नेता सुभाष चन्द्र बोस की जिंदगी की अनसुलझी गुत्थी

नेता सुभाष चन्द्र बोस की जिंदगी की अनसुलझी गुत्थी

राष्ट्रनायक नेता सुभाष चन्द्र बोस के जिंदगी की अनसुलझी गुत्थी को सुलझाने के लिए हिन्दोस्तान हकूमत ने एक और कोशिश की थी । नेता के अन्य भक्तों के अथक प्रयास से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निर्देश पर एक और आयोग का गठन कर दिया गया था । इस न्यायिक आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायमूर्ति एम.के.मुखर्जी हैं। आयोग के सामने यह एक बड़ी चुनौती है क्योकि जिस कार्य को पूर्व के दो आयोग पूरा नहीं कर सके उसे पूर्ण करने का एक बार फिर प्रयास करने की जिम्मेदारी उसे सौंपी गई थी।
हिन्दोस्तान के विभिन्न हिस्सों में जाने के बाद मुखर्जी आयोग ने गत 26 से 30 नवम्बर तक फैजाबाद में जांच की तथा गुमनामी बाबा के उसे सामानों को देखा जो कि 16 साल से जिला कोषागार के दोहरे तालों में बंद थे। ये सामान 24 बड़े बक्सों में हैं। आयोग के लिए फैजाबाद की जांच अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहीं दो वर्ष तक गुमनामी बाबा रहे थे जिनके बारे में लोगों का वि·श्वास है कि वे नेता सुभाष चन्द्र बोस थे। गुमनामी बाबा की 16 सितम्बर, 1985 को सिविल लाइन स्थित रामभवन में कथित रूप से हुई मृत्यु के बाद स्थानीय समाचार पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था कि बाबा ही नेताजी थे। इसलिए उनके सामानों को सुरक्षित रखा जाय। समाचार पढ़कर फैजाबाद पहुंची नेता की भतीजी ललिता बोस ने भी उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की थी कि गुमनामी बाबा के सामान को सुरक्षित रखा जाय। उनके द्वारा दायर याचिका पर 10 फरवरी '86 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैजाबाद जिला प्रशासन को आदेश दिया था कि इन सामानों को सूचीबद्ध करके दोहरे ताले में राजकीय कोषागार में रखा जाय। तभी से ये सामानों कोषागार में रखे हुए थे। सामानों की सूची बनाने के लिए सत्यनारायण सिंह सत्य को अधिवकत्ता आयुक्त नियुक्त किया गया था। उन्होंने 23 मार्च '86 से 23 अप्रैल '87 तक सामानों को सूचीबद्ध किया जिनमें 2760 वस्तुएं थी।

गत 26 नवम्बर को न्यायमूर्ति एम.के.मुखर्जी के सामने गुमनामी बाबा के सामानों को खोलना प्रारम्भ किया गया। सामानों को देखकर उपस्थित सदस्यों, अधिवक्ताओं एवं अन्यविशिष्ट व्यक्तियों का कौतूहल बढ़ता चला गया। इनमें अधिकांशतः पुस्तकें हैं। वस्तुओं को देखकर यह कहा जा सकता है उक्त व्यक्ति चाहे जो भी हो वह अत्यन्त विशिष्ट व असाधारण व्यक्तित्व था। उनका जीवन अत्यधिक व्यवस्थित रहा होगा। उनके पास ज्ञान का अथाह सागर रहा होगा। पुस्तकों का अपार भण्डार था। पुस्तकें भी दुर्लभ से दुर्लभ। बंगला का सम्पूर्ण साहित्य, अंग्रेजी के सभी प्रमुख लेखकों की पुस्तकें, विभिन्न विषयों के प्रमुख ग्रंथ, जिनमें अनेक युद्ध विवरणों पर आधारित, हिन्दी की धार्मिक पुस्तकें-रामचरित मानस, श्रीमद्भगवदगीता, कल्याण, पाञ्चजन्य, आर्गनाइजर, राष्ट्रधर्म और रीडर्स डाइजेस्ट, मिरर के अंक हैं। अनेक समाचार पत्रों की वे कतरने, जिनमें नेताजी के बारे में समाचार प्रकाशित हुए। हिन्दी की पुस्तकों में पंचतंत्र, भारतीय जड़ी-बूटियों पर पुस्तकें,मथुरा के अखण्ड ज्योति प्रेस से प्रकाशित गायत्री महाविज्ञान पुस्तक, झांसी के वैद्यनाथ औषधालय की पुस्तकें, संन्यास धर्म पद्धति,जपसूत्रम, होम्योपैथिक पर पुस्तकें, दिल्ली के सूर्य प्रकाशन से प्रकाशित तथा हंसराज भाटिया लिखित फतेहपुर सीकरी एक हिन्दू नगर तथा अंग्रेजी में ताजमहल ए हिन्दू पैलेस, बंगला में गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर का साहित्य तथा अग्रेजी में सेक्सपियर से लेकर लोबसंग रैम्पा का साहित्य, रूस की क्रांति पर पुस्तक, इण्टरनेशनल मिलिट्री ट्रिब्यूनल की रपट आदि प्रमुख पुस्तकें प्राप्त हुईं। चीन युद्ध पर एक पुस्तक "चाइना वार ए हिमालयन विलण्डर' जिसके लेखक ब्रिगेडियर दलवी थे।

