भारत में हिंसा के पीछे कौन?

भारत में हिंसा के पीछे कौन?

नई दिल्ली। पाक व तुर्की की जुगलबंदी भारत के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई है। बेंगलुरु हिंसा के बाद पाकिस्तान की प्रतिक्रिया बताती है कि भारत को जेहादी हिंसा में झोंकने में तुर्की की आर्थिक फंडिंग का भी हाथ हो सकता है। रिपोर्टें बताती हैं कि तुर्की जेहादी इस्लाम का नया केंद्र बन गया है, वह भारत विरोधी तत्वों को आर्थिक व वैचारिक सहायता मुहैया करा रहा है। हद तो तब हो गई, जब अंतरराष्ट्रीय मंच का उपयोग पाक की बोली के अनुसार तुर्की कर रहा है। जानकारी हो संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र के अध्यक्ष वोल्कान बोजकिर ने कहा कि कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के मतभेद दूर करने के लिए वह अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे में मदद करने को तैयार हैं, बशर्ते कि दोनों पक्ष इसके लिए अनुरोध करें।

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ संवाददाता सम्मेलन में बोजकिर ने कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान दक्षिण एशिया में सतत शांति के लिये महत्वपूर्ण है। बोजकिर संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) का अध्यक्ष बनने वाले तुर्की के प्रथम राजनयिक हैं।

स्मरण रहे एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के माध्यम से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्की भारत में मुसलमानों में कट्टरता बढ़ाने व और उग्रवादियों की भर्तियों की कोशिश कर रहा है। उसकी यह कोशिश दक्षिण एशियाई मुस्लिमों पर अपने प्रभाव के विस्तार की कोशिश है। तुर्की को फिर से मजहबी कट्टरता की ओर ले जा रहे राष्ट्रपति एर्दोआन का सपना खुद को मुस्लिम देशों के नेता के तौर पर स्थापित करने का है।

एर्दोआन ने पिछले दिनों ऐतिहासिक हगिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदल दिया जो सन 1453 तक एक चर्च रहा था। एर्दोआन मुस्लिम जगत में सऊदी अरब की बादशाहत को चुनौती देने की लगातार कोशिशों में लगे हैं। पिछले साल उन्होंने मलयेशिया के तत्कालीन पीएम महातिर मोहम्मद और पाकिस्तान पीएम इमरान खान के साथ मिलकर नॉन-अरब इस्लामी देशों का एक गठबंधन तैयार करने की कोशिश की थी।

भारतीय अधिकारियों का अनुमान है कि एर्दोआन अपने राजनीतिक अजेंडा के अंतर्गत दक्षिण एशियाई मुस्लिमों खासकर भारतीय मुसलमानों पर तुर्की के प्रभाव का विस्तार करना चाहते हैं। तुर्की की सरकार सैयद अली शाह गिलानी जैसे कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादी नेताओं को कई सालों से पैसे देती रही है।

एर्दोआन सरकार भारत में मजहबी आयोजनों और लोगों को कट्टर बनाने के लिए चरमपंथियों की भर्ती के लिए भी फंडिंग कर रही है। इसके अलावा नए नवेले कट्टरपंथियों को अपने खर्चे पर तुर्की का दौरा भी करा रही है। बताया जाता है कि सुरक्षा एजेंसियों को पता चला है कि तुर्की ने केरल के एक कट्टर मुस्लिम संगठन को भी कुछ समय के लिए फंड दिए गए। इस ग्रुप के कुछ लोगों ने तुर्की के लोगों से मुलाकात के लिए कतर का दौरा किया ताकि उन्हें अपनी गतिविधियों के लिए पैसे मिलें। यह भी बताया जा रहा है कि केरल में कट्टर इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए 40 लाख रुपये तक दिए जा रहे हैं।

अधिकारियों ने यह भी बताया कि पाकिस्तान के साथ मिलकर तुर्की जाकिर नाइक को भी कतर के रास्ते फंडिंग की है। विवादित इस्लामी उपदेशक नाइक मुस्लिमों को कट्टर बनाने और आतंक का रास्ता चुनवाने का आरोपी है। भारत को उसकी तलाश है और फिलहाल वह मलयेशिया में रह रहा है।

