हज सब्सिडी का फायेदेमंद इस्तेमाल

हज सब्सिडी का फायेदेमंद इस्तेमाल


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए देश के हजयात्रियों को सरकार की तरफ से दी जाने वाली रियायत को बंद कर दिया है। इस पर धार्मिक सियासत करने वाले शोरगुल कर सकते हैं लेकिन धर्मनिरपेक्ष देश में इस तरह की रियायत का कोई औंचित्य भी नहीं था हमारे देश में विभिन्न धर्म-सम्प्रदाय के लोग हिलमिल कर रहते हैं और अपने-अपने धर्म स्थलों की यात्रा करना पुण्य का काम मानते हैं। हिन्दुओं के मामले में यह बात गर्व के साथ कही जा सकती है कि वे अपने धर्म स्थलों की तरह ही दूसरे धर्म-सम्प्रदाय के धर्म स्थलों पर भी जाते हैं जैसे अजमेर शरीफ में कितने ही हिन्दू जाकर सिर झुकाते है। इसी प्रकार चर्च की प्रार्थना में भी जाने से कोई हिचक नहीं होती है। सभी धर्म सम्प्रदाय के अलग-अलग धार्मिक स्थल है और यह सवाल भी उठने लगा था कि उन्हें अपने धर्मस्थल पर जाने में सरकार कोई सब्सिडी क्यों नहीं देती है। इसीलिए 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने हज यात्रा पर जाने वालों को दी जाने वाली रियायत को खत्म करने का निर्देश दिया था। उस समय देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी। इसके दो साल बाद भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार बनी और उसने भी तीन साल बाद यह फैसला किया है। हज यात्रियों को लगभग 700 करोड़ की सब्सिडी दी जा रही थी जिसका उपयोग अब महिला एवं बाल कल्याण के लिए किया जाएगा।
नरेन्द्र मोदी की सरकार ने पिछले साल अर्थात अक्टूबर 2017 को नयी हज नीति बनायी थी। इसमें हज सब्सिडी खत्म करने समेत 16 सिफारिशें की गयी थीं। इस नीति में जो प्रस्ताव तैयार किया गया था, उसमें यह बात भी शामिल थी कि सब्सिडी से बचे पैसे मुस्लिम बेटियेां के कल्याण और सशक्तिकरण पर खर्च किये जाएंगे। अभी पिछले दिनों ही मोदी की सरकार ने तीन तलाक पर कानून का विधेयक तैयार किया जो लोक सभा में पारित भी हो गया के निर्देश पर बन रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को संविधान के विरूद्ध बता कर केन्द्र सरकार को निर्देश दिया था कि सरकार इस पर कानून बनाए। मोदी की सरकार ने काफी होमवर्क करने के बाद कानून का मसौदा तैयार किया जिसमें प्रमुख बात यह थी कि तीन तलाक किसी भी तरह से कहने पर तीन साल की कैद होगी और महिला तथा उसके बच्चों को भरण-पोषण के लिए पति को हर्जाना देना होगा। इस विधेयक को विपक्षी दलों ने राज्य सभा में पारित नहीं होने दिया क्योंकि उनका मुख्य तर्क था कि पति को जब जेल हो जाएगी तो पीड़ित महिला और उसके बच्चों को गुजारा भत्ता कैसे सरकार दिलवाएगी। यह तर्क अपनी जगह मजबूत भी था। अब लगता है सरकार ने उसका रास्ता हज सब्सिडी के माध्यम से खोज लिया है। सरकार को हज सब्सिडी में लगभग 700 करोड़ रूपये देने पड़ रहे थे। इस धनराशि का प्रारंभिक कोष बना कर तीन तलाक से पीड़ित महिला और उसके बच्चों को तत्काल राहत दिलायी जा सकती है। इसके बाद उस महिला के पति से हर्जाने के रूप में जो रकम वसूली जाए, उससे महिला को गुजारा भत्ता मिलता रहे।