ज्योतिष में अंक ज्योतिष, फलित ज्योतिष, स्वास्थ्य पर पुस्तकों में एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथिक एवं एक्यूप्रेशर पर पुस्तकें सम्मिलित हैं। इसके अलावा उनके सामान में खोसला आयोग की रपट जो कि नेताजी के बारे में गठित दूसरा आयोग था। डाक विभाग की डा-निर्देशिका (पोस्टल गाइड) चित्रों के दो मुहरबंद लिफाफे जिनके बारे में कहा जाता है कि उनमें नेता जी के परिवार के चित्र हैं। पत्रों की एक मुहरबंद संचिका (फाइल) तथा नेता के भाई सुरेश चन्द्र बोस द्रारा तैयार की गई एक डिसेण्डेण्ट रपट की प्रति। अन्य सामानों में टूटा हुआ एक दांत, कंघा, चश्मा, घड़ी, सिगरेट पीने का पाइप, पांच सौ पचपन नम्बर की सिगरेट, जूता रखने का कवर, जूता साफ करने का कपड़ा, छोटा टाइप राइटर, कई जोड़े सिल्क के कुर्ते व धोती, चादर, गेरुआ रंग का कुर्ता आदि वस्त्र भी सामान में शामिल हैं। सभी कपड़े कलकत्ता से खरीदे गए थे। कपडों पर कलकत्ता की दुकानों की पर्ची लगी थी। आयोग ने इन सामानों में ऐसी कुछ पुस्तकें जिन पर हाथ से टिप्पणियां लिखी गईं हैं अपने पास जांच के लिए रख ली हैं। अनेक पत्र भी आयोग ने रखे हैं। आयोग ने इस सम्बन्ध में विभिन्न लोगों से साक्ष्य एकत्रित किए हैं। तीन दिन तक आयोग ने अदालत लगाकार लोगों के बयान लिए जो नेताजी के बारे में कुछ भी जानकारी देना चाहते थे।

गुमनामी बाबा की कथित मृत्यु पर सर्वाधिक लिखने व रपट प्रकाशित कर इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में सफल रहे पत्रकार अशोक टण्डन कहते हैं कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे। टण्डन ने बताया कि बाबा के सामानों को जिस समय सूचीबद्ध किया जा रहा था उस समय में वहीं पर था। सामान में जो पत्र हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि वे नेता जी ही थे। क्योंकि गुमनामी बाबा के सामान से बड़ी संख्या में बंगाल के क्रांतिकारी संगठनों, अनुशीलन समिति, बंगाल वालिंटियर्स, श्री संघ, आदि के पदाधिकारियों त्रिलोक्यनाथ चक्रवर्ती, सुनील कृष्ण गुप्त, अतुल कृष्ण गुप्त,सुनील दास, आजाद हिन्द फौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन राय आदि के पत्र तथा टेलीग्राम प्राप्त हुए। अनेक पत्र ऐसे हैं जो कि 23 जनवरी के अवसर पर लिखे गए थे।

