अवसर का सदुपयोग करना नरेन्द्र मोदी से बेहतर कौन कर सकता है

अवसर का सदुपयोग करना नरेन्द्र मोदी से बेहतर कौन कर सकता है

अवसर का सदुपयोग करना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बेहतर कौन कर सकता है। अपने राजनीति विरोधी को किस दांव से अखाड़े में पटकनी दी जा सकती है, यह उन्होंने गुजरात चुनाव के समय साबित कर दिया था। मणि शंकर अय्यर की टिप्पणी को जिस मासूमियत से उन्होंने जनसभा में पेश किया, उससे गुजरात की जनता को महसूस करा दिया कि यह सिर्फ मोदी का अपमान नहीं बल्कि गुजरातियों का अपमान है। इसी तरह नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों पर जनता को इस तरह समझाया कि वह अपना दर्द कम से कम वोट देने के समय तो भूल ही गयी।
अब मोदी ने प्रवासी सांसदों का सम्मेलन ऐसे अवसर पर कराया जिसका सार्वभौमिक महत्व है। राष्ट्रपति महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के लोगों की लड़ाई लड़ने गये थे और पहली बार सत्य-अहिंसा के हथियार को आजमाया था। उनकी भारत वापसी का यह दिन था और विदेशों से आये प्रवासी सांसद गांधी जी की उस यात्रा को स्मरण करते रहे। इसी तरह अमेरिका के शिकागों में विश्व धर्म संसद को संबोधित करके भारत ही नहीं विश्व में सिरमौर बने स्वामी विवेकानंद की जयंती भी मनाई जा रही हैं और प्रवासी सांसदों को स्वामी विवेकानंद की भी याद दिलायी गयी। भारत मूल के अपनत्व के साथ भारतीय महापुरूषों का अपनत्व भी प्रवासी सांसदों को जोड़ने में मददगार रहा है। मोदी ने ऐसे अवसर का इस सम्मेलन के लिए चयन किया था।
अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद-भारत ने प्रवासी सांसदों का सम्मेलन आयोजित किया था। इस सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने निवेश के मामले को उठाया। देश में बेरोजगारी की समस्या का एक मात्र निदान निवेश ही है। पिछले महीनों में गुजरात विधान सभा चुनाव में यह मामला कांग्रेस ने उठाया था। बेरोजगारी की समस्या है, इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन इस पर केन्द्र और राज्य सरकारें काम भी कर रही हैं। विदेशों से निवेश हो ने पर रोजगार के अवसर और बढ़ेंगे। इसी संदर्भ में मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था का भी जिक्र किया। श्री मोदी ने कहा कि पिछले तीन-चार साल के दौरान समूचे विश्व का मानना है कि भारत बदल रहा है। यह कहकर मोदी ने केन्द्र की भाजपा सरकार को श्रेय लेने की बात भी कर दी। भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में 2014 में केन्द्र की सत्ता संभाली थी। मोदी ने प्रवासी सांसदों के सम्मेलन में कहा कि आर्थिक और सामाजिक बदलावों के अलावा वैचारिक स्तर पर भी बदलाव दिख रहा है। अपनी सरकार की तरफ से आर्थिक सुधारों का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि भारत में 2016-17 में 60 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ। यह बताने का तात्पर्य यही था कि भारत में भाजपा सरकार के दौरान इस तरह का माहौल बनाया गया है जिससे विदेशी निवेशक अपना पैसा लगाने में किसी प्रकार की हिचक नहीं महसूस कर रहे हैं। सरकार ने इस प्रकार का माहौल बना दिया है जिससे किसी को पूंजी डूबने का भय नहीं है। इस माहौल को देख कर प्रवासी सांसद भी अपने -अपने देश से भारत में निवेश करने का मन बनाएंगे।
मोदी की बात का समर्थन करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने भी प्रवासी सांसदों को प्रेरित किया। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत वंशी सांसद अपने-अपने देशों की प्राथमिकताओं को भारत के विकास से जोड़ने में भूमिका निभाएं। उन्होंने इन सांसदों के भावनात्मक रिश्ते को भी उभारने का प्रयास किया। राष्ट्रपति ने कहा कि सांसद होकर अपने देशों के सार्वजनिक जीवन में योगदान करने वाले भारतवंशियों को भारत की बेहतर समझ है। इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आप लोग अपने देशों की प्राथमिकताओं को भारत के विकास से जोड़े क्योंकि भारत आज विश्व की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है। भारत में निवेश, व्यापार एवं विकास की अपार संभावनाएं हैं। इन बातों का प्रवासी सांसदों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
