14 साल की 'अनंत' तपस्या का फल, चम्बल में ददुआ एवं ठोकिया का एनकाउन्टर

14 साल की अनंत तपस्या का फल, चम्बल में ददुआ एवं ठोकिया का एनकाउन्टर

मुजफ्फरनगर। साल 2017 के मई माह में मुजफ्फरनगर जनपद के नये पुलिस कप्तान के रूप में कार्यभार ग्रहण करने वाले आईपीएस अनन्त देव आज इस संवेदनशील जनपद में साम्प्रदायिक सौहार्द्र को प्रगाढ़ करने के साथ ही अपराधियों पर लगाम लगाने में शत प्रतिशत सफल हुए हैं। अनन्त देव ने मुजफ्फरनगर में अब तक सात बड़े बदमाशों को मुठभेड़ों में ढेर कर दिया है और विभिन्न एनकाउन्टर में 50 से ज्यादा बदमाशों को वो जेल भिजवा चुके हैं। ऐसा नहीं है कि अनन्त देव ने मुजफ्फरनगर जनपद में ही अपराधियों के खिलाफ अभियान चलाया है। पुलिस सर्विस में आने के बाद से ही उनको बड़े आॅपरेशन करने का अवसर प्राप्त हुआ है। चंबल में 32 साल तक आतंक मचाते हुए एकछत्र राज करने वाले कुख्यात डकैत शिवकुमार उर्फ ददुआ और उसके शिष्य अम्बिका पटेल उर्फ ठोकिया को उनके साथियों के साथ एनकाउन्टर में ढेर करने की सफलता उनके नाम हैं। आईये! हम यहां आपको अनन्त देव की चम्बल की घाटी में ददुआ और ठोकिया के एनकाउन्टर की कहानी बताते हैं....
1993 से 2007 तक ददुआ के पीछे रहे अनंत देव
साल 1991 में यूपी पुलिस में डीएसपी बने अनंत देव को इटावा में एक 'नेता जी' के नजदीकी माफिया को उठाकर बन्द कर देने के बाद सजा क तौर पर सीओ कोंच बनाकर बांदा चित्रकूट में 1993 में बीहड़ गेस्ट हाउस में कैम्प करा दिया गया। अनंत उस अनुभव को ताजा करते हुए बताते हैं कि उनकी सर्विस के पहली पनिशमेंट के रूप में गेस्ट हाउस के इस ठहराव ने उनको अपनी सर्विस का सबसे बड़ा मोटिव दिया। यहां एसआई कमल यादव से उनकी मुलाकात हुई। उन्हीं के मुंह से बीहड़ के आतंक ददुआ डकैत के बारे में सुना, ददुआ गैंग से मुठभेड़ की उत्सुकता भी बढ़ने लगी। साल 1994 में सीओ अनंत ने ददुआ का सामना कर उसे पकड़ने के लिए जानकारी जुटाने के साथ साथ प्लान बनाना भी शुरू कर दिया था, बड़े अफसरों को भी इसकी जानकारी दी। इसी बीच शासन ने उनका ट्रांसफर आजमगढ़ जनपद में कर दिया। क्षेत्र बदला तो ददुआ आॅपरेशन भी ठंडे बस्ते में चला गया। 2001 में शासन ने उनको डीएसपी से एएसपी रैंक में प्रमोट किया और एसटीएफ में तैनात कर दिया। 2001-02 में बीहड़ में पड़े रहे, ददुआ के खिलाफ आॅपरेशन चलाया, 1993 के बाद ददुआ मिशन पर ये उनको मिला दूसरा अवसर था, जो सफल नहीं हो पाया। चुनाव के बाद उनको बीहड़ से वापस बुलाया और 2003 में एसटीएफ से हटा दिया गया। वो एसटीएफ में रहना चाहते थे, उनको महाराजगंज भेजा गया, ज्वाइन नहीं किया। बाद में नोएडा में एसपी सिटी बना दिया गया। जब वो एसएसपी नवनीत सिकेरा के साथ एसपी सिटी वाराणसी पद पर तैनात थे, तो उनको एसपी जीआरपी (झांसी अनुभाग) बना दिया गया। कई साल बाद पूर्वांचल में पहुंचे तो फिर से ददुआ से सामने की उनकी दबी जिज्ञासा उभरी। उनके सिर पर एक ही जुनून सवार था, ददुआ डकैत को पकड़ना है, ये जुनून कब एक जिद बन गया, खुद उनको भी पता नहीं चल पाया। एसपी जीआरपी झांसी के पद पर छह माह तैनात रहे। अवसर नहीं मिल पाया, प्लान बड़ा था। ददुआ की खबर उनको मिलती रही। इसी बीच कुम्भ मेला आ गया। उनको एसपी जीआरपी इलाहाबाद बना दिया गया, लेकिन उन्होंने एसटीएफ में जाने की इच्छा जाहिर की। चुनावी दौर में ट्रांसफर पर रोक के चलते डीजीपी जी.