गणतंत्र की मर्यादा को समझें

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लखनऊ : आज सवेरे एक अंग्रेजी अखबार की हेड लाइन थी 'देयर्स फ्रीडम टु स्टोन स्कूल बस बिद चिल्ड्रेन' अर्थात् बच्चों से भरी स्कूल बस पर पत्थर फेंकने की आजादी। ठीक एक दिन बाद हम अपने गणतंत्र दिवस की 69वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। यह संविधान को आत्मसात करने का दिन है। इसी दिन से हमारे आजाद देश में हमारा अपना बनाया हुआ कानून-नियम लागू हुआ था। संविधान सभा के विद्वान सदस्यों ने तब सोचा भी नहीं होगा कि संविधान की इस तरह से धज्जियां उड़ाई जाएंगी। एक फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए जिस तरह की अराजकता की जा रही है, वह हमे शर्मसार कर रही है, हमारे गणतंत्र की मर्यादा को कम कर रही है। इस फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति देश के सबसे बड़े न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने दे रखी है और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे सिनेमाघरों को सुरक्षा प्रदान करें, अराजक तत्वों को रोकें। सुप्रीम कोर्ट उसी संविधान का पालन करवाता है जो हमारे देश में सबसे बड़ा है। हमारे संविधान को ब्रिटिश संविधान के नमूने पर जरूर बनाया गया था लेकिन एक बड़ा अंतर यह रखा गया कि ब्रिटेन में जहां संसद सर्वोच्च है, वहीं भारत में संविधान सबसे बड़ा है। इस बार के गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में होने वाले मुख्य समारोह में दस देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी मेहमान के तौर पर मौजूद होंगे। उनके मन में हमारे गणतंत्र के प्रति कैसी भावना रहेगी, इस पर विचार करके ही इस अराजकता को फौरन रोका जाना चाहिए।
भारत के लिए 26 जनवरी 1950 का दिन स्वर्णाक्षरों में लिखा गया जब हमने अपना जन कल्याणकारी और सुशासन का बेहतरीन संविधान तैयार करके लागू कर दिया था। हजारों वर्ष की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को इस देश को आजादी मिली थी। इसके लिए लाखों लोगों ने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी। अंग्रेज कहते थे कि हम इस देश को आजाद भी कर देंगे तो इसे संभालेगा कौन? उनको हमने मुंहतोड़ जवाब दिया था और ऐसा संविधान बनाया जो इस देश में रहने वाले विभिन्न धर्मों और मतावलम्बियों को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार देता है तथा कौन कार्य किसे करना है, यह भी बताता है। हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी से पहले ही 26 जनवरी 1930 को रावी नदी के तट पर कांग्रेस सम्मेलन में जब पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित कराया और पूरा देश करो या मरो के जोश से आजादी के लिए निकल पड़ा था, तब मजबूर होकर ब्रिटिश साम्राज्य को यहां से भागना पड़ा था। आजादी मिलने के बाद संविधान बनाने की बात हुई थी लेकिन संविधान सभा तो काफी पहले से बन गयी थी। आजादी भारत का विभाजन करके मिली थी, इसलिए 9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की जो पहली बैठक हुई थी, उसके जनप्रतिनिधियों को हटाया गया जो पाकिस्तान में चले गये क्षेत्रों से चुने गये थे। 14 अगस्त 1947 को संविधान सभा की बैठक हुई जिसके अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा थे। कुछ दिन बाद ही श्री सिन्हा का निधन हो गया और डा. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया। फरवरी 1948 में हमारे संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ और 26 नवम्बर 1949 को संविधान बनकर तैयार हो गया था। इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक सर्वप्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रीय गणराज्य घोषित किया गया। संविधान के मुख्य उद्देश्यों में सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय दिलाना, विचारों की अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास एवं पूजापाठ की स्वाधीनता प्रदान करना, पद और अवसर की समानता प्रदान करना और व्यक्ति की गरिमा व अखंडता सुरक्षित रखने की बात कही गयी है। इस संविधान में समय और परिस्थिति के अनुकूल संशोधन करने की गुंजाइश भी छोड़ी गयी।