मोदी ने तो इन सांसदों का संबोधन ही वेलकम टु इंडिया, वेलकम टु होम से किया। उन्होंने कहा कि आपकी पुरानी पीढ़ियां, पुरानी यादें भारत के अलग अलग हिस्से से जुड़ी है। आपके पूर्वजों में से कुछ लोग व्यापार के लिए, कुछ लोग शिक्षा के लिए गये थे। वे पूर्वज सशरीर भले ही चले गये लेकिन अपने मन और आत्मा का एक अंश इसी मिट्टी पर छोड़ गये। इसलिए आज जब आप भारत के किसी एयरपोर्ट पर उतरते हैं तो इस धरती पर आत्मा का वही अंश प्रफुल्लित होने लगता होगा।
इस तरह की भावनात्मक बातें मोदी के अलावा और कौन कर सकता है? इस तरह की बातें सुनकर पत्थर दिल इंसान भी पिघल जाता है। विदेशों में कई पीढ़ियां गुजार चुके लोगों का मन अपनी जन्म भूमि को देखने के लिए आतुर भी हो गया। सेशल्स में नेता विपक्ष वालेल राम कलावन बिहार में अपने पैतृक गांव पहुंच ही गये। सेशेल्स के सांसद राम कलावन के पूर्वज लगभग 130 वर्ष पहले भारत छोड़ कर चले गये थे। बिहार से कितने ही लोग मारीशस में मजदूरी करने गये थे और आज उनकी पीढ़ियां व्यापार कर रही है, सरकारी ओहदों पर है और राजनीति में भी सक्रिय हैं। राम कलावन 130 वर्षों के बाद 10 जनवरी को अपने पैतृक गांव परसौनी पहुंचे। राम कलावन का जन्म 1961 में सेशेल्स में हुआ। दिल्ली के सप्रूहाउस में इंडियन काउंसिल आफ वल्र्ड अफेयर्स की ओर से आयोजित परिचर्चा में उन्होंने अपने पूर्वजों की सेशस तक की यात्रा का भावभीना वर्णन किया था। उन्होंने कहा कि अपनी जड़ों तक पहुंचने का यह मिशन बेहद भावुक करने वाला है। इस भावुकता को बढ़ाने में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण का योगदान भी भुलाया नहीं जा सकता।
इस सम्मेलन में दुनिया भर के 24 देशों के 134 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इनमें फ्रांस, फिजी, स्विटजरलैण्ड, मारीशस जैसे देशों के प्रतिनिधि विशेष रूप से भारत भूमि से जुड़े हैं। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौअने की यह 102 वीं वर्षगांठ थी। अफ्रीकी देशों का भारत से विशेष लगाव उसी समय से शुरू हुआ था। मोदी ने इस प्रकार दुनिया भर से घरबैठे नाता जोड़ा है। हालांकि प्रधान मंत्री बनने के बाद मोदी ने उन देशों की भी यात्रा की है जहां 60-70 साल से भारत का कोई प्रधानमंत्री नहीं गया था। इसके लिए इजरायल का उल्लेख किया जा सकता है। मोदी पूरी दुनिया को भारत का मित्र और सहयोगी बनाना चाहते हैं। इसके साथ ही जो देश भारत की प्रगति से चिढ़ते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से बाधा डालना चाहते हैं, उन्हें विश्व समुदाय से अलग-थलग करने में वे सफल भी हो गये हैं। पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहायक अमेरिका भी अब उसे धोखेबाज बताने लगा है। इसी तरह का देश चीन है। चीन के बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रवासी सांसदों के सम्मेलन में कहा कि भारत की नजर किसी देश की जमीन पर नहीं है और न हम किसी देश के संसाधनों का दोहन करते हैं। मोदी का यह इशारा दक्षिण एशिया के कुछ देशों की तरफ था जहां चीन अपना अर्थिक प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है इसके लिए चीन उन देशों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करा रहा है। मोदी ने उन्हें सचेत किया है कि वे चीन के इरादों से सावधान रहें। ऐसे देशों में हमारा सबसे निकटवर्ती पड़ोसी नेपाल भी शामिल है। प्रवासी सांसदों के सम्मेलन में मोदी ने वैदेशिक कूटनीति का भी बेहतर प्रयोग किया है।

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