुंचा दिया गया। यह मुठभेड़ पुलिस के लिए इतनी बड़ी थी कि इस मुकदमे में एसएसपी डीएस चौहान स्वयं वादी बने थे। 1996 में राजेश द्विवेदी द्वारा किये गये इस एडवेंचर मूमेंट ने ही उनकी तरक्की के रास्ते भी खोल दिये थे। इस ट्रिपल एनकाउंटर ने उनको आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिलाया और वह 27 दिसम्बर 1998 में यूपी पुलिस में इंस्पेक्टर बने। बात भले ही फ्लैश बैक की हो, लेकिन आज सीओ सिटी बने राजेश द्विवेदी भी इस घटना के खुलासे को लेकर बनी चुनौतियों को जहन से नहीं उतार पाये हैं।

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