भारत के संविधान से खेलने वाले 'आम आदमी पार्टी' के विधायक

भारत के संविधान से खेलने वाले आम आदमी पार्टी के विधायक

दिल्ली : देश की सियासी मंडी कही जाने वाली दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता खतरे में पड़ गई है। इन पर आरोप है कि इन्होंने सिटिंग विधायक रहते दूसरे लाभयुक्त पदों पर भी कब्जा किया है। आरोप सही पाए जाने पर चुनाव आयोग ने इन्हें अयोग्य करार दे दिया है। मुद्दे को लेकर गत दिनों अंतिम जिरह हुई थी जिसमें सभी की सदस्यता रद करने के आदेश चुनाव आयोग ने जारी किए। चुनाव आयोग ने सभी विधायकों को फिर से आम आदमी बनाने को राष्ट्रपति से अंतिम ठप्पा लगवाने के लिए सिफारिश भेज दी थी। बेदखली के आदेश राष्ट्रपति के तरफ से भी आ गये। इन 20 विधायकों को स़ड़क पर लाने की पटकथा लिखी गई है दिल्ली हाईकोर्ट के युवा अधिवक्ता प्रशांत पटेल द्वारा। वकील प्रशांत पटेल से पूरे मसले पर विस्तृत बातचीत की गयी। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।
क्या हैं लाभ के पद के संविधानिक पचड़े ?
संविधान के अनुच्छेद 102-1ए के तहत जनप्रतिनिधि जैसे संसद सदस्य या एमएलए होते हुए किसी अन्य ओहदे पर नहीं हो सकते, जिनमें सैलरी या कोई अन्य सुविधा मिलती हो। यहां तक कार्यालय के लिए स्थान या सरकारी खर्चे के वाहन तक नहीं ले सकते। लेकिन आम आदमी पार्टी के 21 विधायक ऐसे लाभ के पदों पर आसीन थे और हर सुविधा ले रहे थे। हालांकि एक विधायक पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं अब 20 बचे हैं। इन विधायकों ने कानून व संविधान को चकलाघर समझ रखा था। जिसका खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ रहा है।
राष्ट्रपति को याचिका भेजते वक्त आपने कभी सोचा था इनका ये हश्र होगा ?
बिल्कुल सोचा था ऐसा होगा। 19 जून 2015 को मैंने राष्ट्रपति को एक खत लिखा था। खत के माध्यम से उनको अवगत कराया था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक सरकारी धन का बंदरबांट कर रहे हैं। विधायक रहते दूसरे लाभ के पद पर भी रहें ऐसी संविधान में बात नहीं कही गई है। राष्ट्रपति ने मेरे अनुरोध को गंभीरता से लिया और चुनाव आयोग को पूरे मामले की जांच करने को कहा। चुनाव आयोग ने अपनी जांच में सही पाया। नतीजा आपके सामने है।
थोड़ा विस्तार से बताएं चुनाव आयोग में क्या हुआ अब तक मामले को लेकर ?
मेरी अर्जी के पांच महीने के भीतर राष्ट्रपति कार्यालय ने मुख्य चुनाव आयोग को मामला भेज दिया था। 10 नवबंर 2015 से चुनाव आयोग ने अपनी इंटरनल जांच शुरू कर दी थी, जिसमें तब से अबतक 11 सुनवाई हुई। सभी जिरह में मुझे भी तलब किया गया। 14 जुलाई 2016 से लेकर 27 मार्च 2017 तक तय तारीखों में जमकर माथापच्ची हुई। तीन-तीन घंटों तक जिरह हुई लेकिन मुकर्रर 19 जनवरी को दी एंड हो गया। फैसले के बाद ये विधायक हाईकोर्ट पहंुचे, वहां भी इन्हें मुंह की खानी पड़ी। कोर्ट ने इनकी याचिका को खारिज कर दिया।
लाभ के फेर में फंसे विधायकों द्वारा बचाव की दलील क्या रही थीं ?