कहा जा रहा हैं कि तुर्की अब पाकिस्तान का नया दुबई बन चुका है। ध्यान रहे संयुक्त अरब अमीरात का यह शहर 2000 से 2010 के बीच पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई का दूसरा घर और पश्चिम एशिया में भारत विरोधी गतिविधियों का धुरी बन गया था। बताया जा रहा है कि तुर्की में भारत विरोधी प्रोपेगेंडा के पीछे बड़े लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जिसके लिए भारत के मध्यम मुस्लिमों वर्ग को फंसाने के लिए शिक्षा को हथियार बनाया जा रहा है । भारतीय छात्रों को पैसे, स्कॉलरशिप देकर अपनी ओर आकर्षित किया जा रहा है. इस काम में दियानत फाउंडेशन के अलावा तुर्की की सरकार सक्रिय भूमिका निभा रही है. जो भारतीय मुस्लिम छात्रों को मुफ्त शिक्षा के साथ वजीफे का लालच दे रही है।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 5 अगस्त 2019 से अबतक तुर्की के विश्वविद्यालयों में कम से कम 30 ऐसे कांफ्रेंस, सेमिनार आयोजित किए जा चुके हैं, जिसके केंद्र में कश्मीर मुद्दा और भारत विरोधी भावनाओं को उभारने की कोशिश रही. तुर्की में आईएसआई के प्रॉक्सी और वर्ल्ड कश्मीर फोरम के जरनल सेक्रेटरी गुलाम नबी फई स्वयं ऐसे अनेक कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं। जबकि तुर्की में पाकिस्तान के राजदूत सायरस सज्जाद काजी भी इन कार्यक्रमों में सहभागी रहे हैं। इस्तांबुल के ऐदिन विश्वविद्यालय में जम्मू एंड कश्मीर अंडर द प्रेशर ऑफ फार राइट नेशनलिज्म, कश्मीर का सवाल, 5 अगस्त से अब तक अनंत मार्शल लॉ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन पाकिस्तानी दूतावास कर चुका है। ऐसे कार्यक्रमों में भारतीय मूल के छात्रों को खासतौर पर बुलाया जाता है, जिसमें कश्मीर घाटी के नेता और भारत विरोधी विद्वानों के भाषण होते हैं. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के राष्ट्रपति सरदार मसूद खान भी ऐसे अनेक कार्यक्रमों को संबोधित कर चुके हैं।

तुर्का में पाकिस्तान समर्थित संस्थान जैसे कश्मीर सिवितास और कश्मीर वर्किंग ग्रुप जैसे गुट तुर्की के शैक्षणिक संस्थानों में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर चुके हैं, जिसमें भारत विरोधी प्रोपेगेंडा फैलता जाता है. और पाकिस्तान के समर्थन मेें तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं।

इस्तांबुल विश्वविद्यालय में उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. हलील टोकर ऐसे कार्यक्रमों के केंद्र में रहे हैं। हलील टोकर को पाकिस्तानी प्रॉक्सी माना जाता है और उन्हें साल 2017 में पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सितारा-ए-इम्तियाज से पाकिस्तानी सरकार सम्मानित भी कर चुकी है। कश्मीर को लेकर भारत विरोधी भावनाओं को उभारने में लगी ऐ संस्थाओं में साउथ एशिया स्ट्रेटजिक रिसर्च सेंटर, तुर्की यूथ फाउंडेशन का रीजनल एक्सपर्ट ट्रेनिग प्रोग्राम, वाईटीबी सम्मिलित हैं। साथ ही दो ऐसी संस्थाएं भी इसमें सम्मिलित हैं, जो समूचे विश्व में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन की इमेज सुधारने के लिए प्रोपेगेंडा चलाते हैं। इनमें पहला नाम तुर्की के रिलीजियस एफेयर्स डायरेक्टरेट्स का तुर्किए दियानत फाउण्डेशन और ह्यूमैनिटेरियन रिलीफ फाउंडेशन है। ये दोनों संस्थान भी तुर्की में भारत विरोधी भावनाओं को परवान चढ़ाने में लगे हुए हैं।

यहाँ तक कहाँ जा रहा है कि है कि वाईटीबी और टीयूजीवीए सीधे तौर पर राष्ट्रपति एर्दोगन के बेटे बिलाल एर्दोगन के इशारे पर चलते हैं, जो एर्दोगन सरकार की भारत विरोधी गतिविधियों के प्रमुख किरदार हैं।

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई तुर्की के नेताओं की कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी भावनाओं को उभारने और उसका लाभ लेने के लिए तुर्की सरकार समर्थित संस्थानों की भरपूर सहायता ले रही है। यही नहीं, आईएसआई तुर्की सरकार के विपक्षी नेताओं के साथ भी संबंध बना रही है। जिससे यदि भविष्य में तुर्की में सरकार बदलती भी है, तब भी वो तुर्की को सामने रखकर भारत विरोधी प्रोपेगेंडा चलाती रहे । उल्लेख है कि विगत वर्ष 2019 में जब से नरेंद्र मोदी भारत के दुबारा प्रधानमंत्री बने हैं तब से आंतरिक व बाह्य मोर्चे पर भारत कठिन दौर से गुजर रहा है। विदेश मंत्रालय पूरी तरह से ब्यूरोक्रेसी के हाथों में देने से राजनयिक मोर्चे पर असफलता हाथ लगती नजर आ रही है। बेंगलुरू हिंसा दिल्ली दंगों की वापिसी दिखाई पड़ रही है। समीचीन होगा यदि भारत सरकार व राज्य सरकारें तुर्की व पाक सहित किसी भी विदेशी हाथ का कोरियर बनने से मजहबी समुदाय या उसके समर्थक कॉकस पर लगाम लगाए।

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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