गुमनामी बाबा जिस रामभवन में अन्तिम समय रहे उसके स्वामी श्री संतबख्श सिंह को भी यह वि·श्वास है कि उनके आवास में दो वर्ष तक रहा वह असाधारण संत नेता जी ही थे। श्री सिंह कहते हैं कि स्वामी जी परदे के पीछे से सभी से बात करते थे। उन्होंने बताया कि जिस समय बाबा जी उनके आवास के पीछे के एक हिस्से में रहने के लिए आए तो उनका सामान बक्सों में भरकर अयोध्या से ट्रक से लाया गया था। श्री सिंह इस बात से प्रसन्न हैं कि बाबा के रहस्य से परदा उठाने के लिए केन्द्र सरकार ने आयोग का गठन कर दिया है। वे कहते हैं कि आयोग को अपनी जांच की परिधि में तत्तकालीन अधिकारियों को भी लाना चाहिए। उस समय के जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी साक्ष्य अथवा जानकारी देने के लिए बुलाना चाहिए।श्री सिंह कहते हैं कि प्रशासन को भी बाबा के बारे में कुछ जानकारी अवश्य रही होगी।
फैजाबाद के डा आर.पी. मिश्र का परिवार गुमनामी बाबा के अत्यन्त निकट रहा। लेकिन डा.मिश्र एवं उनके परिवार के लोग इस प्रकरण पर लगभग चुप्पी साधे हुए हैं। उनसे जब बाबा के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि वे उन्हें केवल एक संत के रूप में जानते थे। वे एक पहुंचे हुए संत थे हर समय साधना में लीन रहते थे। डा.मिश्र के अनुसार उनकी मृत्यु 16 सितम्बर, 1985 को रात्रि 9 बजे हुई। इसके बाद उनकी अन्त्येष्टि सरयू के गुप्तार घाट पर कर दी गई। डा.मिश्र यह स्वीकारते हैं कि दिन में बाबा का स्वास्थ्य खराब होने पर वे उन्हें देखने गए थे। बाबा कौन थे इस बारे में डा.मिश्र मौन हैं। किन्तु डा.मिश्र के पुत्र निरुपम ने आयोग के समक्ष गवाही में यह स्वीकार किया कि बाबा की मृत्यु के बाद वह कलकत्ता में पवित्र मोहन राय को सूचना देने गया था। बाबा के पास कभी-कभी जाने वाली छवि चटर्जी बताती हैं कि उनकी बहन जर्मनी में हैं। यह जानकारी बाबा को हुई तो वे उनसे जर्मनी के बारे में जानकारी करते थे। उन्हें जर्मनी के शहरों के बारे में गहन जानकारी थी। लेकिन चटर्जी ने भी कभी बाबा को नहीं देखा वे एक पर्दे के माध्यम से ही उनसे बात करते थे।
आयोग के सचिव पी.के.सेनगुप्ता ने बताया कि आयोग का गठन 14 जनवरी, 1999 को किया गया था।आयोग ने दिसम्बर 99 से कार्य प्रारम्भ किया। आयोग का कार्यकाल चार बार बढ़ाया जा चुका है। दो बार छह-छह माह तथा दो बार एक-एक वर्ष। उन्होंने बताया कि आयोग जांच करेगा कि क्या नेताजी की मृत्यु जापान में विमान दुर्घटना में हुई? अगर नहीं तो उनकी मृत्यु कब, कहां और कैसे हुई। यदि वह जीवित हैं तो कहां हैं? क्या जापान के रेनकोजी मन्दिर में रखी अस्थियां व भस्म नेताजी की है? श्री सेनगुप्ता ने बताया कि आयोग ने गठन के उपरान्त समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कराया था कि यदि कोई नेताजी के बारे में जानकारी रखता हो अथवा उसके पास कोई साक्ष्य हों तो वह शपथ पत्र दे। इस पर आयोग को 68 शपथ पत्र प्राप्त हुए।आयोग फैजाबाद आने के पूर्व चेन्नई, देहरादून, कानपुर में जांच कर चुका है। आयोग कलकत्ता और दिल्ली में भी जांच करेगा तथा अगले बर्ष आयोग का दल जापान भी जाएगा। सेनगुप्ता ने बताया आयोग ने चेन्नई में मेजर भास्करन, देहरादून में कर्नल प्रीतम सिंह और कानपुर में कर्नल लख्खी सहगल की गवाही ली।
जारी..............

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