फैसला स्वीकार पर संतुष्ट नही : मौलाना ताहिर मदनी

फैसला स्वीकार पर संतुष्ट नही : मौलाना ताहिर मदनी
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लखनऊ राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना ताहिर मदनी ने अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपना बयान देते हुए कहा कि हम संवैधानिक मूल्यों में विश्वास रखते हुए इस फैसले को स्वीकार तो करते हैं पर हम इससे संतुष्ट नही हैं।



चूंकि ये फैसला हमारी उम्मीदों के अनुसार नही है और मुसलमानो की एक बड़ी तादाद को लगता है कि ज़मीन के मालिकाना हक (title suit) के इस मुक़दमे में उन्हें न्याय नही मिला। इस लिए इस मसले पर आगे की क़ानूनी चारागोई जारी रहनी चाहिए और रिव्यु फ़ाइल किया जाना चाहिए। हम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से सम्पर्क में हैं और फैसले का पूरा विश्लेषण करने के बाद और वकीलों की राय मशवरे के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हर निर्णय में उनके साथ खड़े रहेंगे।


फैसले में जहां उच्चतम न्यायालय ने स्वयं स्वीकार किया है कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद नही बनाई गई, वहां नमाज़ होती थी, और साथ ही कहा कि 1949 में मस्जिद के अंदर मूर्ति रखना और 1992 में मस्जिद को तोड़ना क़ानून के विरूद्ध था पर फिर भी अंतिम निर्णय में कोर्ट द्वारा मस्जिद की पूरी भूमि को मंदिर के निर्माण हेतु दे दिया गया और मुस्लिम पक्ष को अन्य जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश सरकार को दिया है अब उसकी जगह अयोध्या में किसी अन्य स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने का प्रस्ताव पर हम बस ये कहना चाहते हैं शरीयत के अनुसार मस्जिद अल्लाह का घर है जिसका मालिक अल्लाह होता है और मस्जिद जिस स्थान पे है वही मानी जायेगी और इसे स्थान्तरित नही किया जा सकता इसलिये हमे सरकार की इस 5 एकड़ जमीन की ज़रूरत नही है। हम शांतिपूर्वक तरीके से न्याय के लिए संविधान और क़ानून में दिए गए आखरी विकल्प तक को इस्तेमाल करेंगे और न्याय के लिए संघर्ष करते रहेंगे।


साथ ही हम अवाम से अपील करते हैं कि वो संयम और सौहार्द बनाए रखें, ये क़ानूनी लड़ाई है और इसे क़ानूनी तरीके से लड़ा जाएगा।

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