संत रविदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया :योगी आदित्यनाथ

संत रविदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में  व्याप्त बुराइयों को दूर करने में  महत्वपूर्ण योगदान दिया :योगी आदित्यनाथ
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लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी लोगों को संत रविदास से प्रेरणा लेने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि संत रविदास उन महान संतों में से एक हैं। जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि संत रविदास की रचनाओं में लोकवाणी का अद्भुत प्रयोग रहा है जिससे जनमानस पर प्रभाव पड़ा। संत रविदास का सारा जीवन जाति-पांति और ऊंच-नीच के भेदभाव, अंध विश्वासों और कुरीतियों के विरोध में बीता। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए जनता का आह्वान किया था और कहा था कि इस प्रकार की बुराइयों को जन सहयोग से ही मिटाया जा सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 जनवरी को संत रविदास की जयंती शिक्षण संस्थाओं में विशेष रूप से मनाने के निर्देश दिये हैं ताकि बच्चों को उनके जीवन दर्शन से शिक्षा मिल सके। मुख्यमंत्री के निर्देशों के क्रम में ही अपर मुख्य सचिव माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा ने इस आशय का शासनादेश भी जारी कर दिया और कहा कि संत रविदास के जीवन चरित्र, उनके विचार। ज्ञान पर चर्चा/परिचर्चा व कार्यशाला का आयोजन कराया जाए जिससे छात्र-छात्राओं और युवा पीढ़ी को संत रविदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित होने का अवसर मिलेगा।
महान संत गुरु रविदास के जन्म से जुडी प्रामाणिक जानकारी नही मिलती है लेकिन साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर महान संत गुरु रविदास का जन्म 1377 ई. के आसपास माना जाता है। हिन्दू धर्म महीने के अनुसार महान संत गुरु रविदास का जन्म माघ महीने के पूर्णिमा के दिन माना जाता है और इसी दिन हमारे देश में महान संत गुरु रविदास की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। महान संत गुरु रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गाव में हुआ था इनके पिता संतोख दास जी जूते बनाने का काम करते थे रविदास जी को बचपन से ही साधू संतो के प्रभाव में रहना अच्छा लगता था जिसके कारण इनके व्यवहार में भक्ति की भावना बचपन से ही कूटकूट कर भरी हुई थी लेकिन रविदास जी भक्ति के साथ अपने काम पर विश्वास करते थे जिनके कारण इन्हें जूते बनाने का काम पिता से प्राप्त हुआ था और रविदास जी अपने कामों को बहुत ही मेहनत और पूरी निष्ठा के साथ करते थे और जब भी किसी को किसी सहायता की जरूरत पड़ती थी रविदास जी अपने कामो का बिना मूल्य लिए ही लोगों को जूते ऐसे ही दान में दे देते थे। एक बार की बात है किसी त्यौहार पर इनके गांव वाले सभी लोग गंगास्नान के लिए जा रहे थे तो सभी ने रविदास जी से भी गंगा स्नान जाने का निवेदन किया लेकिन रविदास जी ने गंगास्नान करने जाने से मना कर दिया क्योंकि उसी दिन रविदास जी ने किसी व्यक्ति को जूते बनाकर देने का वचन दिया था फिर रविदास जी ने कहा की यदि मान लो मै गंगा स्नान के लिए चला भी जाता हूँ तो मेरा ध्यान तो अपने दिए हुए वचन पर लगा रहेगा फिर यदि मैं वचन तोड़ता हूँ तो फिर गंगास्नान का पुण्य कैसे प्राप्त हो सकता है। यह घटना रविदास जी के कर्म के प्रति निष्ठा और वचन पालन को दर्शाता है जिसके कारण इस घटना पर संत रविदास जी ने कहा कि यदि मेरा मन सच्चा है तो मेरी इस जूते धोने वाली कठौती में ही गंगा है। रविदास जी हमेशा से ही जातिपाती के भेदभाव के खिलाफ थे और जब भी मौका मिलता वे हमेशा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाते रहते थे रविदास जी के गुरु रामानन्द जी थे जिनके संत और भक्ति का प्रभाव रविदास जी के ऊपर पड़ा था। इसी कारण रविदास जी को भी मौका मिलता वे भक्ति में तल्लीन हो जाते थे जिसके कारण रविदास जी से बहुत सुनना पड़ता था और शादी के बाद तो जब रविदास जी अपने बनाये हुए जूते को किसी जरूरतमंद को बिना मूल्य में ही दान दे देते थे जिसके कारण इनका घर चलाना मुश्किल हो जाता था। इस कारण रविदास जी को इनके पिता ने अपने परिवार से अलग कर दिया था फिर भी रविदास जी ने कभी भी भक्तिमार्ग को नही छोड़ा। अर्थात रविदास जी ईश्वर को अपना अभिन्न अंग मानते थे और ईश्वर के बिना जीवन की कल्पना भी नही करते थे जिसका वर्णन हमे इस पंक्ति में दिखाई देता है। रविदास जी जाति व्यवस्था के सबसे बड़े विरोधी थे उनका मानना था की मनुष्यों द्वारा जातिपाती के चलते मनुष्य मनुष्य से दूर होता जा रहा है और जिस जाति से मनुष्य मनुष्य में बंटवारा हो जाये तो फिर जाति का क्या लाभ ?
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
रविदास जी के समय में जाति भेदभाव अपने चरम अवस्था पर था जब रविदास जी के पिता की मृत्यु हुई तो उनका दाहसंस्कार के लिए लोगो की मदद मांगने पर भी नहीं मिली। लोगों का मानना था कि वे शुद्र जाति के है और जब उनका अंतिम संस्कार गंगा में होगा तो इस प्रकार गंगा भी प्रदूषित हो जायेगी जिसके कारण कोई भी उनके पिता के दाहसंस्कार के लिए नही आता है तो फिर रविदास जी ईश्वर की प्रार्थना करते है। उसी समय गंगा में तूफान आ जाने से उनके पिता का मृत शरीर गंगा में विलीन हो जाता है। तभी से यह कहा जाता है कि काशी में गंगा उलटी दिशा में बहती है। रविदास जी की महानता और भक्ति भावना की शक्ति के प्रमाण इनके जीवन के अनेक घटनाओ में मिलती है है जिसके कारण उस समय का सबसे शक्तिशाली राजा मुगल साम्राज्य बाबर भी रविदास जी के नतमस्तक था और जब वह रविदास जी से मिलता है तो रविदास जी बाबर को दण्डित कर देते है जिसके कारण बाबर का हृदय परिवर्तन हो जाता है और फिर सामाजिक कार्यो में लग जाता है। रविदास जी के जीवन में ऐसी अनेको तमाम घटनाएं है जो आज भी हमे जातीपाती की भावना से ऊपर उठकर सच्चे मार्ग पर चलते हुए समाज कल्याण का मार्ग दिखाती है। रविदास जी की मृत्यु लगभग 126 वर्ष की आयु में 1540 में वाराणसी में हुई।

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