इजराइल और फलस्तीन के बीच सेतु बने मोदी

इजराइल और फलस्तीन के बीच सेतु बने मोदी
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भारत की हमेशा से एक अलग भूमिका रही है। हमने दुनिया को एक अलग रास्ता दिखाया। आदिकाल का इतिहास धुंधला है। इसी लिए कोई कहता है कि आर्य हमारे देश में बाहर से आये थे लेकिन उन्हीं आर्यों ने वेद और उपनिषद जैसे महान ग्रंथ रचें यहां हम उन लोगों से असहमति जताने की धृष्टता करते हैं जो यह मानते हैं कि वेद अपौरूषेय हैं अर्थात उनकी रचना किसी व्यक्ति ने नहीं की। निःसंदेह उनमें भरा ज्ञान अपौरूषेय हो सकता है लेकिन लिपिबद्ध करने वाले ऋषि-मुनि थे और ऐसे आर्य आक्रामक नहीं हो सकते। उन्होंने तो प्रकृति के कण-कण की पूजा की। आदमी और प्रकृति के बीच ऐसा सेतु बनाया था जो तोड़ा न गया होता तो आज पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु की कोई समस्या ही नहीं पैदा होती। इस तरह के सेतु हम भारतवासी बनाते रहे हैं। पूरी दुनिया जब सोवियत संघ और अमेरिका के सैन्य संगठनों के साथ जुड़ रही थी, तब हमने गुट निरपेक्ष संगठन बनाया। इस सेतु को भी सभी देशों ने अपनाया होता तो आज कई देशों में गृहयुद्ध जैसी स्थिति न पैदा होती। भारत ने सेतु बनाने की प्रक्रिया को खत्म नहीं किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इजराइल की यात्रा करने के बाद अब उसके कट्टर दुश्मन फलस्तीन की यात्रा करके फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच भी दोस्ती का सेतु बनाने का प्रयास किया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब इजराइल की यात्रा की थी, तब वे फलस्तीन नहीं गये थे। भारत में उनके राजनीतिक विरोधियों ने इसकी आलोचना की थी। इजराइल और फलस्तीन के बीच कटुता है और भारत उसे दूर करना चाहता है। यही संदेश लेकर प्रधानमंत्री मोदी तेल अवीब पहुंचे थे और वही संदेश लेकर रामल्ला भी गये। यह भी एक सुखद संयोग है कि फलस्तीन जैसे मुस्लिम देश की राजधानी भगवान राम से जुड़ी रामल्ला है। राम और अल्लाह यहां एक हो जाते है। फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इस बात को बिल्कुल तरजीह नहीं दी कि भारत के प्रधानमंत्री तेलअबीब (इजराइल) गये थे तो उनके देश क्यों नहीं आये। उन्होंने मोदी के स्वागत में लाल कालीन बिछा दी। अपने देश का सर्वोच्च सम्मान 'ग्रैन्ड कालर आफ द स्टेट आफ फलस्तीन प्रदान किया। इतना ही नहीं दुबई में दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रंग की रोशनी से सजाया गया। इससे यह पता चलता है कि श्री मोदी की यात्रा से सभी मुस्लिम देशों को कितनी खुशी मिलती है। रामल्ला की यात्रा के बाद मोदी को दुबई जाना था। उनके अपने देश भारत में उनके राजनीतिक विरोधी मोदी पर कट्टर हिन्दुत्व का आरोप लगाते हैं लेकिन मुस्लिम देश ऐसा नहीं मानते।
यह बहुत बड़ी बात है। मोदी ने तेल अबीब की यात्रा करके इजराइल के साथ दोस्ती को मजबूत किया था। भारत का प्रधानमंत्री लम्बे अर्से के बाद इजराइल गया था और कई महत्वपूर्ण समझौते भी हुए। इसके बाद बेंजमिन नेतन्याहू भारत की यात्रा पर आये। इस बीच एक महत्वपूर्ण घटना हो चुकी थी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव के समय अपने देश की जनता से वादा किया था कि वे येरूशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता देंगे। येरूशलम विवादित क्षेत्र है और वहां यहूदियो, ईसाइयों और मुस्लिमों के प्राचीन धर्म स्थल हैं। इस संबंध में अमेरिका ने एक प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ में रखा था और भारत ने उसके विरोध में मत दिया था अर्थात भारत ने येरूशलम को इजराइल की राजधानी पर सहमति नहीं जतायी थी। इजराइल के प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू ने भारत यात्रा के दौरान इस बात का भी जिक्र किया था और कहा कि भारत ने यद्यपि उस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया, इसके बावजूद इजराइल भारत का सच्चा देास्त है और सच्चा दोस्त रहेगा।