इस बात का कयास मैं लगा रहा हूं लेकिन सरकार ने अभी कोई ऐसी बात नहीं कही है। सरकार के अक्टूबर 2017 की हजनीति के ड्राफ्ट में सिर्फ इतनी बात कही गयी है कि हज सब्सिडी से बचे पैसे मुस्लिम बेटियों के कल्याण और सशक्तिकरण पर खर्च किये जाएंगे। सरकार इसका क्या रूप तय करती है, यह भी शीघ्र पता चल जाएगा। हज यात्रा पर सुप्रीम कोर्ट ने जब रोक लगाने की बात कही थी, उस समय बड़ी रकम सब्सिडी के रूप में दी जाती थी। सन् 2012 में 836 करोड़ रूपये हज सब्सिडी के रूप में दिये गये थे। इसके बाद यह राशि कम होती चली गयी। सन् 2013 में 680 करोड़, 2014 में 577 करोड़, 2015 में 529 करोड़, 2016 में 405 करोड़ और 2017 में 250 करोड़ रूपये ही हज सब्सिडी रखी गयी। हज सब्सिडी का मतलब है कि केन्द्रीय हज कमेटी मुंबई राज्यों को हज यात्रियों का कोटा देती है। कमेटी के माध्यम से जाने वालों को ही सब्सिडी मिलती है। यह सब्सिडी विमान किराये के तौर पर होती है जो कमेटी के माध्यम से उड्डयन मंत्रालय एयर इंडिया को सीधे प्रदान करता हैं। हज यात्रा में भी महिलाओं के साथ ज्यादती को मोदी की सरकार ने नोटिस में लिया था। मोदी सरकार ने इसे भी महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधा माना और कानून बना दिया कि एक निश्चित उम्र की महिलाएं अकेले या महिलाओं के ग्रुप में हज यात्रा कर सकती हैं।
केन्द्रीय अल्प संख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने गत 16 जनवरी को बताया कि केन्द्र सरकार ने हज यात्रियों को दी जाने वाली सब्सिडी समाप्त कर दी है और जो पैसा बचेगा, उसे लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा पर खर्च किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस साल सबसे ज्यादा लोग हज यात्रा पर जा रहे हैं। आजादी के बाद यह सबसे बड़ी संख्या होगी। इस साल पौने दो लाख हजयात्री जा रहे हैं। श्री नकवी कहते हैं कि वह अल्प संख्यकों के तुष्टीकरण के बिना ही उनका सशक्तिकरण कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में कहा था कि यह अल्पसंख्यकों को लालच देने जैसा हैं। इसलिए सरकार को इसे धीरे-धीरे खत्म कर देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने तो इसके लिए भी 2022 तक का समय दिया था लेकिन मोदी की सरकार ने 2018 में ही इस कार्य को सम्पन्न कर दिया। भाजपा सरकार की नयी नीति के तहत ही इस साल मेहरम के बिना अर्थात बिना किसी पुरूष अभिभावक के 1300 महिलाएं हज यात्रा पर जा रही हैं। इस साल से पानी के जहाज के माध्यम से भी हज यात्रा शुरू हो रही है।
सरकार के इस कदम पर आलोचना की बहुत गुंजाइश नहीं है। इसीलिए कांग्रेस के नेता गुलामनवी आजाद कहते हैं कि हमारी पार्टी को हज यात्रा सब्सिडी खत्म करने पर कोई आपत्ति नहीं है। वह इतना जरूर कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अल्ताफ आलम की खंडपीठ ने 2022 तक हज सब्सिडी खत्म करने को कहा था लेकिन सरकार ने चार साल पहले ही खत्म कर दिया है। उन्होंने इस प्रकार मीठी - मीठी शिकायत की है। दूसरी तरफ मुस्लिम धर्म गुरू इस पर एक मत नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में लखनऊ के इमाम ईदगाह मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने हज सब्सिडी समाप्त किये जाने के फैसले को एक अच्छी पहल बताया है। उन्होंने कहा कि हमारे मुस्लिम संगठन तो कई वर्षों से हज सब्सिडी समाप्त करने को कह रहे थे। दूसरी तरफ शिया चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास नकवी ने हज सब्सिडी समाप्त करने के निर्णय को गलत बताया है। वह कहते हैं कि इससे गरीब हजयात्रियों पर आर्थिक बोझ पड़ेगा। बहरहाल केन्द्र सरकार का यह फैसला मुस्लिम समाज के भी हित में हैं और हज सब्सिडी का उपयोग मुस्लिम बच्चों और महिलाओं के कल्याण में कर उनका सशक्तिकरण किया जाए।

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