एल. शर्मा ने उनको नहीं बदला, लेकिन अनंत की जिद के आगे वो भी विवश हुए और एसटीएफ में उनको अटैच कर दिया गया। उनके साथ पीएसी कमांडेंट बाराबंकी आईपीएस अमिताभ यश को एसटीएफ का एसएसपी बनाया गया। जी.एल. शर्मा हटे तो आईपीएस विक्रम सिंह डीजीपी बने, उन्होंने मानिकपुर-पाठा बीहड़ में आॅपरेशन ददुआ को पूरा करने के लिए अमिताभ यश के साथ अनंत को टीम लेकर भेज दिया। मानिकपुर बीहड गेस्ट हाउस में एक साल तक एक बेड पर वो अमिताभ यश के साथ सोये। उनके दल में एके 47 से लैस करीब 24 जवान शामिल थे, लेकिन ददुआ की गंैग में करीब 40-45 कुख्यात डकैत थे, उनके पास भी एके 47 जैसे घातक हथियार रहते थे। फिर वो दिन भी आया, जब इस सुपर काॅप की 'अनंत' तपस्या को विराम मिला। 22 जुलाई 2007 को जब एसएसपी अमिताभ यश की अगुवाई में एएसपी अनंत देव पूरे दलबल के साथ बीहड़ में ददुआ के गैंग की तलाश में कांबिंग कर रहे थे तो ददुआ से सामना हो गया। दोनों ओर से भयंकर फायरिंग हुई और जब तड़तड़ाहट का शोर थमा तो ददुआ के आतंक की कहानी का अंत लिखा जा चुका था।
अनंत देव बताते हैं, ''...1993 से ददुआ के खिलाफ जो जुनून उनमें पैदा हुआ, उसके साक्षी उनके गुरू आईपीएस जितेन्द्र कुमार शाही और प्रशासनिक सेवा के अफसर राजीव सब्बरवाल को बीहड़ से ही फोन कर खुद अनंत ने ददुआ के एनकाउन्टर की जानकारी दी। दरअसल अनंत के सिर जिस प्रकार से ददुआ से एक मुलकात की दीवानगी सवार थी, उसको लेकर यूपी के पुलिस व कई प्रशासनिक अफसरों में भी गाहे बगाहे चर्चा होती रहती थी, इसमें कई अफसरों ने अनंत देव को हर कदम प्रोत्साहित किया, इन्हीं अफसरों में जितेन्द्र शाही, राजीव सब्बरवाल और डीजीपी विक्रम सिंह के नाम शामिल रहे। ददुआ पर सात लाख रुपये का ईनाम घोषित था। उसके साथ उसके पांच साथी डकैत भी मारे गये।
ददुआ के शिष्य 6 लाख के ईनामी डकैत ठोकिया को ठोका
पाठा बीहड़ के आतंक दस्यु ददुआ के मारे जाने के 24 घंटे के अंदर उसके शिष्य डकैत अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया ने उन छह एसटीएफ जवानों को घात लगाकर मार दिया जो ददुआ को मारने का कारनामा करने वाले एसएसपी अमिताभ यश व एएसपी अनंत देव के पुलिस दल में शामिल थे। इस घटना ने एसटीएफ को हिलाकर रख दिया। सीएम मायावती के आदेश पर एसटीएफ को आॅपरेशन ठोकिया का जिम्मा देकर बीहड़ में उतार दिया गया।
