बैतुल मोक़द्दस मुद्दे पर हिंदुस्तान ने की फ़िलिस्तीन की हिमायत

बैतुल मोक़द्दस मुद्दे पर हिंदुस्तान ने की फ़िलिस्तीन की हिमायत

बैतुल मोक़द्दस को इसराईल की दारुल हकूमत एलान करने के अमरीकी हकूमत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अक़वामे मुत्तहिदा की बैनुल अक़वामी कान्फ़्रेंस में पेश किए गयी तजवीज़ के हिमायत में वोट देने वालों में हिंदुस्तान भी शामिल है अमरीका और इस्राईल से अपने गहरे तालुकात के बावजूद इस मुद्दे पर हिंदुस्तान ने फ़िलिस्तीन की हिमायत की और ख़ुद को आलमी बिरादरी के साथ रखा अक़वामे मुत्तहिदा की तजवीज़ की हिमायत में 128 वोट पड़े जबकि 9 मुल्कों ने तजवीज़ की मुखालफत की और कुछ मुल्कों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
बैतुल मोक़द्दस मस्जिदे अक्सा की तारीख़ी हैसियत, शरई अहमियत :
बैतुल मोक़द्दस पर यहूदियों के ग़ासिबाना क़ब्ज़े ने मुसलमानों को सालहा साल से बेचैन व मुज़्तरब कर रखा था कि अब मुसलमानों के क़िबलए अव़्वल मस्जिदे अक्सा के ख़िलाफ़ उनकी रेशा दवानियों और साज़िशों ने सारी दुनिया के मुसलमानों को तशवीश में मुब्तेला कर दिया है, यहूदी चाहते हैं कि मस्जिदे अक्सा को शहीद करके इसकी जगह हैकल सुलेमानी तामीर किया जाय, इसराईल ने 7 जून, 1967 को बैतुल मोक़द्दस के मशरिक़ी हिस्से पर क़ब्ज़ा किया था, जहां मुसलमानों की अज़ीम मस्जिदे अक़्सा वाक़े है , अब इसराईल हुकूमत चाहती है कि बैतुल मोक़द्दस के जिसे यहूदी यरूशलम के क़दीम नाम से पुकारते हैं, मग़रिबी और मशरिक़ी हिस्सों को मिला कर एक मुत्तहेदा शहर तामीर किया जाय जिसे इसराईल की राजधानी बना दिया जाय, फ़िलहाल तेल अबीब इसराईल की राजधानी है, अपने इस मंसूबे को अमली जामा पहनाने के लिए इसराईल हुकूमत बैतुल मोक़द्दस में बैनुल अक़वामी पाबंदियों के बावजूद नई नई कॉलोनियां तामीर कर रही है और दूर दराज़ इलाक़ों से यहूदियों को लाकर यहां बसाया जा रहा है ताकि उनकी तादाद क़दीम फ़लस्तीनी बाशिंदों की तादाद के मुक़ाबले में ज़्यादा हो जाए, इसराईली मंसूबे में ये भी शामिल है कि मस्जिदे अक्सा को जो मुसलमानों का क़िबलए अव़्वल भी है, और जिसको सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मेराज की रात यहां तशरीफ़ लाए, आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इस मस्जिद में तहय्युल मस्जिद अदा फ़रमाई, और तमाम अंबिया किराम अलैहिमुस्सलाम की इमामत फ़रमाई जो पहले से वहां मौजूद थे और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी के मुंतज़िर थे, यहूद चाहते हैं कि मुसलमानों की अक़ीदतों और मोहब्बतों का ये मर्कज़ रूए ज़मीन से नीस्त व नाबूद कर दिया जाय, इस मंसूबे को बरुये कार लाने के लिए यहूदी 1967 से ही तरह तरह की साज़िशें करने में मसरूफ़ हैं, कभी आसारे क़दीमा की तहक़ीक़ और जुस्तजू के नाम पर मस्जिदे अक्सा की दीवारों के नीचे खुदाई की जाती है और कभी आसारे क़दीमा की तहक़ीक़ और जुस्तजू के नाम पर मस्जिदे अक्सा की दीवारों के नीचे खुदाई की जाती है और कभी इसके सहन में, मक़सद इसके इलावा कुछ नहीं कि किसी तरह मस्जिदे अक्सा की बुनियादें कमज़ोर पड़ जाएं, और ये अज़ीम ख़ुद बख़ुद ज़मीन बोस हो जाए, वक़्फ़े वक़्फ़े से खुदाई का ये सिलसिला लगातार जारी है, यहूदी कहते हैं कि मस्जिदे अक्सा हैकल सुलेमानी को मिस्मार करके तामीर किया गया है, खुदाई का ये सिलसिला इसी हैकल की तलाश में शुरू किया गया है।
