ओमप्रकाश राजभर की मुहिम का असर, प्रो. निशीथ राय नहीं रहे कुलपति

ओमप्रकाश राजभर की मुहिम का असर,  प्रो. निशीथ राय नहीं रहे कुलपति

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी विश्वविधालय की स्थापना अपने बडे नेता की मां के नाम पर दिव्यांगो को शिक्षित कर सबल बनाने के लिये की थी लेकिन समाजवादी पार्टी की पूर्व सरकार ने अपने पूर्व प्रवक्ता की नियुक्ति मनमाने तरीके से कर दी, नतीजा बेलगाम कुलपति ने सपा सरकार को आंख दिखाते हुए जबरन नियमों को दर किनार करके विश्वविधालय में नियुक्ति कर ली। उ0प्र0 में सरकार बदली तो कुलपति के भ्रष्टाचार को भण्डाफोड करने के जुटे लोगो को योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भ्रष्टाचार हटाओ अभियान का नारा देने वाले भाजपा सरकार बनी तो उम्मीद की किरण दिखाई पडी, लेकिन चांदी के जूतों की चमक और ऊंचे रसूख के बलबूते प्रो.निशीथ राय इस सरकार पर भी भारी पडे, सरकार के दस माह बीत जाने के बाद में तमाम आरोप साबित होने के बाद भी प्रो.निशीथ राय का डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुर्नवास विश्वविद्यालय लखनऊ का कुलपति बने रहना भाजपा के भ्रष्टाचार विरोधी नारे का मजाक उड़ा रही थी, सवाल उठ रहा था कि आखिर क्या वजह है कि योगी आदित्यनाथ इस कुलपति के आरोप साबित होने के बाद भी इसके खिलाफ जांच में कार्यवाही करने से बच क्यों रहे है? लेकिन इन्हीं सवालों के बीच काबीना मंत्री ओमप्रकाश राजभर के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त फैसला करते हुए डॉ. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए प्रो.निशीथ राय को पद से हटा दिया है। उनके खिलाफ अवैध नियुक्तियां करने के साथ ही खुद उनकी भी नियुक्ति अवैध होने की शिकायतें की गई थीं। शिकायतों की जांच सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शैलेंद्र सक्सेना को दी गई है। वह छह माह में रिपोर्ट देंगे। अब कुलपति पद का प्रभार शासन के द्वारा उत्तर प्रदेश राजस्व विभाग के अध्यक्ष प्रवीर कुमार को सौंपा गया है।
राषिद अली 'खोजी' की खास रपट...
गौरतलब है कि मायावती ने उप्र के मुख्यमंत्री रहते दिव्यागंजनों के पूर्नवाह हेतु लखनऊ में मोहान रोड पर एक विश्वविद्यालय बनाने का फैसला लिया और विश्वविद्यालय का नाम बसपा के कद्दावर नेता सतीश चन्द्र मिश्रा की मां के नाम पर डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय रखा गया। मायावती का इस विश्वविद्यालय की स्थापना से मकसद था कि दिव्यांगजनों का भला हो सके, लेकिन सपा सरकार बनने के बाद 28 जनवरी 2014 को प्रो.निशीथ राय को इस विश्वविद्यालय का कुलपति नियमों को दर किनार कर बना दिया गया। गौरतलब है कि प्रो. निशीथ राय लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे है। इनके पिता रामकमल राय प्रमुख समाजवादी नेता एवं चिन्तक थे और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे, इसलिये जब पिछली अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार को डा. शकुन्तला मिश्रा विश्वविद्यालय के कुलपति की तलाश थी। तब सर्च कमेटी के समक्ष दो लोगों ने आवेदन किया तभी कुलपति नियुक्ति में नया खेल हुआ। दरअसल जब दो लोगों में से किसी एक को कुलपति बनना था, तभी मुलायम सिंह से अपने पिता के सम्बन्धों एवं सपा के पूर्व प्रवक्ता रहने के बल पर प्रो. निशीथ राय ने मुख्यंमत्री अखिलेश यादव पर दबाव बनाया और आखिर वही हुआ जो सरकार चाहती थी। सर्च कमेटी के समक्ष आये दो लोगों के नामों को होल्ड करते हुए विकलांग कल्याण विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय ने 15 नये लोगों की कुलपति की नियुक्ति के लिये प्रस्ताव बनाया और पहले नम्बर पर समाजवादी नेता निशीथ राय का नाम रख दिया, नतीजा निशीथ राय डा. शकुन्तला मिश्रा यूनिवर्सिटी के कुलपति बन गये।