ठोकिया पर उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में 60 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। उत्तर प्रदेश प्रदेश सरकार ने उस पर पाँच लाख रुपए तथा मध्य प्रदेश सरकार ने एक लाख रुपए का इनाम घोषित किया था। पुलिस को सूचना मिली थी कि ठोकिया थाना कोतवाली कर्वी जनपद चित्रकूट में अपने 20 साथियों के साथ कोई गंभीर अपराध करने वाला है, इस सूचना पर एसटीएफ ने अपनी 24 जवानों की टीम के साथ रात में कॉंम्बिंग प्रारम्भ की। 4 अगस्त 2008 को एसटीएफ ने सिलखोरी जंगल की घेराबंदी की और रात 2.30 बजे बदमाशों से मुठभेड़ हो गई, जिसमें डकैत ठोकिया मारा गया। पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने ठोकिया का डीएनए कराकर उसकी शिनाख्त कराई। इस तरह एसटीएफ ने ठोकिया को ठोककर अपने शहीद जवानों को श्रद्धांजलि भी दी। ठोकिया उर्फ अम्बिका उर्फ डॉक्टर उर्फ लोटवा पटेल का जन्म 1972 में ग्राम लोखरिया पुरवा, थाना कर्वी जनपद चित्रकूट में हुआ था। वह अपने माँ-बाप की पहली संतान था। इंटरमीडिएट तक शिक्षित ठोकिया बचपन में ही बुरी संगत में पडने के कारण गाँव में ही छोटे-छोटे अपराध करने लगा। इसी दौरान संता खैरवार गैंग के साथ मिलकर पहली बार उसने अपने ही गाँव के राजेश का अपहरण फिरौती हेतु किया।
बीहड़ में किया आतंक का खात्माः आईपीएस अनंत देव बीहड़ के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उस दौरान मरने और मारने का जुनून सवार रहता था। अनंत देव की ससुराल बांदा में थी। वो खुद फतेहपुर के ग्रामीण अंचल से थे। जब ददुआ के अंत के लिए बीहड़ में रहे तो परिजनों को चिंता हुई। बांदा में ददुआ के गैंग के सदस्य सक्रिय थे और समर्थक भी बहुत थे, ससुराल वालों के साथ पत्नी को भी डर रहता था, लेकिन वो खुद कभी नहीं डरे। पाठा के बीहड़ जिसे लोग चंबल के नाम से जानते हैं, में डेढ साल की तैनाती में अनंत देव ने 32 बदमाशों के अंत की कहानी लिखी। वो कहते हैं उन दिनों चंबल में 12-13 बड़े गैंग सक्रिय थे। इनमें 150-200 डकैतों का गु्रप पूर्वांचल में तांडव मचाये रखता था। एसटीएफ से मुठभेड़ हुई तो 32 के सफाये क बाद ये गिरोह यूपी छोड़कर मध्य प्रदेश में शरणार्थी बन गये।
माया ने दिया सबसे बड़ा ईनाम, तीन गलैंट्री अवार्ड मिले
पाठा बीहड़ से आतंक का खात्मा करने वाले अनंत देव को मुख्यमंत्री मायावती ने खुद उत्कृष्ट पुलिस सेवा मेडल प्रदान किया। अनंत देव के साहसिक कारनामों का उदाहरण यही है कि उनको तीन बार गलैंट्री अवार्ड प्रदान किया गया। डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी भी अनंत देव को दिल्ली में आयोजित समारोह में सम्मानित कर चुके हैं। अनंत देव सीएम मायावती के सम्मान समारोह का आज भी याद करते हैं, वो बताते हैं कि यूपी में आॅपरेशन ददुआ सबसे बड़ा चैलेंज बना था। आईपीएस अमिताभ यश के नेतृत्व वाले इस गु्रप में जितने भी जवान शामिल थे, सभी को तीन-तीन लाख रुपये का नकद पुरस्कार और मेडल मुख्यमंत्री मायावती ने दिये। ये अभी तक यूपी में किसी भी पुलिस आॅपरेशन में दी गई सबसे बड़ी ईनामी राशि थी।

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