मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत को बनाना है नया इतिहास

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत को बनाना है नया इतिहास

लोकतंत्र में चुनाव का विशेष महत्व होता है। जनता की सरकार है और जनता ही उसे बना रही है तो जनता को अपने बीच से ही कुछ प्रतिनिधि चुनने होंगे। यही हम चुनाव के माध्यम से करते हैं और यह चुनाव निष्पक्ष, निडर और पारदर्शी तरीके से हो सके, इसकी व्यवस्था चुनाव आयोग करता है। चुनाव आयोग को स्वायत्तशासी संस्था माना गया है लेकिन वर्षों तक इसे एक मशीन ही समझा जाता था। मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में टीएन शेषन ने जब दायित्व संभाला, तब देश की जनता ने समझा था कि चुनाव आयोग भी एक 'सरकार' की तरह होता है, जिसके पास बड़ी ताकत है और वह जनता को चुनाव की पारदर्शिता दिखा भी सकता है। शेषन ने चुनाव आयोग की एक नयी इबारत लिखी थी जो आगे आने वाली चुनाव आयुक्तों की पीढ़ी के लिए मार्ग दर्शन बनी। अब ओपी रावत उस महान दायित्व को संभालने जा रहे हैं और उन्होंने यह बात जोर देकर कही भी थी कि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाने चाहिए क्योंकि चुनाव आयोग इसके लिए सक्षम है। इसकी शुरुआत उनके कार्यकाल में ही हो सकेगी अथवा नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बहस को शुरू किया था और बहस अब भी जारी है। ओपी रावत इसको पुख्ता आधार दे सकते हैं।
मौजूदा चुनाव आयुक्त एके ज्योति का कार्यकाल 23 जनवरी 2018 को खत्म हो गया। उन्होंने अपने कार्यकाल में उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, मणिपुर, गोवा के साथ हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव सम्पन्न कराये। इस दौरान इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर आशंका जतायी गयी। कई राजनीतिक दलों ने गंभीर आरोप लगाये। दिल्ली राज्य की विधानसभा में तो इसका डेमो तक किया गया। इससे मुख्य चुनाव आयुक्त एके ज्योति काफी दुखी हुए और चुनाव आयोग की गरिमा को बनाये रखने के लिए उन्होंने सभी राजनीतिक दलों को खुला चैलेंज दिया था कि ईवीएम में अनियमितता को साबित करें लेकिन कोई भी राजनीतिक दल सामने नहीं आया। ईवीएम पर आरोप तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश मंे विधानसभा चुनाव के बाद भी लगाये गये। उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनावों में भी इन आरोपों को दोहराया गया था लेकिन एके जोती के चुनाव आयोग ने ईवीएम को बेदाग साबित कर दिया था। अपनी बात को पुष्ट करते हुए चुनाव आयोग ने ईवीएम के साथ वीवीपेट की व्यवस्था भी कर दी ताकि मतदाता यकीन कर सके कि उसका वोट वहीं गया हैं, जहां वह देना चाहता था। इसकी एक पर्ची मशीन से निकलती है। इस प्रकार एके जोती ने ईवीएम को पाक-साफ साबित कर दिया। उनके कार्यकाल का अंतिम बड़ा फैसला आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का रहा है जिसके लिए अरविन्द केजरीवाल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने पहुंचे हैं।
अब बारी ओम प्रकाश रावत की है जो ईमानदारी के लिए पुरस्कृत भी किये जा चुके हैं। इनके पूर्वजों का संबंध तो उत्तराखण्ड से रहा है लेकिन श्री ओपी रावत का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में 2 दिसम्बर 1953 को हुआ था। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है लेकिन इससे पूर्व ही 65 वर्ष की उम्र हो जाने पर उन्हें सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। इस दृष्टि से देखें तो श्री ओपी रावत को इसी साल दिसम्बर तक ही कार्य करना है और उनके बाद आयोग के वरिष्ठ सदस्य यह दायित्व संभालेंगे। ओपी रावत 31 दिसम्बर 2013 को केन्द्र सरकार में सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वह मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस हैं और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं। रावत नरसिंहपुर और इंदौर के जिलाधिकारी रहे हैं। मऊ और इंदौर में हुए साम्प्रदायिक दंगों को रोकने में ओपी रावत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के