सोनी विश्वकर्मा साहस की प्रतिमूर्ति

सोनी विश्वकर्मा साहस की प्रतिमूर्ति
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साहस किसी उम्र का भी मोहताज नहीं होता। उत्तर प्रदेश में मोण्डा जनपद में वजीरगंज में 12 साल की सोनी विश्वकर्मा ऐसी ही एक साहसी बालिका है जिसने अपने पैतृक पेशे को नन्ही सी उम्र में अपना कर अपना परिवार चलाना शुरू कर दिया है। वह अपने बूढे दादा-दादी को दो वक्त की रोटी खिलाती है, साथ ही अपने छोटे भाई-बहनों को पढ़ा भी रही है। काम करने के साथ वह स्वयं शिक्षा प्राप्त करती है।
गोण्डा-फैजाबाद हाईवे पर वजीरगंज में सोनी विश्वकर्मा रहती है। वजीरगंज के बड़ा दरवाजा गांव के वृजेश विश्वकर्मा लोहारी का धंधा करते थे। उनके इस कार्य से परिवार का भरण पोषण होता था। मेहनत कश इंसानों की ईश्वर भी कई तरह से परीक्षा लेता है। बृजेश विश्वकर्मा की पत्नी बीमार पड़ीं तो बिस्तर से फिर उठ नहीं पायीं। मां की मृत्यु होने के बाद सोनी विश्वकर्मा पर ही मां की जिम्मेदारी आ गयी। उसकी बूढ़ी दादी थोड़ी-बहुत मदद कर देती थीं। इस तरह सोनी अपने घर का काम करते हुए स्कूल की पढ़ाई भी कर लेती थी। आर्थिक भार उसके पिता संभाल रहे थे लेकिन ईश्वर को शायद सोनी की अभी और कड़ी परीक्षा लेनी थी। उसके पिता बृजेश विश्वकर्मा का 2014 में बीमारी के चलते निधन हो गया। उस समय सोनी की उम्र सिर्फ 10 वर्ष की थी। घर में बटोली चढ़ाकर दाल-चावल पकाना तो वह सीख ही चुकी थी लेकिन अब तो दाल-चावल का भी जुगाड़ करना था।
यही सोच कर सोनी विश्वकर्मा ने अपने पिता की दुकान संभाल ली। बड़ा हथौड़ा उसके नन्हें हाथों से उठ नहीं पाता था। दोनों हाथ लगाकर हथौड़े को उठाया और तपती भट्ठी से निकाले लोहे को पीटने लगी। शुरू-शुरू में बहुत दिक्कत आयी लेकिन उसने अब अपने पिता की दुकान को पूरी तरह से संभाल लिया है। इससे जो आमदनी होती है, उससे सोनी के घर का खर्च चलता है। सोनी के दादा और दादी कहते हैं कि सोनी हमारी बेटी नहीं बेटा है और वह भी बहुत साहसी बेटा। सोनी विश्व कर्मा दुकान संभालने के साथ पढ़ाई भी कर रही है और अपने दो छोटे भाई बहनों को भी स्कूल भेजती है। दुकान पर बैठे-बैठे अपने भाई और बहन को पढ़ाती ही रहती है। सेानी के इस साहस को देखकर सभी उसकी तारीफ करते हैं और कहते हैं बेटी हो तो ऐसी।

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