1968 में तो यहूदी अहलेकारों ने ठीक मस्जिदे अक्सा के नीचे एक लंबी और गहरी सुरंग भी बना ली थी और अपनी एक इबादतगाह भी तामीर कर ली थी, सारी दुनिया यहूदियों की इस हरकत से नालां है, इस्लामी मुल्कों का सख़्त रद्दे अमल तो फ़ित्री है, अक़वामे मुत्तहिदा के ज़ेली इदारे यूनेस्को ने भी अपनी अठारवीं बैनुल अक़वामी कान्फ़्रेंस में तजवीज़ 3/327 के ज़रिए इसराईल की भरपूर मज़म्मत करते हुए ये मुतालिबा किया था कि वो खुदाई के इस सिलसिले को फ़ौरन मौक़ूफ़ कर दे, उसकी तख़रीबी सरगर्मियों से हज़ारों साल पुराने शहर बैतुल मोक़द्दस की सक़ाफ़्ती और तारीखी तशख़्ख़ुस को नाक़ाबिले तलाफ़ी नुक़्सान पहुंच सकता है, यहूदियों को मस्जिदे अक्सा से किस क़दर नफ़रत है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहूदियों ने इसमें आग लगाने की नापाक कोशिश भी की और इस कोशिश में वो बदबख़्त जुज़वी तौर पर कामयाब भी रहे, मस्जिदे अक्सा में आग लगाने का वाक़ेआ इक्कीस अगस्त 1969 को पेश आया, इससे एक दिन क़ब्ल क़ाबिज़ फ़ौजों ने हरम सालिस की पाइप लाइनें काट दीं और मुसलमानों को हरम की हदूद के क़रीब आने से रोक दिया, इसी दौरान एक शिद्दत पसंद यहूदी ने मस्जिदे अक्सा में आग लगा दी, देखते ही देखते आग के शोले भड़क उठे और इसकी लपटों ने मस्जिद के अंदरूनी दरो दीवार को अपनी लपेट में ले लिया, आग मस्जिद के जुनूबी मुसक़्क़फ़ हिस्से में पूरी तरह फैल चुकी थी, मुजाहिदे आज़म सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी का बुलंद क़ामत मिम्बर भी आग की लपेट में आ गया था, अचानक मुसलमानों का एक ज़बरदस्त रेला इसराईली फ़ौजों की मज़ाहेमत के बावजूद मस्जिद में दाख़िल हुआ और उन्होंने आग पर क़ाबू पा लिया, आग के इस अंदोहनाक वाक़ए के बाद इसराईल ने दावा किया था कि ये आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी, हालाँकि माहिरीन ने मुआयने के बाद कहा था कि आग हादिसाती नहीं थी बल्कि जान बूझ कर लगाई गई थी, बाद में एक ऑस्ट्रेलियन यहूदी को गिरफ़्तार किया गया, जिसे बाद में ये कह कर रिहा कर दिया गया कि उसने पागलपन में ये हरकत की थी, 1969 में अक़वामे मुत्तहिदा की सलामती कौंसल ने अक्सरीयत के साथ मज़म्मती क़रारदाद मंज़ूर की, लेकिन इसराईल के कानों पर जूं तक ना रेंगी, अमेरीका और बर्तानिया की ये नाजायज़ औलाद आज तक इसी हटधर्मी का मुज़ाहरा कर रही है।
मस्जिदे अक्सा की ताज़ा सूरते हाल ये है कि इसराईल की इंतेहापसंद हुक्मराँ जमात लिकुद पार्टी की अपील पर यहूदी जत्थों की शक्ल में मस्जिदे अक्सा में दाख़िल हो रहे हैं और मस्जिदे अक्सा को मिस्मार कर के इसकी जगह हैकल सुलेमानी की तामीर के अपने देरीना मुतालिबे के हक़ में नारेबाज़ी भी कर रहे हैं, हरम मस्जिद के अंदर गै़रक़ानूनी तौर पर दाख़िल होने वालों में इसराईली पार्लियमेंट के सात मेम्बरान भी हैं, इस तरह की सरगर्मियों से मस्जिदे अक्सा के अतराफ़ में हालात इंतेहाई कशीदा हैं, नमाज़ियों को मस्जिदे अक्सा