केन्द्र सरकार अगर खाप पंचायतों पर लगाम लगाने में क़ाबिल नहीं है तो हमें कड़े कदम उठाने होंगे :सुप्रीम कोर्ट

केन्द्र सरकार अगर खाप पंचायतों पर लगाम लगाने में क़ाबिल नहीं है तो हमें कड़े कदम उठाने होंगे :सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : भारत की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट को यह कहना ही पड़ गया कि केन्द्र सरकार अगर खाप पंचायतों पर लगाम लगाने में क़ाबिल नहीं है तो हमें कड़े कदम उठाने होंगे। पंचायतें हमारे समाज की शिराएं और धमनियां हैं जिनमें निरंतर रक्त संचार होते रहना चाहिए लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों ने इस तरह से तानाशाही शुरू कर दी जिससे समाज में बेचैनी फैल गयी। ऐसा लगा कि इन धमनियों में अब सिर्फ अशुद्ध रक्त ही रह गया है। इससे समाज रूपी शरीर के बीमार होने का खतरा पैदा हो गया। साथ ही खाप पंचायतें देश के संविधान का खुला उल्लंघन भी करने लगी हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को सख्त शब्दों का प्रयोग करना पड़ा है। केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों की एक बड़ी दुविधा यह है कि खाप पंचायतें बहुत बड़ा वोट बैंक भी बन गयी है । चुनाव में किसका समर्थन करना है, यह भी खाप पंचायतें तय करने लगी हैं इसलिए कोई भी राजनीतिक दल इनका खुलकर विरोध नहीं करता है। सुप्रीम कोर्ट को मामले निस्तारित करने होते हैं और जब कोई ऐसा प्रकरण सामने आता है तो उसे संविधान का पालन करवाना पड़ता है। इस समय लगभग सात वर्ष पुरानी एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है और उसी के चलते विवाह संबंधी दिशा-निर्देश जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अन्तरजातीय विवाह करने वाले ऐसे युवाओं पर खाप पंचायत कोई फैसला नहीं लाद सकती जो बालिग हो चुके हैं। संविधान बालिगों को स्वनिर्णय का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट में गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी ने 2010 में याचिका दायर की थी। इस याचिका में आनर किलिंग अर्थात स्वाभिमान के लिए हत्या रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को निर्देश देने की गुहार लगायी गयी थी। हत्या वैसे भी एक जघन्य अपराध है लेकिन यह मामला सामाजिक व्यवस्था से जुड़ गया और खाप पंचायतें इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी हैं। खाप पंचायतें गांवों में ऐसी सरकार होती है जिनका कोई लिखित संविधान नहीं, कोई पुलिस नहीं, कोई अदालत नहीं लेकिन उनकी बात को कोई काट नहीं सकता। इस प्रकार खाप पंचायतें एक सामुदायिक संगठन हैं। ये पंचायतें अर्द्ध नागरिक संस्थाओं की तरह काम करती हैं। इसके सदस्य समाज के सम्भ्रांत जन होते हैं और सभी लोग उसका सम्मान भी करते हैं उसी तरह खाप पंचायत को समाज का मुखिया माना जाता है। अर्से तक इन पंचायतों ने ईमानदारी और निष्पक्षता से न्याय भी किया है। मुंशी प्रेमचन्द की कहानी पंच परमेश्वर जिन लोगों ने पढ़ी हैं, उन्हें पता होगा कि पंच किस तरह व्यक्तिगत मित्रता, संबंध को किनारे रखकर फैसला करते थे। इसीलिए जनता का विश्वास इन पंचायतों पर जग गया और यह माना गया कि पंच परमेश्वर अर्थात ईश्वर की तरह ही न्याय करते हैं।
दुखद स्थिति तब पैदा हुई जब ये पंच परमेश्वर अपने मार्ग से भटक गये और समाज में जो परिवर्तन आया है उसको पहचान नहीं पाये। समाज बड़ी तेजी से बदला है और निरंतर बदल रहा है। खान-पान से लेकर शादी-ब्याह जैसे संबंधों में भी ऐसा परिवर्तन आया है जो पुरानी पीढ़ी के गले से नीचे नहीं उतर रहा है। जाति-धर्म के बंधन बहुत ढीले हो चुके हैं शहरीकरण और उद्योगीकरण ने लोगों को मजबूर भी कर दिया है कि वे वर्षों की परम्परा को तोड़कर परिवर्तित समाज के साथ चलें। खाप पंचायतें ऐसा नहीं कर पायीं। सन् 2007 में हरियाणा की एक खाप पंचायत ने समाज से बाहर जाकर शादी करने वाले युगल की हत्या का आदेश जारी कर दिया। इस मामले को कोर्ट में ले जाया गया और आरोपियों में पांच को मौत की सजा और एक को उम्रकैद की सजा हो गयी। उत्तर प्रदेश में ही 2014 में एक सामुदायिक पंचायत ने लड़कियों के जींस पहनने और मोबाइल फोन रखने पर पाबंदी लगा दी थी। राजस्थान के नोतारा भोपट गांव में 2015 में खाप पंचायत ने एक महिला को उस पुरुष के साथ रहने का फरमान सुनाया था जिसकी पत्नी उक्त महिला के पति के साथ भाग गयी थी। इस प्रकार खाप पंचायतें कानून के राज की जगह जंगल का राज चलाने लगीं तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है।
