बदमाश की मौत पर बवाल , हर्ष की शहादत पर चुप्पी आखिर क्यों

बदमाश की मौत पर बवाल , हर्ष की शहादत पर चुप्पी आखिर क्यों

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के अमरोहा के बछराऊं थाना इलाके में रात पुलिस का इनामी बदमाश शिवाया से आमना सामना हुआ तो शिवाया पुलिस की जवाबी कार्यवाही में मारा गया जबकि उसके फरार हुए साथी ने 2016 बैच के सिपाही हर्ष चौधरी को गोली मारकर शहीद कर दिया। वैसे तो हर एनकाउंटर फर्जी बताकर हंगामा करने वाले सियासी दलों, समाजसेवी संगठनों, जातीय संगठनों के साथ साथ मानवाधिकार की बात करने वाले लोग चुप है। चुनावी माहौल है ऐसे में इस एनकाउंटर को फर्जी बताकर हल्ला जरूर होता मगर हर्ष की शहादत ने इन के मंसूबे पर पानी फेर दिया है मानवाधिकार की बात करने वाले यह लोग अब हर्ष की शहादत पर चुप है कोई स्वतः संज्ञान भी नही ले रहा है ले भी क्यों इससे पहले भी कई बार खाकी ने फर्ज की खातिर जान दी है तब भी समाचार पत्रों की खबर पर कोई नही जागा था इस बार भी सब चुप है बोल सिर्फ उसकी वो पत्नी रही है जिसके हाथों की अभी मेहंदी भी नही सूखी थी। क्या पुलिस के भेष में इंसान नही होता है वो रोबोट होता है उसकी माँ के सीने में दिल नही होता, उसका बाप पत्थर का होता है, उसकी पत्नी की संवेदनाएं भावनाएँ नही होती उसके बच्चे शून्य में रहते है उन्हें किसी के जाने का दर्द भी नही होता। बस जो ना जाने कितने सुहाग उजाड़ देता है कितनी माँओ की गोद सूनी कर देता है कितने बच्चों को यतीम करने वाला बदमाश अगर मुठभेड़ में मर जाता है तो मानवधिकार का उल्लंघन हो जाता है।

पुलिस उत्तर प्रदेश में अजीब उलझन में है! मुख्यमंत्री का फरमान की पुलिस अपराधियों से सख्ती से निपटे तो जनता की उम्मीद की सूबे में कानून व्यवस्था कंट्रोल में रहे और इत्तेफ़ाक़ भी कैसा कि दोनों की आशाएं भी इसी पुलिस से हैं । पिछले डेढ़ साल से भी अधिक समय मे पुलिस ने अपना इक़बाल बुलंद भी किया है मगर इस इक़बाल को बुलंद करने में पुलिस ने जहां अपने कई जवानों की शहादत देनी पड़ी तो एनकाउंटर को लेकर सियासी दलों, स्वंयसेवी से लेकर बदमाश के जातीय और मानवाधिकार संगठनों के निशाने पर भी है। अगर देखा जाए तो बदमाशो के खिलाफ अभियान चलाने में उसका कोई निजी स्वार्थ नही होता है पुलिस तो बस खाकी वर्दी का फर्ज निभाने में लगी है वो तो आम आदमी का पैसे लेकर क़त्ल करने, किसी के घर मे घुसकर उसकी मेहनत की कमाई को डकैती डालकर ले जाने विरोध करने पर हत्या करने, व्यापारियों से रंगदारी मांगने नही देने पर गोली मार देने की दर्जनों घटनाओ को अंजाम देने वालके बदमाशो से इसलिए भिड़ जाती है कि उसे आप नागरिक की चिंता है। इस कार्यवाही में बदमाश पुलिस पर हमला बोलते है तो पुलिस मुठभेड़ का जवाब देती है जिसमे कभी बदमाश को जान देनी पड़ती है कभी खाकी भी फर्ज की खातिर जान कुर्बान कर देती है इन मुठभेड़ों में बदमाश ज्यादा इसलिए मरते है जब पुलिस से बदमाशो की मुठभेड़ होती है तो बदमाश दो या तीन की संख्या में होते है उन्हें पुलिस के घेरने की तैयारी का पता नही होता है अचानक पुलिस की ललकार से बदमाश बौखला कर हमला कर देते है जबकि पुलिस सटीक सूचना के आधार पर मुठभेड़ के वक़्त तैयार रहती है। ऐसी सूचना पर वह कई थानों की पुलिस से लेकर क्राइम ब्रांच की टीम भी रखती है इसलिए जवाबी मुठभेड़ में अक्सर बदमाश या तो मारा जाता है या घायल अवस्था मे पकड़ लिया जाता है । मुठभेड़ में पुलिस के जवान तब शहीद होते है जब बदमाशों के अचानक वारदात को अंजाम देने की सूचना बीट में पुलिसिंग कर रही टीम को मिलती है तो पुलिस अपनी डयूटी को अंजाम देने कि कहीं बदमाश ने घटना को अंजाम दे दिया तो तुम्हारी जवाबदेही बन जाएगी वो आनन फानन में लोकेशन पर पहुंच कर उसे पकड़ने की कोशिश करती है तब बदमाश पुलिस पर हमला कर देते है और खाकी को नुकसान उठाते हुए अपनी जान गवानी पड़ जाती है।। ऐसा ही हुआ है रात अमरोहा जनपद में जब घटना को अंजाम देने जा रहे ईनामी बदमाश शिवाया और उसके साथी को पुलिस ने घेर लिया तो बदमाशो ने हमला बोल दिया और सिपाही हर्ष चौधरी को गोली मार दी पुलिस ने जवाब दिया तो अपराधी शिवाया भी ढेर हो गया इसके साथ ही सिपाही हर्ष भी शहीद हो गया। सवाल उठता है कि बदमाशों के एनकाउंटर में मारे जाने पर फर्जी एनकाउंटर बताकर हंगामा करने वाले सियासी दलों से लेकर सभी संगठन हर्ष चौधरी की शहादत पर चुप क्यों है! यह अभी थोड़े ही चुप है यह तो दादरी के दरोगा अख़्तर, कैराना में सिपाही अंकित तोमर, झिंझाना में सचिन हो या सरसावा में सीओ के हमराह या फिर बीहड़ के जंगलों में डकैतों से लोहा लेने वाले खाकी वर्दी वालों की कुरबानी पर भी खामोश ही रहते है यह तब बोलते है जब किसी कुख्यात अपने कारनामो के चलते जान गंवा देते है। क्या शहीद होने वाला किसी का बेटा भाई पिता पति नहीं होता तो उसकी शहादत पर भी हमें बोलना चाहिए अगर चुप रहेंगे यह तो ना इंसाफ़ी है

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