में दाख़िल नहीं होने दिया जा रहा है, पूरे शहर में इसराईल पुलिस और सरहदी गार्ड के मुसल्लह दस्ते गश्त कर रहे हैं, हरम शरीफ़ के तमाम दाख़िली और ख़ारिजी रास्तों पर भी सिक्योरिटी के अफ़राद मौजूद हैं, यहूदियों की दीदा दिलेरी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सहन मस्जिद में सैहोनी पर्चम लहरा दिया है, जो उनके नापाक अज़ाइम की तर्जुमानी करता है, क़िबलए अव़्वल मस्जिदे अक्सा के ख़तीब और अल-क़दस की सुप्रीम इस्लामिक कौंसिल के सरबराह शेख़ अक्रमा सबरी ने इसराईली फ़ौज की जानिब से मस्जिदे अक्सा के सहन में सैहोनी पर्चम लहर आए जाने पर पर शदीद तन्क़ीद करते हुए कहा है कि ऐसा पहली मर्तबा हुआ है, ये इंतेहाई ख़तरनाक इक़दाम है, ख़तीबे मोहतरम ने इस मुक़द्दस मस्जिद पर इसराईली फ़ौज और आबादकारों के पे दरपे जारिहाना हमलों को इस मस्जिद के वजूद के लिए ख़तरे की घंटी क़रार दिया, उन्होंने ज़ोर देकर कहाकि मस्जिदे अक्सा मुसलमानों की शान है इसकी हिफ़ाज़त तमाम मुसलमानों की ज़िम्मेदारी है, इसराईल मस्जिदे अक्सा के एतराफ़ में नक़ली यहूदी क़ब्रें बना कर अपना हक़ साबित करना चाहता है, क़िबलए अव़्वल के इर्दगिर्द के माहौल को यहूदी सक़ाफत का रंग देने के पसे पुश्त मुसलमानों की इस इबादतगाह पर क़ब्ज़ा करना इसराईल की नई साज़िश है, चुनांचे अल-क़दस के बलदिया ने वज़ारते सैय्याहत के साथ मिल कर दस लाख डालर की लागत से मस्जिदे अक्सा के जुनूब में वाक़े सिलोन कॉलोनी में यहूदी आबादकारी का एक नया मंसूबा तैय्यार किया है, अगर इन तमाम मंसूबों पर अमल इसी तरह होता रहा, और मुस्लिम दुनिया ऐसे ही ख़ामोश तमाशाई बनी रही तो वो दिन दूर नहीं जब इस सरज़मीन पर सिर्फ दो हरम बाक़ी रह जाऐंगे और तीसरा हरम तारीख़ का हिस्सा बन कर दिलों में कसक पैदा करता रहेगा।
आम तौर पर ये समझा जाता है कि बैतुल मोक़द्दस और मस्जिदे अक्सा दोनों एक ही इमारत के दो नाम हैं, ये ग़लतफ़हमी इन तस्वीरों के ज़रीये फैली है जिनमें सुनहरा कब्ता अलसोख़रः नज़र आता है और जिसके बराबर में लिखा रहता है जिसमें मस्जिदे अक्सा वाक़े है, और जिसके सहन में दिलकश क़ब्ता अलसोख़रः मौजूद है, इसके इलावा भी वहां मस्जिदें और कब्बे हैं, अंबिया किराम की क़ब्रें हैं, और दूसरी यादगारें हैं, ये दुनिया का वाहिद शहर है जिसे दुनिया के तीन बड़े मज़हब के लोग अपनी अपनी अक़ीदत का मर्कज़ बनाए हुए हैं, मुस्लमान इस शहर से इसलिए अक़ीदत व मोहब्बत रखते हैं कि यहां इनका क़िबलए अव़्वल और हरमे सालिस मस्जिदे अक्सा मौजूद है, इस मस्जिद की अहमियत इसलिए भी है कि मेराज की रात सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम इस मस्जिद में तशरीफ़ लाए, यहां अंबिया किराम की इमामत फ़रमाई और यहीं से मेराज के सफ़र पर तशरीफ़ ले गए, ईसाई इस शहर से इसलिए अक़ीदत रखते हैं कि यहां से तक़रीबन पंद्रह किलो मीटर दूर वाक़े तारीख़ी शहर बैतलहम में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश हुई, हर वक़्त दुनिया भर से ईसाईयों के क़ाफ़िले यहां आते जाते रहते हैं, कहते हैं कि इस शहर में खजूर का वो दरख़्त आज तक मौजूद है जिस की खजूरें हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम ने वज़ा हमल से पहले या बाद में खाईं थीं, इस दरख़्त का ज़िक्र क़ुराने करीम में भी है, यहूदी इस शहर को इसलिए मुक़द्दस समझते हैं कि ये शहर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम का दारुल -ख़ेलाफा रहा है, और बक़ौल उनके यहां इनका तामीर करदा हैकल मौजूद था जिसको गिरा कर मुसलमानों ने मस्जिदे अक्सा तामीर की है।