डा. निशीथ राय के कुलपति बनने के बाद भी लखनऊ यूनिवर्सिटी के अरबन डवलपमेंन्ट के निदेशक भी बने हुए थे, यह पद भी पूर्ण कालिक है तथा एक साथ कुलपति एवं निदेेशक जो कि लाभ के पद है, पर बने रहकर निशीथ राय सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की भी धज्जियां उडा रहे हैं, जिसमें आदेश हुआ था कि कोई भी व्यक्ति एक साथ लाभ के दो पदों पर नहीं रह सकता है, लेकिन अपने रसूख के बलबूते निशीथ राय नियम कायदों को दरकिनार कर रहे थे। यहां भी गौरतलब है कि लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के रूप में तैनात निशीथ राय प्रतिनियुक्ति पद अरबन डवलपमेन्ट के निदेषक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार में साल 2005 में बने थे, अब जब उन्हें डा. शकुन्तला विश्वविद्यालय का कुलपति मुलायम के बेटे अखिलेश यादव की सरकार में बनना था, तो उन्हें नियमानुसार अरबन डवलपमेन्ट के निदेशक के पद को छोडकर वापस लखनऊ विश्वविद्यालय में हठधर्मी करते हुए सत्ता का दुरुप्रयोग कैसे किया जाता है, इसे निशीथ राय को डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय , का कुलपति बिना इसके लाभ के पद को छोड़ने के बाद भी बनना यह साबित करता हैं। समाजवादी चिन्तक डा. रामकमल राय के बेटे डा. निशीथ राय समाजवादी सरकार के रहमोकरम पर बिना आवेदन के डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय , के कुलपति जब बन गये तो उन्होने वि0वि0 में मनमानी भर्तियां करना शुरू कर दी। डेली न्यूज एक्टिविस्ट समाचार पत्र के स्वयं घोषित चैयरमैन प्रो.निशीथ राय 28 जनवरी 2014 को डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के कुलपति बनें। सबसे पहले उन्होने विश्वविद्यालय में रिक्त पदों पर नियुक्ति कर चांदी के जूतों की चमक में चकाचौध होने की तैयारी शुरू की। उन्होंने 12 जून 2015 को विश्वविद्यालय के विभिन्न पदों की भर्ती का विज्ञापन दिया, इस विज्ञापन में नौकरी के लिये आवेदन करने कि अन्तिम तिथि 3 जुुलाई दी गयी थी, लेकिन प्रो. निशीथ राय ने अपनी मनमानी करते हुए 30 जून 2015 को ही भर्ती प्रक्रिया पूरी कर ली। इस भर्ती विज्ञापन के एडजेन्ट प्रोफसर को मानदेय के रूप में 60 हजार रूपये देने का उल्लेख किया गया था। कुलपति ने इस पद के लिये अम्बिका प्रसाद तिवारी को नियुक्त, तो 60 हजार रूपये के मानदेय पर किया, लेकिन 30 जून 2015 को कुलपति प्रो. निशीथ राय ने डा. अम्बिका प्रसाद तिवारी को अपने हस्ताक्षर से जारी पत्र को तीन वर्षों के लिये नियुक्त करते हुए उनका मानदेय 80 हजार रूपये उल्लेखित किया है। सूत्रों के मुताबिक उन्हे विश्वविद्यालय से 80 हजार रूपया तथा यात्रा भत्ता अलग से दिया जा रहा है। प्रोफेसर अम्बिका प्रसाद तिवारी के पूर्व विभागाध्यक्ष डाॅ. अनामिका चौधरी ने भी विशवविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली के अर्थशसकीय पत्र संख्या 10-6/2011 दिनाक 6 जुलाई 2015 व अर्धशसकीय पत्र संख्या 10-6/2011 दिनांक 4 सितम्बर 2015 से कुलपति प्रोफेसर निशीथ राय को सूचित किया फिर भी नियमों की अनदेखी करते हुए प्रोफेसर अम्बिका प्रसाद तिवारी को शोध निर्देशक