नेतन्याहू के ये शब्द रामल्ला भी पहुंचे होंगे। इसीलिए राष्ट्रपति महमूद अब्बासी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से औपचारिक वार्ता शुरू करने से पहले ही राष्ट्रपति कार्यालय परिसर मुकासा में आधिकारिक समारोह में मोदी का शानदार स्वागत किया। रामल्ला से ही फलस्तीन सरकार चलती है। यहां पर दोनों नेता गले मिले, अधिकारियों से परिचय प्राप्त किया। दोनों देशों का राष्ट्रगान हुआ। मोदी ने सलामी गारद ली। इसके बाद औपचारिक बातचीत के लिए राष्ट्रपति कार्यालय में गये। मोदी ने भी फलस्तीन और उसके नेताओं को सम्मान देने में कोई कोताही नहीं की। फलस्तीन को बनाने के लिए यासर अराफात ने फलस्तीनी मुक्ति संगठन बनाया था। इसी संगठन ने नवम्बर 1988 को फलस्तीन राष्ट्र की घोषणा की थी। मोदी ने यासर अराफात के मकबरे पर पुष्पचक्र चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। श्री मोदी जार्डन की सेना के एक हेलिकाप्टर से अम्मान से सीधे रामल्ला पहुंचे थे और उनकी सुरक्षा में इजराइल के कमांडो तैनात थे। तीनों देशों में शांति का सेतु बनाने का यह मोदी का तरीका था।
मोदी ने कहा कि भारत फलस्तीनी जनता के हितों के लिए प्रतिबद्ध है तो वहां के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को निश्चित रूप से इसका यकीन भी हुआ। भारत ने शांतिपूर्ण तरीकों को ही हमेशा प्राथमिकता दी है। इसलिए मोदी ने कहा कि फलस्तीन जल्द ही शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्र और संप्रभुराष्ट्र बनेगा। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि शांति की वापसी का रास्ता इतना आसान नहीं है लेकिन हमें प्रयास करते रहना चाहिए। मोदी ने कहा कि फलस्तीन के लिए काफी कुछ दांव पर लगा है लेकिन खुशहाली और शांति के लिए बातचीत का रास्ता ही एकमात्र हल है। वार्ता के लिए कूटनीति और दूरदर्शिता भी जरूरी है। फलस्तीनियों का जज्बा तो सराहनीय है, इसे बनाये रखना होगा। इसके बाद मोदी ने भारत और फलस्तीन के रिश्ते को याद करते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच दोस्ती समय की कसौटी पर खरी उतरी है। फलस्तीन के लोगों ने कई चुनौतियों का सामना करने में असाधारण साहस दिखाया है। संभवतः मोदी ने यासर अराफात के समय फलस्तीनियों के गोरिल्ला युद्ध की याद दिलायी और यह भी बताया कि अब इस तरह का रास्ता अपनाने की जरूरत नहीं है। वार्ता के जरिये शांतिपूर्ण वातावरण में फलस्तीन संप्रभु और स्वतंत्र देश बन सकता है। मोदी ने फलस्तीन को विश्वास दिलाया कि हम सिर्फ कोरे आश्वासन नहीं देते हैं बल्कि ठोस रूप में कार्य भी करते हैं। इसलिए फलस्तीन के साथ पांच करोड़ डालर के 6 करार भी किये गये है। इसके तहत भारत फलस्तीन में क्षमता निर्माण और बुनियादी ढांचे में विकास कार्य करेगा। भारतीय निवेश से वहां के लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा।
भारत की सहानुभूति फलस्तीन के साथ रही है। फलस्तीनी अरबों की राष्ट्रीय प्रेरणा के रूप में फलस्तीन लिवरेशन आर्गनाइजेशन (पीएलओ) की स्थापना 1964 में की गयी थी। इसके लगभग 10 वर्ष बाद 1974 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इसे स्थायी निरीक्षक का ओहदा दिया और 1976 से पीएलओ अरबलीग का स्थायी सदस्य बन गया। यह संघर्ष 40 साल तक चला। इसबीच 15 नवम्बर 1988 को यासर अराफात ने अलजीरिया में फलस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र की घोषणा की थी। इस प्रकार 40 वर्षों के अनवरत संघर्ष के बाद फलस्तीन अस्तित्व में आया जिसे भारत समेत 80 देशों ने तत्काल मान्यता दे दी। हालांकि इजराइल की दक्षिण पंथी लिकुड ब्लाक की सरकार और वामपार्टी ने यित्जिहाक शामिर प्रधानमंत्री के साथ पीएलओ को फलस्तीन जनता का प्रतिनिधि मानने से इंकार कर दिया था। इस प्रकार लगभग 50 वर्षों से अरब इजराइल संघर्ष में फलस्तीनियों की मांग वेस्ट बैंक और गाजापट्टी में राजधानी येरूशलम को लेकर स्वशासन की रही है। इस मामले में 1993 में ऐतिहासिक मोड़ आया जब इजराइल ने फलस्तीनी स्वशासन को मान्यता दे दी लेकिन अब तब फलस्तीन संप्रभु स्वतंत्र राष्ट्र नहीं बन सका। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी मार्ग को शांति पूर्ण तरीके से आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। इजराइल और फलस्तीन वार्ता करके इसे सुलझा लेंगे।

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