एनेक्सी के सामने सड़क पर बिखरे आलू का संदेश

एनेक्सी के सामने सड़क पर बिखरे आलू का संदेश
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक दिन एनेक्सी के सामने सड़क पर आलू बिखरे पड़े थे। वाहनों के चलने से वे खराब भी हो गये थे। सरकारी कर्मचारी तो तुरंत अपने बचाव का रास्ता खोज लेते हैं और कहने लगे कि यह आलू कोल्ड स्टोरेज से निकाला गया था और खराब आलू है जिसे यहां फेंक दिया गया लेकिन इस तरह की लीपापोती से सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता। कुछ लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई भी हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने अपनी अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक बुलाई और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में मंत्रिसमूह का गठन किया गया है जो आलू किसानों की समस्या का समाधान करेगा। सरकार को सिर्फ आलू किसानों की समस्या का समाधान नहीं करना है बल्कि इसके संदेश को समझना होगा। किसान अपने खेत में गन्ने की फसल को क्यों जला देते हैं? महाराष्ट्र में फल उत्पादक संतरों को सड़क पर फेंक देते है और ओडिशा का किसान कीड़ों से बरबाद हुई इपनी फसल में आग लगाकर जहर पीकर जान दे देता है। इन सभी का संदेश लगभग वही है जो लखनऊ में एनेक्सी के सामने सड़क पर पड़े आलू दे रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार किसानों को लेकर बहुत अच्छी बात कही थी। मोदी ने कहा कि किसान इसलिए अन्न नहीं पैदा करता है कि उससे उसका पेट भर सके बल्कि इसलिए अनाज पैदा करता है ताकि कोई भी भूखा पेट न रहे। इसी लिए उसे ग्रामदेवता कहा जाता है। किसान के महत्व को इससे निश्चित रूप से समझा जा सकता है लेकिन किसान को अपने परिवार को रोटी देने के साथ अन्य जरूरतें भी पूरी करनी हैं तो उसे अपने अनाज दाले, सब्जी और फल के उत्पादन से आर्थिक लाभ भी मिलना चाहिए। फसल का उचित मूल्य न मिलने से किसानों को निराशा होती है और यही निराशा कभी-कभी आक्रोश में बदल जाती है। उत्तर प्रदेश में आलू की फसल प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होती है और मजे की बात यह कि शहरों और कस्बों में इसका फुटकर मूल्य अच्छा-खासा रहता है। फुटकर में आलू दस रूपये किलो मिलता है लेकिन किसानों को बहुत सस्ते में बेचना पड़ता है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, कन्नौज, फर्रूखाबाद मैनपुरी, एटा, इटावा, हरदोई, रायबरेली आदि जिले बड़े पैमाने पर आलू पैदा करते हैं और एक अनुमान के अनुसार देश के कुल आलू का लगभग 20 फीसद उत्पादन यहीं पर होता है। इन जिलों में पहले नकदी फसलो में गन्ना प्रमुख था लेकिन अब 80 फीसद किसान आलू पैदा करने लगे हैं। आलू की फसल के बाद गेंहूं बो कर किसान भरपूर कमायी कर लेते हैं।
प्रदेश में पिछले साल 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी थी, उसी समय आलू की फसल तैयार हुई और सरकार ने उस पर ध्यान भी दिया। किसानों से पांच रूपये किलो की दर से आलू खरीदा गया। आलू के दाम दो-तीन रूपये किलो हो गये थे और किसानों ने 30 फीसद आलू कोल्ड स्टोरेज से उठाया ही नहीं। कोल्ड स्टोरेज के मालिकों का कहना है कि यहां से देश के बड़े शहरों में आलू भेजा जाता है। किसानों से सस्ता आलू लेकर उसे महंगे दामों पर बेचा जाता है। पिछली दो फसलों से आलू किसानों के साथ यही हो रहा है जबकि कस्बों और शहरों में आलू 10 रूपये किलो से कम ही नहीं होता। किसानों को इससे लाभ कैसे मिले, इसपर विचार होना चाहिए। आलू के उत्पादन में किसानों की लागत लगभग पांच रूपये से ज्यादा प्रतिकिलो पड़ जाती है। कभी फसल खराब हुई तो यह लागत और बढ़ जाती है। गांवों के छोटे काश्तकार कम आलू पैदा करते हैं तो आसपास की बाजार में ही बेंचकर अपने खाने के लिए रखलेते हैं लेकिन व्यावसायिक दृष्टि से उत्पादन करने वाले आलू को भंडारणगृह में रखना चाहते है। आलू की खुदाई, पैकिंग और कोल्डस्टोर तक ले जाने में काफी लागत आती है। इसके बाद कोल्ड स्टोर में आलू रखने का किराया देना होता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आलू किसानों की समस्या को समझा है और मंत्रि समूह का गठन किया है जो 25 जनवरी तक अपने सुझाव देगा इस समूह में कृषिमंत्री सूर्य प्रतापशाही, वनमंत्री दारा सिंह चैहान और वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल सदस्य बनाये गये हैं। बेहतर होता इसी समूह में किसानों को भी शामिल किया जाता जो स्वयं इस समस्या के भुक्तभोगी हैं। आलू किसानों को पिछली दो फसलों में निराशा इसलिए मिली है क्योंकि भाजपा ने सरकार बनाते समय किसानों की समस्या को हल करने का वादा अपने संकल्प पत्र में किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने की बात कही है और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने भी इस पर अमल करना शुरू कर दिया। खेतों की मिट्टी की जांच और कम लागत में फसल उत्पादन का पाठ किसान पाठशालाओं में पढ़ाया जा रहा है। इसके साथ ही किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने को भी प्राथमिकता देनी पड़ेगी।

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