अन्तरजातीय विवाहों का मामला सबसे ज्यादा खाप पंचायतों में चर्चित हुआ है। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही खाप पंचायतों का ज्यादा दबदबा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बालिगों की शादी पर खाप पंचायतें सवाल नहीं उठाएंगी। अन्तर जातीय विवाह करने वाले बालिग जोड़ों पर कोई खाप पंचायत, समाज या अभिभावक भी सवाल नहीं खड़े कर सकते क्योंकि यह बालिगों का संवैधानिक अधिकार है। आनर किलिंग के मामले में 2010 में दायर याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों से जवाब मांगा था ताकि परिवार की इज्जत की खातिर ऐसे दम्पति की हत्या और महिला या पुरुष को परेशान करने से रोकने के बारे में कोई आदेश देने से पहले उनके विचार भी समझे जा सकें। खाप पंचायतों ने अदालत को अपना पक्ष नहीं बताया, तब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति एएम खान बिलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने कड़ा एतराज जताते हुए कहा कि इस मामले में सरकार ने कोई सुझाव नहीं दिया है। अदालत ने अन्तरा जातीय व सगोत्र विवाह के मामले में परिवार की इज्जत के नाम पर दम्पत्तियों की हत्या और उन्हें परेशान करने से रोकने के लिए उपाय करने की अपेक्षा केन्द्र सरकार से की है और यह भी कहा कि सरकार इस पर कोई कानून नहीं बनाती तो सुप्रीम कोर्ट को आगे आना होगा।
खाप पंचायतों के बारे में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि उनका गठन कब हुआ क्योंकि हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी यह उल्लेख मिलता है कि देवताओं पर जब असुर, दैत्य आदि हमला करते थे तब वे इकट्ठे होकर विचार-विमर्श करते थे। समस्याओं पर मिल जुलकर फैसला करना ही पंचायतों के जन्म का कारण बना है। आदिम समाज ने भी इसकी जरूरत महसूस की होगी जो कालांतर में विकसित होता रहा है। गांव-गांव में पंचायतें हुआ करती थीं लेकिन उनका कोई विधिवत स्वरूप नहीं था। गांव के संभ्रांत लोग मिल बैठकर समस्या को सुलझाते थे। उत्तर भारत में इन पंचायतों ने एक बड़ा स्वरूप अपना लिया। पहले इनको रियायती पंचायत कहा जाता था लेकिन बाद में इन्हें खाप पंचायत कहा जाने लगा। रिवायती पंचायतों को भी कोई संवैधानिक
अधिकार नहीं था और खाप पंचायतों को भी नहीं है लेकिन जन विश्वास की ताकत इनके बाद पुलिस थानों और अदालतों में जो खाप पंचायतें हैं वे एक गोत्र या बिरादरी के अंदर सिमट गयी हैं। इसलिए अपने गोत्र और बिरादरी के फैसले करती है। खाप पंचायतों में प्रभाव वाले लोगों का दबदबा रहता है और गोत्र या बिरादरी की पुरानी परम्पराओं का कड़ाई से पालन किया जाता है। यह केवल पुरुषों की ही पंचायत होती है इसलिए पुरुष प्रधान मानसिकता ज्यादा रहती है। युवा वर्ग को भी खाप पंचायत में बोलने का अधिकार नहीं होता। इस प्रकार इन पंचायतों का स्वरूप तानाशाही हो गया है और इनके फैसलों ने समाज में दहशत पैदा कर दी है। बेहतर होगा कि पंचायतों का साफ-सुथरा स्वरूप फिर से स्थापित किया जाए और समाज में परिवर्तन को ये पंचायतें स्वीकार भी कर लें। इनके चलते निश्चित रूप से सीधे-सादे लोगों का कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं लगाने पड़ते लेकिन अमानवीयता को यदि ये पंचायतें नहीं छोड़ पाती हैं तो सरकार को इन पर नियंत्रण लगाना ही पड़ेगा।

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