बुढ़ापे में भी कायम रहे होशो हवाश
प्रो. रिजवी और उनकी टीम ने जब इस मामले में शोध किया तो पाया कि एंजिग अर्थात बुढ़ापा कुछ बायोमार्कर होते हैं जैसे कि प्रो. आक्सीडेंटए एंटी आक्सीडेंट, माइटोकाॅड्रियल फंक्शन, एक्सप्रेशन आफ जीन्स तथा एपाक्टाॅसिस सेल डेथ आदि। इन सभी पर गहराई से अध्ययन किया तो पाया कि फिसेटिन नामक कंपाउंड ढलती उम्र के साथ मस्तिष्क को होने वाले नुकसान को रोकता है। प्रो. रिजवी और उनकी टीम ने इस प्रयोग को चूहों पर करके आजमाया भी है। प्रो. रिजवी की टीम ने अलग-अलग उम्र के चूहों पर फिसेटिन का प्रयोग किया। इस प्रयोग में इस बात की पुष्टि हुई कि जिन उम्र दराज चूहों को फिसेटिन दिया गया था उनका दिमाग उसी उम्र के चूहों के दिमाग से कहीं ज्यादा सक्रिय था अर्थात ढलती उम्र के चूहों के दिमाग में जो नुकसान होता है वह फिसेटिन वाले चूहों में नहीं हुआ। प्रो. रिजवी के इस शोध को अमेरिका की एक विज्ञान पर आधारित पत्रिका अमेरिकी रिसर्च जर्नल लाइफ साइंसेज ने प्रकाशित किया है तो वहां के वैज्ञानिकों को भी इस खोज में कुछ दम नजर आया होगा। अभी इस पर कई स्तर के प्रयोग होंगे और तब कहीं इसे मनुष्यों के उपचार के लिए मान्यता मिलेगी।
प्रो. रिजवी और उनकी टीम ने जब इस मामले में शोध किया तो पाया कि एंजिग अर्थात बुढ़ापा कुछ बायोमार्कर होते हैं जैसे कि प्रो. आक्सीडेंटए एंटी आक्सीडेंट,...
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