साल 2018 में भारत में नये राजनीतिक समीकरणों का उदय हो सकता है

साल  2018 में भारत में नये राजनीतिक समीकरणों का उदय हो सकता है

लखनऊ : पहले से ही इस तरह की उम्मीद की जा रही थी कि वर्ष 2018 में देश में नये राजनीतिक समीकरणों का उदय हो सकता है, ठीक उसी प्रकार से कालचक्र ने अपनी गति को दिखाना प्रारम्भ कर दिया है। चुनाव आयोग ने उत्तर -पूर्व के तीन राज्यों मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड में विधानसभा चुनावों का ऐलान कर दिया है। यही नहीं राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण राजस्थान में भी दो लोकसभा उपचुनाव व एक विधानसभा उपचुुनाव होने जा रहे हैं। वहीं मध्यप्रदेश मं भी दो विधानसभा सीटों के उपचुनाव होने जा रहे है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी के 20 सदस्यों की सदस्यता रद्द होने के बाद वहां पर भी उपचुनाव होंगे तथा देश व प्रदेशों का राजनीतिक वातावरण गर्म हो जायेगा। चुनाव आयोग ने लाभ के पद पर रहने के कारण आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता को रदद करने की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेज दी थी। दिल्ली हाईकार्ट ने भी आप विधायकों को राहत देने से मना कर दिया है। राष्ट्रपति के पास भी राहत नहीं मिली।
सबसे पहले बात करते हैं उत्तर- पूर्व राज्यों की । इस बार असोम और मणिपुर में भाजपा ने जिस प्रकार से सफलता प्राप्त की है और नोटबंदी व जीएसटी के कारण मोदी सरकार के ऊपर हो रहे जबर्दस्त हमलों के बावजूद पंजाब को छोड़कर सभी राज्यों में विधानसभा चुनावों में विजय पताका फहराने में सफलता हासिल की है। उसके बाद अब भाजपा इन राज्यों में पहली बार पूरी ताकत के साथ सरकार बनाने के उददेश्य से चुनावी मैदान में उतरने जा रही है। तीनों ही राज्यों में विधानसभा में 60 सीटें है। यह सभी राज्य अंतहीन राजनीतिक अस्थिरता के दौर से बुरी तरह पीड़ित हैं तथा यहां की जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त व आतंकवाद-अपराध के कारण विकास के लक्ष्य से कोसों दूर है। केवल त्रिपुरा को छोड़कर मेघालय और नागालैंड हमेशा राजनीतिक स्थिरता के दौर से गुजरे हैं। इन राज्यों के लिए सबसे बड़ी समस्या विकास है। यहां पर एक-दो विधायकों के बगावत कर देने मात्र से ही सरकारें बनती-बिगड़ती रही हैं। केंद्र में जिस दल का बहुमत होता है तो वहां पर वह दल दलबदल करवाकर या अपनी मर्जी से ही विधायक दलबदल कर सरकारें बदल देते हैं। इन राज्यों में से सिर्फ नगालैंड ही एक ऐसा राज्य है जहां भाजपा अपने सहयोगी दल नगा पीपुल्स फ्रंट लीड डेमोक्रेटिक एलायंस की सरकार में है जिसको भाजपा का समर्थन प्राप्त है। यहां पर भाजपा का एकमात्र विधायक है। यह एक महत्वपूण तथ्य भी है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर नागा पीपुल्स फ्रंट में आपसी झगड़ा है। जिसका लाभ कांग्रेस व भाजपा दोनों ही दल उठाना चाह रहे हैं। यही कारण है कि बीजेपी नगालैंड को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा देगी। बीजेपी के एक प्रमुख सहयोगी जदयू ने चुनावी मैदान में अकेले उतरने का ऐलान कर दिया है। इससे भी समस्या बढ़ी है लेकिन भाजपा को उम्मीद है कि पीएम मोदी और अध्यक्ष अमित शाह के दौरों के बाद यहां पर भी हालात बदलेंगे और एनडीए की सरकार बन जायेगी। साथ ही बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार केंद्र सरकार जिस प्रकार से पूर्वोत्तर के राज्यों के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है और नागा समस्या के हल के लिए उपाय कर रही है उसके बाद यहां की जनता पीएम मोदी को अपना आशीर्वाद अवश्य देगी। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या यहां पर उसका अपना संगठन बेहद बुरे दौर में है औेर यह भी संकट है कि मुख्यमंत्री कौन होगा ?