इतने अच्छे और सर्वहितकारी संविधान को कुछ लोगों ने अपने-अपने अर्थों से प्रयोग करना शुरू कर दिया। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कोई देश विरोधी नारे लगाने लगा तो कोई दूसरे धर्म-सम्प्रदाय की निंदा करने लगा। संविधान ने देश की व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए मुख्य रूप से तीन स्तम्भ बनाये थे- विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका। इन तीनों में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गयी और सभी व्यवस्थाएं एक-दूसरे में हस्तक्षेप करने लगीं। पिछले दिनों ही न्यायव्यवस्था का शर्मनाक चेहरा तब दिखा जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने पत्रकार वार्ता करके मुख्य न्यायाधीश पर अनियमितता का आरोप लगाया था। विधायिका के लोगों का जिक्र किया जाए तो पूरा इतिहास ही बन जाएगा। अभी ताजा मामला बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद यादव और डा. जगन्नाथ मिश्र का है जिन्हें चाइवासा चारा घोटाले में सजा सुनाई गयी है। लालू यादव के खिलाफ तो यह तीसरा मामला है जिसमे करोड़ों (33 करोड़ से ऊपर) रुपये के मामले में घोटाला करने पर सजा मिली है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को चुनाव आयोग ने अयोग्य घोषित कर दिया है जबकि इन्हीं अयोग्य विधायकों ने अपनी पार्टी से तीन लोगों को संसद के उच्च सदन अर्थात् राज्यसभा में भेजा है। कार्यपालिका के कितने ही वरिष्ठ अधिकारी अपने कर्तव्य से गिर गये हैं।
लोकतांत्रिक संस्थाओं की यह गिरावट हमारे संविधान की गरिमा को कम कर रही है। संविधान का उपहास करने वाले आम जनता के बीच भी है और भले ही वे किसी प्रलोभन में ऐसा कार्य कर रहे हैं लेकिन जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य वे भी भूल गये हैं। संविधान में दी गयी स्वतंत्रता का वे नाजायज फायदा उठाते हैं। फिल्म पद्मावत के विरोध में प्रदर्शन करने वाले जगह-जगह तोड़फोड़ करते हैं और वाहनों में आग लगा रहे हैं। यह जानते हुए भी कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति दी है। इस प्रकार की अराजकता अक्सर देखने को मिलती है जो हमारे गणतंत्र की भावना के विपरीत है। संविधान ने जिन संस्थाओं को नियंत्रण का अधिकार दिया है, उनकी खामोशी इसीलिए समझ में नहीं आती है। संविधान का ध्यान रखते हुए राज्य सरकारों को अपना दायित्व निभाना चाहिए। अफसोस यही है कि संविधान में दिये अधिकारों को हमने महत्व दिया लेकिन कर्तव्यों को नहीं देखा। प्राथमिकता हमे अपने कर्तव्यों को देनी होगी, तभी हम 26 नवम्बर को संविधान दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की सार्थकता साबित कर सकेंगे।
इस बार के गणतंत्र दिवस समारोह में सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सिथन लुंग, थाईलैण्ड के प्रधानमंत्री प्रायुत चान ओचा, म्यांमार की चर्चित नेता आंग सान सूकी, बु्रनेई के सुल्तान बोल्कििया, कम्बोडिया के प्रधानमंत्री हुनसेन, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जो को विडोडो, मलयेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रज्जाक, वियतनाम के प्रधानमंत्री न्गुयेन शुयान फुक, लाओस के प्रधानमंत्री थांगलौन सिसोलिथ और फिलीपीन्स के राष्ट्रपति राड्रिगो दुतेर्ते विशेष मेहमान के रूप में मौजूद हैं और भारत के गणतंत्र से अच्छी प्रेरणा लेकर जाएं, हमे ऐसा व्यवहार करना चाहिए। भारत एक महाशक्ति है, इसकी झांकी भी गणतंत्र दिवस समारोह में दिखाई जाएगी। पूरी दुनिया अब यह समझने लगी है कि इस देश ने आजादी के बाद विभिन्न क्षेत्रों में विकास किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी हाल ही दावोस में भारत की आर्थिक प्रगति के साथ विश्व समुदाय की भावना से सभी को परिचित कराया था। उससे पहले भारत ने अग्नि-5 मिसाइल का सफल प्रक्षेपण करके यह जता दिया कि उसके पास चीन जैसे विशाल देश के समूचे भू-भाग पर मार करने की क्षमता है। भारत के शांति एवं मैत्रीभाव से पूरी दुनिया परिचित है तो भारत के सबसे बेहतर संविधन की गरिमा भी दुनिया के कोने-कोने में पहुंचनी चाहिए। यही हमारे गणतंत्र दिवस का संदेश भी है।

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