बैतुल मोक़द्दस हज़ारों साल क़दीम शहर है, बहुत से अरब क़बाइल यहां आकर आबाद हुए, जैसे मामूरी, आरामी, कनआनी। क़दीम ज़माने में इस शहर को यबूस भी कहा जाता था, जो कनआन के क़दीम क़बाइल में से एक क़िबला का नाम है, अर्ज़े फ़लस्तीन को अर्ज़े कनआन भी कहा जाता है, क्योंकि यहां कनआनी नस्ल के बहुत से क़बीले भी रह चुके हैं, कुछ अर्से के बाद उसे यूरसालीम कहा जाने लगा जो अब यरूशलम रह चुके हैं, कुछ अर्से के बाद उसे यरूशलम हो गया है, और यहूदी उसे यरूशलम ही कहते हैं ,जिस वक़्त अफ़्रीक़ी और रोमन नस्ल के लोग यहां आबाद हुए उस वक़्त इस शहर का नाम ऐलिया था, हज़रत उमर इब्न अलख़त्ताब रज़ियल्लाहू अन्हा के अह्दे ख़िलाफ़त में ये इलाक़ा मुसलमानों के ज़ेर नगीं आया तो इसका नाम तब्दील करके बैतुल मोक़द्दस रख दिया गया जिसके मानी हैं पाक घर, मुबारक व मोक़द्दस सरज़मीन (मोअज्जम अलबलदानः 661/5 ) ये 16 हिजरी की बात है, लगभग पाँच सौ साल तक मुसलसल ये शहर मुसलमानों के पास रहा, अब्बासी हुक्मराँ कमज़ोर पड़े तो सलीबियों ने 492 हिज्री में इसपर क़ब्ज़ा कर लिया, लगभग नव्वे साल तक ये शहर ग़ैर मुस्लिमों के पास रहा, यहां तक कि 583 हिज्री में मुजाहिदे आज़म सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने उसे दुबारा फ़तह करके इस्लामी शहरों की फ़ेहरिस्त में शामिल कर लिया, उस वक़्त से 1948 तक मुस्लमान ही इस शहर पर हुक्मराँ रहे, अर्ज़े फ़लस्तीन पर जिसमें बैतुल मोक़द्दस वाक़े है पहली आलमी जंग तक तुर्कों का क़ब्ज़ा रहा, 1917 में पहली मर्तबा बर्तानवी अफ़्वाज बैतुल मोक़द्दस में दाख़िल हुईं, उस ज़माने में सारी दुनिया से यहूदी बकसरत नक़्ले मकानी करके फ़लस्तीन में आ बसे थे, बर्तानवी वज़ीरे ख़ारिजा बाल़्फोर ने यहूदियों के लिए मुस्तक़िल मुल़्क की तज्वीज़ रखी और 1948 में अक़वामे मुत्तहिदा ने फ़लस्तीन को दो हिस्सों में तक़्सीम कर दिया, फ़लस्तीन के मग़रिबी हिस्से पर जो पच्चीस फ़ीसद इलाक़े को मोहैय्यत है।
यहूदी क़ाबिज़ हो गए और उन्होंने तेल अबीब को अपना पायए तख़्त बना लिया, बाक़ी मशरिक़ फ़लस्तीन में अरब रहते हैं, 1967 में मशरिक़ी फ़लस्तीन का बड़ा हिस्सा भी यहूदियों ने हथिया लिया, पहले बैतुल मोक़द्दस का निज़ाम उर्दुन के हाथ में था, अब इस पर भी यहूदी क़ाबिज़ हैं, यहूदियों के पास इस वक़्त अर्ज़े फ़लस्तीन का बीस हज़ार चार सौ मुरब्बा किलो मीटर का रक़बा है, इस इलाक़े की कुल आबादी सत्तर लाख है, जिसमें मुसलमानों का तनासुब सिर्फ़ बीस फ़ीसद है, पहले ये तनासुब पचास फ़ीसद से ज़्यादा था, फ़लस्तीन के हालात से मजबूर होकर मुसलमानों की बड़ी तादाद हिजरत करके आस पास के मुल्कों में मुंतक़िल हो गई है जहां वो निहायत कसम पुर्सी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं, जो लोग फ़लस्तीन में बाक़ी हैं वो भी जान हथेली पर रख कर ज़िंदगी बसर कर रहे हैं अगरचे वहां 1993 में इसराईल ने फ़लस्तीनियों को ख़ुदमुख़्तारी देने के मुआहिदे पर दस्तख़त किए हैं, लेकिन अमलन अब भी वहां इसराईल ही का हुक्म चलता है, बेक़सूर मुसलमानों पर इसराईल के मज़ालिम का सिलसिला जारी है और सारी दुनिया ख़ामोश तमाशाई बनी हुई है।