बना दिया गया तथा शोध छात्र भी आवंटित कर दिया गया तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिषा निर्देेषों के विपरीत है। प्रोफेसर अम्बिका प्रसाद तिवारी अपने मुख्य कार्य शिक्षण को छोडकर अन्य कार्यों में लगे रहना टेंडर कमेटी, कोटेषन कमेटी इत्यादि में भागीदारी करना इनका प्रमुख कार्य है। लोगों को गुमराह कर वसूली करने के लिए विश्वविद्यालय में वह कभी अधिष्ठाता एकेडमिक्स, कभी मीडिया सलाहकार, कभी शैक्षिक सलाहकार, कभी नोडल अधिकारी, अलग अलग तरीके से अलग-अलग पदनाम प्रस्तुत करते हैं। इसके साथ-साथ ही अखिलेश सरकार में मुख्य सचिव रहे और सपा सरकार के अफसर आलोक रजंन को भी रिटायरमेंन्ट के बाद कुलपति निशीथ राय ने आलोक रंजन को यूजीसी के मानकों को अनदेखा करके आनन-फानन में नियुक्ति कर दी गई। विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में मासिक मानदेय रू 60,000 रखा गया था, परंतु विज्ञापन को अनदेखा करके बिना किसी चयन समिति/साक्षात्कार आदि के मासिक मानदेय रू 80,000 प्रतिमाह पर नियुक्ति की गई है, क्योकि ये विज्ञापन में आवेदक ही नहीं थेे। जबकि सभी शैक्षिक एवं गैर शैक्षिक पदों के समस्त नियुक्तियों पर उत्तर प्रदेश शासन द्वारा रोक लगी थी, लेकिन प्रो. निशीथ राय तो सपा सरकार के नमक का कर्ज उतारने के लिये किसी भी हद तक चले जाना चाहते थे।
उत्तर प्रदेश शासन द्वारा समस्त नियुक्तियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के दिन 21 जुलाई 2015 को कुलपति प्रो.निशीथ राय द्वारा विश्वविद्यालय की एक महिला कनिष्ठ लिपिक बिंदु त्रिपाठी को सहायक कुलसचिव के पद पर नियम विरूद्ध तरीके से तैनात कर दिया गया। गौरतलब है कि उ0प्र0 शासन के संयुक्त सचिव बाबू लाल ने कुलपति प्रो. निशीथ राय द्वारा मनमाने तरीके से विश्वविद्यालय में नियुक्ति करने की षिकायतों के बाद कुल सचिव को लिखे अपने पत्र में स्पष्ट किया कि शासनादेश सख्ंया डी0एस0-25/65-3-12-7 (वि0वि0)/ 2009 दिनांक 10-5-2013 द्वारा डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के गैर शैक्षिणक 100 पदों की भर्ती की अनुमति प्रदान की गयी थी, जिसके चयन की कार्यवाही विश्वविद्यालय स्तर पर प्रचालित है। पदों की भर्ती के सम्बन्ध में कतिपय अनियमिताएं षासन के सज्ञांन में आयी है, इसलिये डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुर्नवास विश्वविद्यालय में तत्काल प्रभाव से शैक्षिणक एवं गैर शैक्षिणक समस्त भर्तियों पर अग्रिम आदेश तक रोक लगायी जाती है, लेकिन सत्ता के शीर्ष नेताओं के चहेते कुलपति प्रो. निशीथ राय ने इस महिला कनिष्ठ लिपिक बिंदु त्रिपाठी को विष्वविद्यालय में कुलपति द्वारा अपना स्टाफ आॅफिसर बनाया गया है। जबकि स्टाफ अॅाफिसर का पद राज्य सरकार से स्वीकृति नहीं हैं। इस महिला कनिष्ठ लिपिक को सम्बद्धता प्रभारी, नियुक्ति के पैनल में बैठना, एवं समय समय पर प्रभारी वित्त अधिकारी के साथ-साथ अलग-अलग तरीके से अलग-अलग स्थान पर राज्य सरकार के नियमों को ताक पर रखकर सारी वसूली के लिये विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर निशीथ राय द्वारा पदासीन किया गया हैं। अलग-अलग पदों पर पदासीन करके लाखों रूपए का मानदेय भुगतान किया जा रहा है। यहां तक कि विश्वविद्यालय के हर कार्यषाला सेमिनार में इन्हें अलग से मानदेय दिया जाता है। कुलपति प्रो. निशीथ राय की हठधर्मिता यही तक नहीं रुकी। उन्होंने इस महिला कनिष्ठ लिपिक बिंदू त्रिपाठी को सरकारी आवास आवंटित किया गया