भाजपा को यदि इस बार सबसे अधिक उम्मीद जिस राज्य से बनती दिखलायी पड़ रही है तो वह है मेघालय। मेघालय अभी कांग्रेस के साथ है और मुकुल संगमा मुख्यमंत्री है लेकिन अभी चुनावी ऐलान से पहले जिस प्रकार से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मेघालय का दौरा किया और कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक विधायकों ने बगावत करके सनसनी मचा दी, उसके बाद बीजेपी व उसके सहयोगी दलों की उम्मीदों का ग्राफ बेहद बढ़ गया है। पिछली बार विधानसभा चुनावों में बीजेपी के सभी उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गयी थीं लेकिन इस बार बीजेपी 40 सीटों के साथ आने का मजबूत दावा कर रही है। यही राज्य के इतिहास में पहली बार होने जा रहा है कि बीजेपी जबर्दस्त बढ़त के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही है। बीजेपी जहां काफी मनोबल के साथ चुनावी मैदान में उतरने जा रही है तो कांग्रेस के मन में भय व्याप्त हो गया है कि कहीं पूर्वोत्तर का यह राज्य भी उसके हाथ से न निकल जाये यदि कहीं ऐसा हो गया तो कर्नाटक जैसा बढ़ा राज्य बचाने मंे उसके पसीने छूट जायेंगे।
अब बात त्रिपुरा की। पश्चिम बंगाल के बाद अब केवल त्रिपुरा ही वामपंथियों का सबसे मजबूत गढ़ बचा है लेकिन इस बार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के तूफानी दौरे से राज्य में हलचल मच गयी है। यहां सीपीएम के नेतृत्व वाली सरकार 1993 से लगातार सत्ता में हैं। अभी तक कोेई भी मुख्यमंत्री माणिक सरकार के खिलाफ आंदोलन ,बगावत व राजनैतिक साजिशें आदि नहीं कर सका है। यहां तक कि कांग्रेस व अन्य दल भी अपना कोई वजूद बचा नहीं सके हैं। लेकिन इसबार त्रिपुरा में अमित शाह कम से कम 35 सीटों पर जीत क लक्ष्य तय करके गये हैं तथा वहां के लिए विशेष रणनीति पर काम कर रहे हंै। राज्य में पीएम मोदी, उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व स्वयं अमित शाह इस बार धुआंधार प्रचार करने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस नाथ संप्रदाय से आते हैं, वहां पर उनकी आबादी बहुत अधिक है और कम से कम 35 सीटों पर सीधा असर करते हैं। यही कारण है कि यहां के चुनावों में उनकी लोकप्रियता का लाभ उठाने का प्रयास किया जायेगा। जातिगत समीकरणों को साधने के बाद राज्य कर्मचारियों, किसानांे व युवाओं को आकर्षित करने के लिए भी लोकलुभावन मुददों को खोज लिया गया है। त्रिपुरा के राज्य कर्मचारियों को अभी भी केवल चैथा वेतन आयोग ही मिल रहा है जबकि बीजेपी ने राज्य में सातवां वेतन आयोग लागू करने का ऐलान किया है जिससे कर्मचारियों का झुकाव बीजेपी की ओर होने की संभावना बनती दिखलायी पड़ रही है। अभी हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी रैली में भारी भीड़ को देखकर कहा था कि इस रैली में जिस प्रकार से भीड़ आ रही है उससे पता चल रहा है कि अब त्रिपुरा में भी परिवर्तन होगा। उन्होंने त्रिपुरा सरकार को देश की सबसे भ्रष्टतम सरकार बताया और जनता से इसे उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। त्रिपुरा में वामपंथी सरकार बनने के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं उन सभी चुनावों में बीजेपी के सभी उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हुई है। इतनी विपरीत परिस्थितियों में यदि बीजेपी पूरी ताकत के साथ लक्ष्य के साथ लड़ने जा रही है तो यह भी एक बड़ी बात है। यदि कहीं बीजेपी यहां पर अपनी सरकार बना लेती है तो यह एक अपूर्व चमत्कार और वामपंथ को करारा आघात होगा। इस बार वामपंथ के लिए लड़ाई असान नहीं होने जा रही है।
दूसरी सबसे बड़ी बात यह हैं कि इन राज्यों के समाचार मीडिया में तभी सुर्खियां बनते हैं जब कुछ वहां बहुत बड़ा होता है । रहीं बात राजस्थान और मप्र के उपचुनावों की यदि बीजेपी इन चुनावों को जीत लेती है तो मुख्यमंत्रियों की कुर्सी सुरक्षित रहेगी लेकिन यदि परिणाम विपरीत चले गये तो बीजेपी के लिए कुछ परेशानी का संकेत दे जायेंगे।

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