शत-प्रतिशत अपराधी सजा पायें, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए

शत-प्रतिशत अपराधी सजा पायें, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए
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लखनऊ : किसी भी सरकार के लिए अध्यादेश के रूप में कानून लागू करना बहुत अच्छा नहीं माना जाता। पूर्व राष्ट्रपति डा. प्रणव मुखर्जी ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाते समय नरेद्र मोदी सरकार को टोका भी था। कभी-कभी तो निम्न मानसिकता के तहत भी अध्यादेश लाने का प्रयास किया जाता है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने ऐसा ही प्रयास किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपराधियों को राजनीति के अयोग्य ठहरा दिया था, तभी यूपीए सरकार ने अध्यादेश तैयार किया था लेकिन राहुल गांधी ने ही उस अध्यादेश को फाड़कर फेंक दिया था। इससे लगा था कि संसद में अध्यादेश को भी किस तरह से तमाशा समझ लिया गया था। भाजपा के नेतृत्व वाली नरेन्द्र मोदी सरकार ने महिला और बालिकाओं से दुष्कर्म को गंभीरता से लिया है। मौजूदा कानून इसकी रोकथाम करने में बौने साबित हो रहे थे, इसलिए 8 साल तक की बच्चियों से दुष्कर्म पर मौत की सजा का प्रावधान किया गया। सरकार ने पहले इसे कैबिनेट में पारित किया और इस पर संसद के दोनों सदनों में बहस होती और काफी समय लगता, इसलिए ऐसा कानून तुरन्त अमल में आ गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस अध्यादेश पर दस्तखत करके इसे तुरन्त ही लागू कर दिया है। इस तरह के अध्यादेश को सामयिक और सार्थक अध्यादेश कहा जाएगा।
यह हमारे देश की संस्कृति और सम्पूर्ण मानवता के लिए शर्मनाक बात है कि नारी को सम्मान देने के स्थान पर उसके साथ दुराचार किया जा रहा है। यह समस्या हमारे देश की ही नहीं पूरी दुनिया की है लेकिन भारत में नारी सम्मान की एक गौरवशाली परम्परा रही है। यहां नारी को लक्ष्मी और दुर्गा मानकर पूजा की जाती है। नवरात्र में आज भी कन्या भोज कराया जाता है। विवाह के समय कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। बेटियों ने हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन किया है। हाल ही सम्पन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों में सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक हमारे देश की बहादुर बेटियों ने ही प्राप्त कर देश का गौरव बढ़ाया है। दुर्भाग्य की बात कि उसी दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में छोटी-छोटी बालिकाओं और किशोरियों से दुराचार के मामले प्रकाश में आये। देश का मस्तक शर्म से झुक गया। देश के कई लोगों ने अपना दुख कैंडिल मार्च करके प्रदर्शित किया, तभी केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी यह तय किया कि अब इस मामले पर अत्यधिक सख्त कानून बनाना ही होगा और उसे तुरन्त लागू भी करना होगा।
इसी सोच के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्र सरकार कैबिनेट की बैठक हुई और भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम क्रिमिनल अफेंस (पास्को) में संशोधन के लिए प्रस्ताव पारित कर इसे अध्यादेश के रूप में लागू करने का फैसला किया गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। इस अध्यादेश को क्रिमिनल ला (अमेंडमेंट) आर्डिनेंस 2018 की संज्ञा दी गयी है। इस अध्यादेश में कहा गया है कि 8 साल तक की बच्चियों से दुष्कर्म करने वाले को फांसी की सजा दी जाएगी। इस अध्यादेश में दुष्कर्म के मामलों की जल्द से जल्द सुनवाई होगी। इसके लिए अधिकतम दो महीने का समय तय किया गया है। कोशिश यह होगी कि इससे पूर्व ही दोषी को सजा दी जा सके। अध्यादेश की मुख्य बातों में कहा गया है कि दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सात साल के सश्रम कारावास की सजा को बढ़ाकर 10 वर्ष किया जाता है और अधिकतम इसे आजीवन कारावास तक किया जा सकेगा। इस में कहा गया है कि 16 साल से