सभी भागते नजर आए। चुनाव आयोग के बुलावे पर भी नहीं पहुंचे। दरअसल उनके पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं जो चुनाव दरबार में जाकर कहते। दिल्ली के विधायकों ने संविधानिक चीजों को अपनी बुआ का घर समझ लिया था। जो मन में आए करो का माहौल बना दिया था। लेकिन ये लोग शायद यह बात भूल गए कि संविधान से खिलवाड़ करने की सजा क्या हो सकती है। देखिए, दिल्ली में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। दिल्ली के ही पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के वक्त भी लाभ के पद पर रहते सचिव नंद किशोर गर्ग को चुनाव आयोग ने अयोग्य करार दिया था।
इन्हें बर्खास्त कराके आपको क्या फायदा होगा ?
प्रत्येक नागरिक का फर्ज बनता है कि वह समाज में गलत न होने दे। मैंने उसी नागरिक धर्म का पालन किया है। मेरी न सियासत में जाने की मंशा है। और न किसी लोभ-माया की। मेरी अन्तरात्मा कहती है कि मैं ठीक कर रहा हूं। बाकि कोई कुछ भी कहें परवाह नहीं? वकील हूं इसलिए कानून की एबीसीडी समझता हूं। संविधान के अनुच्छेद 191-1ए और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9ए के तहत भी सांसद-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है। संविधान के इसी हथियार का मैंने इस्तेमाल किया है।
आपने 20 विधायकों की रोजी-रोटी छीनीं है, भविष्य में आपको नुकसान भी पहुंचा सकते हैं ?
मैंने गृहमंत्रालय को दो बार सुरक्षा के लिए लिखा है जिसका उन्होंने जवाब नहीं दिया। मुझे धमकियां भी मिल रही हैं। कुछ महिलाओं के फोन भी आए हंै जो मुझे गलत कामों के आड़ में फंसाने की प्लानिंग कर रहीं थीं। पर, मैं सतर्क हूं। अगर अचानक मेरे साथ कुछ अनहोनी घटनाएं घटती हैं तो निश्चित तौर पर उसके गुनाहगार ये लोग होंगे? बाकी मुझे डर नहीं किसी बात का। मैं अपना काम ईमानदारी से करने की कोशिश करता हूं।
इस मुहिम में आपका किसी ने सहयोग किया ?
जरूरत ही नहीं किसी के सहयोग की। सब कुछ मैंने खुद से मैनेज किया है। हां, मेरे सीनियर्स ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। मुझे लोग भाजपा का एजेंट होने का आरोप लगा रहे हैं। सच्चाई ये है कि मैं किसी भी नेता को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता। इसके अलावा भी मुझ पर बेवजह के आरोप लग रहे हैं। दरअसल ऐसा होना मैं स्वाभाविक भी समझता हूं।
अयोग्य विधायकों ने कोर्ट से वापस ली अर्जी
आम आदमी पार्टी के अयोग्य घोषित किये गये 20 विधायकों में 6 विधायकों ने हाईकोर्ट से अपनी अर्जी वापस ले ली है क्योंकि उन्हें लगता है कि राष्ट्रपति ने भी जब चुनाव आयोग के फैसले को बरकरार रखा तो अब हाईकोर्ट मंे जाने का कोई मतलब नहीं रह गया है।
आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाये जाने पर आपत्ति करते हुए राष्ट्रपति से शिकायत की गयी थी। राष्ट्रपति ने इस मामले को चुनाव आयोग के पास भेज दिया था। चुनाव आयोग ने लम्बी सुनवाई के बाद 20 विधायकों को अयोग्य करार दिया क्योंकि एक विधायक पहले ही इस्तीफा दे चुके थे। आपके 20 विधायकों ने चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने और फैसले को स्थगित कराने के लिए हाईकोर्ट मंे जाने का निर्णय लिया। इन विधायकों के वकील समीर वशिष्ठ ने जब यह बताया कि चुनाव आयोग के फैसले पर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उनकी अर्जी निराधार हो गयी है, इसलिए 6 विधायकों की अर्जी वापस लेने की कोर्ट से प्रार्थना की गयी। कोर्ट मंे अभी मूल याचिका लम्बित है जिस पर 20 मार्च को सुनवाई होना नियत है।

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