चीफ सेक्रेटरी, महिला एवं बाल कल्याण विभाग प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे हैं। इस पद पर रहकर आदिवासी क्षेत्रों में कार्य करने का उन्हें विशेष अनुभव है। ओम प्रकाश रावत को नर्मदा वैली डेवलपमेंट अथारिटी का वाइस चेयरमैन भी बनाया गया था। उन्होंने एक्साइज कमिश्नर का पद भी संभाला। ओम प्रकाश रावत ने यूनाइटेड किंगडम (इंग्लैण्ड) से सोशल डेवलपमेंट प्लानिंग (एसडीपी) में एमएससी की डिग्री हासिल की। इसके साथ ही भौतिक विज्ञान से भी एमएससी की पढ़ाई की है। ईमानदारी के लिए प्रधानमंत्री की तरफ से सर्वश्रेष्ठ लोकसेवक का उन्हें पुरस्कार दिया गया था।
ओम प्रकाश रावत का कहना है कि हर मतदाता को चुनाव प्रक्रिया से जोड़कर लोकतंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए। इसलिए हर मतदाता को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ना हमारी प्राथमिकता होगी। वह कहते हैं कि भारत जैसे विशाल देश में हर मतदाता को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ना और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना मेरी जिम्मेदारी होगी। हालांकि यह काम आसान नहीं है क्योंकि काफी सतर्कता बरतने के बावजूद कुछ लोगों के नाम मतदाता सूची से गायब रहते हैं। चुनाव के समय इसकी शिकायत मिलती है। अभी उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के समय कितने ही मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गायब थे और वे अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाये। ओपी रावत इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं। उन्हांेने 5 अक्टूबर 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में चुनाव अधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठक में इस बात को विशेष रूप से उठाया था। मध्य प्रदेश में भी इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। ओम प्रकाश रावत ने कहा था कि स्कूल, कालेज, आंगनबाड़ी केन्द्रों और सामाजिक संस्थाओं, जहां से भी मतदाताओं को जोड़ सकते हैं, वहां से उन्हें जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने यह जरूर कहा था कि कब तक 100 फीसद मतदाताओं को हम मतदाता सूची से जोड़ पाएंगे, यह कहना संभव नहीं है क्योंकि हर साल 18 साल के होने वाले युवक-युवतियों को मतदाता बनाया जाता है। उन्हांेने बताया था कि मध्य प्रदेश समेत 17 राज्यों में कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। मध्य प्रदेश में ही करीब 10 लाख नये मतदाता जोड़े जाने थे। श्री रावत ने कहा था कि इस प्रोजेक्ट को अच्छा रिस्पांस भी मिल रहा है।
इसी अवसर पर ओम प्रकाश रावत ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की बात भी कही थी। उन्होंने श्री नरेन्द्र मोदी की बात को ही आगे बढ़ाया था और कहा कि यदि लोकसभा और विधानभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाएं तो इसमें अरबों रुपये तो बचेंगे, साथ ही चुनाव अधिकारियों-कर्मचारियों व दूसरे लोगों को अन्य कार्य का अवसर भी मिल जाएगा। ओम प्रकाश रावत ने बताया था कि दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए 40 लाख ईवीएम और वीपीपेट की जरूरत होगी, जिनकीे आपूर्ति का सिलसिला शुरू हो गया है। उन्होंने कहा था कि सितम्बर 2018 तक संसाधन के तौर पर चुनाव आयोग दोनों चुनाव एक साथ कराने में सक्षम होगा। इसके लिए नियम-कानूनों में विशेष संशोधन के लिए केन्द्र सरकार को कदम उठाने होंगे। ओपी रावत ई वोटिंग का अधिकार भी मतदाताओं को देने के पक्ष में हैं।
टीएन शेषन ने जिस तरह गुंडागर्दी को किनारे करते हुए बिहार जैसे राज्य में कई चरणों में मतदान कराकर चुनाव आयोग को एक नया रूप और नयी शक्ति दिलवायी थी, क्या ओम प्रकाश रावत भी दोनों चुनाव एक साथ करवाने की प्रक्रिया शुरू करा सकेंगे? उनका कार्यकाल भले ही छोटा है लेकिन लगभग एक दर्जन विधानसभाओं के चुनाव उनको ही सम्पन्न कराने हैं। चुनावों की पारदर्शिता पर जो सवाल उठ रहे हैं, उनका भी समाधान ओम प्रकाश रावत को ही करना पड़ेगा।

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