है। इसके उपरांत भी आवास भत्ता का भुगतान विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है। मुफ्त भोजन एवं सारी सुख सुविधायें जैसे टीवी फ्रिज, एसी, नौकर, वाहन स्विफ्ट डिजायर आदि विष्वविद्यालय के मानकों के विपरीत राज्य सरकार के नियमों को ताक पर रखकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. निशीथ राय द्वारा उपलब्ध कराई गई है। विश्वविद्यालय से किसी भी संस्था को सम्बद्धता बिना शासन की अनुमति के नहीं हो सकती है। फिर भी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. निशीथ राय द्वारा सीधे अपने स्तर से ही सारी सम्बद्धता दी रही हैं। इसी महिला कनिष्ठ लिपिक को सम्बद्धता का सचिव बनाया गया। सारी वसूली का कार्यक्रम प्रोफेसर अम्बिका प्रसाद तिवारी व बिन्दू त्रिपाठी तथा परीक्षा नियन्त्रक प्रो. एके दूबे द्वारा जारी रखा गया। कुलपति प्रो. निशीथ राय अब भी नियुक्तियों में रोक के बाद भी प्राइवेट संस्था से सेवा स्थानान्तरण के आधार पर ललित कला विभाग में प्रवक्ता के पद पर डा. सुनीता शर्मा को गाजियाबाद के एक प्राइवेट काॅलेज से लाया गया, जहां मात्र 8000 रुपये पाती थी, जिन्हें विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय आमेलन के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि सपा के प्रवक्ता रहे और समाजवादी नेता प्रो. निशीथ राय की तत्कालीन प्रमुख सचिव विकलांग जन कल्याण को जांच सौपी गयी। सूत्रों के मुताबिक जांच में डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में नियुक्तियों ने मनमानी और भ्रष्टाचार के आरोपो को सही माना गया आखिरकार सरकार को उन्हें हटाना पडा।
ओमप्रकाश राजभर की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम रंग लाई
उत्तर प्रदेश सरकार में पिछड़ा वर्ग एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के काबीना मंत्री और भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने पिछले दिनों सूबे में विभागों में भ्रष्टाचार को लेकर बयान देकर सियासी हलकों में तूफान मचा दिया था। अपने ही मंत्री के बयान से योगी सरकार भी असहज महसूस करने लगी थी। डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय ओमप्रकाश राजभर के मंत्रालय के अधीन ही आता है। राजभर के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में सरकार ने प्रो. निशीथ राय को पद से हटा दिया था, लेकिन वह सरकार के आदेश के खिलाफ कोर्ट चले गये और अदालत ने उनको पद पर कायम रहने के लिए स्टे दे दिया। कोर्ट ने सरकार को जांच कमेटी गठित कर प्रो. निशीथ राय के खिलाफ आरोपों को लेकर जांच कराने को भी कहा गया। सीएम योगी आदित्यनाथ के आदेश पर मंत्री ओमप्रकाश राजभर के प्रयासों से प्रो. निशीथ राय के खिलाफ जांच कमेटी बनी और जब जांच शुरू हुई तो अधिकांश गड़बड़ियों की शिकायतों को सही पाया गया, लेकिन इसके बाद भी प्रो. निशीथ राय सरकार पर दबाव बनाते हुए अपने पद पर बने रहे। उधर ओमप्रकाश राजभर ने अपना अभियान जारी रखा। उनके अभियान में प्रो. निशीथ शुरूआत से ही निशाने पर थे और आखिरकार उनकी ये मुहिम रंग लाई, सीएम योगी आदित्यनाथ के द्वारा 17 फरवरी को प्रो. निशीथ राय को हटाना पड़ा। इस कार्रवाई से ओमप्रकाश राजभर भ्रष्टाचार विरोधी अपनी दूसरी लड़ाई जीत गये इससे पहले भी ओमप्रकाश ने गाजीपुर के तत्कालीन डीएम को हटाने के लिए सरकार को कहा इसलिए सरकार को डीएम को हटाना पड़ा था ।

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