कम उम्र की लड़कियों से दुष्कर्म के अपराधियों को न्यूनतम 20 साल की सजा होगी और 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को मृत्युदण्ड अर्थात् फांसी की सजा मिलेगी। यह भी कहा गया है कि 16 साल से कम उम्र की किशोरियों और बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को किसी भी स्थिति में अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि यह अध्यादेश ऐतिहासिक है और महिलाओं की सुरक्षा के प्रति भाजपा सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्हांने कहा कि अध्यादेश में यौन अपराधियों को ट्रैक करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर उनका डेटा बेस और प्रोफाइल बनाने का भी प्रावधान किया गया है। यौन अपराधियों का डेटाबेस बनाने वाला भारत दुनिया का नौवां देश होगा। मौजूदा समय में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आयरलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, ट्रिनिडाड और टोबैगों में इसी तरह के डेटाबेस बने हैं। इससे यौन अपराधियों को गिरफ्तार करने में मदद मिलती है। देश मंे पास्को ऐक्ट के तहत दर्ज मामले निश्चित रूप से चैंकाने वाले हैं। दिल्ली में निर्भया काण्ड कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय हुआ था। दिल्ली में 16 दिसम्बर, 2012 को जिस तरह की दरिंदगी हुई थी, उसने पूरे देश ही नहीं दुनिया को झकझोर दिया था। उस समय इस प्रकार के अपराधों को रोकने और अपराधियों को सख्त से सख्त सजा देने पर अपीलों के साथ प्रदर्शन भी किये गये थे। इसके बावजूद महिलाओं और बच्चियों से दुष्कर्म के मामले कम होने की जगह बढ़ते ही जा रहे हैं। पाक्सो ऐक्ट के तहत ही दर्ज किये गये मामले तीन साल में लगभग चार गुना बढ़ गये हैं। इस ऐक्ट के तहत 2014 में 5 हजार मामले दर्ज हुए थे जो 2016 में बढ़कर 20 हजार के करीब पहुंच गये। अदालतों में दुराचार के लम्बित मामलों की संख्या भी चौकांती है। यह संख्या लगभग डेढ़ लाख के करीब हैं।
इस प्रकार महिलाओं और बच्चियों से दुराचार के बढ़ते मामले और इन मामलों की वर्षों तक सुनवाई न होना मोदी सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया था। इस मामले में अब किसी प्रकार की ढिलाई नहीं दी जा सकती थी। विरोधी दल भले ही इसे भी चुनावी राजनीति बताएं लेकिन इस प्रकार का कानून में संशोधन अब अपरिहार्य हो चुका था। सरकार इसीलिए लोकसभा और राज्यसभा में समय न गवांकर सीधे अध्यादेश ले आयी है। संवैधानिक परम्परा के अनुसार अध्यादेश की भी एक सीमा होती है और उसे बढ़ाया जा सकता है लेकिन बाद में संसद के दोनों सदन मिलकर कानून में संशोधन करेंगे लेकिन तब तक कानून भी अपना काम करता रहेगा। सरकार ने अपने स्तर से जो कदम उठाना था, उसे उठा दिया है, अब नौकरशाही का दायित्व बनता है कि वह इस अध्यादेश को ईमानदारी और पक्षपात रहित होकर लागू करे। इसके साथ ही समाजशास्त्रियों, चिकित्सकों और दूसरे प्रबुद्ध वर्गों की भी यह जिम्मेदारी है कि वे इस पर चिंतन करें कि समाज में विकृत मानसिकता वाले लोग क्यों बढ़ते जा रहे हैं। छोटी-छोटी बच्चियों, किशोरियों, युवतियों और यहां तक कि 60 वर्ष से ऊपर महिलाओं को भी दुराचार का शिकार बनाया जा रहा है तो निश्चित रूप से यह एक मनोवैज्ञानिक सवाल है। दुराचार करने वालों में भी बच्चों से लेकर प्रौढ़ों तक का नाम आया है। यह हैवानियत की पराकाष्ठा है कि दो और चार साल की बच्चियां भी दुराचार की शिकार हो रही हैं। नैतिक शिक्षा क्या इस स्थिति में कोई परिवर्तन ला सकती है? फिलहाल सरकार ने नियंत्रण और दण्ड का ही प्रयोग किया है। सजा में सख्त प्रावधान होने और मामलों को जल्दी निपटाने से अपराधी को जब कड़ी सजा मिलेगी तो उसका प्रभाव समाज के अन्य लोगों पर पड़ेगा। पास्को ऐक्ट के मामलों में ही 17 फीसद लोगों को सजा मिल पायी है। अब शत-प्रतिशत अपराधी सजा पायें, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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