मस्जिदे अक्सा रूए ज़मीन पर तामीर की जाने वाली दूसरी मस्जिद है, हज़रत अबूज़र ग़फ़्फ़ारी रज़ियल्लाहू अन्हा रिवायत करते हैं कि मैंने सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की ख़िदमते अक़्दस में अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! सबसे पहले ज़मीन पर कौन सी मस्जिद तामीर की गई, आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, मस्जिदे हराम, मैंने अर्ज़ किया फिर कौन सी, फ़रमाया मस्जिदे अक्सा, मैंने अर्ज़ किया, दोनों की तामीर के दरमियान कितनी मुद्दत का फ़ासिला है फ़रमायाः चालीस साल (सही अलबुख़ारीः 152/11, रक़मः 3115, सही मुस्लिमः 105/3, रक़मः808) इस रवायत से मालूम होता है कि मस्जिदे अक्सा और मस्जिदे हराम दोनों अल्लाह ताला की इबादत के लिए बनाई गई सबसे पहली मसाजिद हैं, अगरचे ये बात मशहूर है कि मस्जिदे अक्सा की तामीर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने कराई है, ये बात इस एतबार से तो सही है कि इनके दौर में इस मस्जिद की तामीरे नौ हुई, लेकिन असल बुनियाद उसकी भी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने ही रखी है जिस तरह उन्होंने मस्जिद हराम की बुनियाद रखी है, हालाँकि बिना काबा की निस्बत हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरफ़ की जाती है, ये निस्बत इस एतबार से तो सही है कि काबा की असल इमारत जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के हाथों तामीर हुई वो ख़त्म हो चुकी थी।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उनके साहबज़ादे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने ख़ानए काबा की तामीर इन्ही बुनियादों पर की, जिस तरह मस्जिदे हराम में तामीरी तज्दीद अत व तग़ैय्युरात होती रही हैं, इसी तरह उनका सिलसिला मस्जिदे अक्सा में भी जारी रहा, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बाद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दो हज़ार साल क़ब्ल मसीह में मस्जिदे अक्सा को दोबारा तामीर कराया और इस तामीरी मुहिम में उनके साथ थे उनके बेटे हज़रत इसहाक़ और हज़रत याक़ूब अलैहिमुस्सलाम ने उनकी मदद की, इसके ठीक एक हज़ार साल के बाद हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसकी तामीरे नौ की, इसलिए मस्जिदे अक्सा की निस्बत हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की तरफ़ की जाती है, इमाम अलमोफ़स्सर बिन हज़रत मुजाहिद रज़ियल्लाहू अन्हा फ़रमाते हैं कि अल्लाह ताला ने अर्ज़े काबा तमाम रूए ज़मीन से दो हज़ार साल पहले बनाई है और इसकी बुनियादें सातों ज़मीनों के अंदर तक पहुंची हुई हैं और मस्जिदे अक्सा हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने तामीर फ़रमाई है (सुनन अलनेसाईः 34/2) हाफ़िज़ इब्ने हुजरा रज़ियल्लाहू अन्हा, अल्लामा इब्ने अलजोज़ी रहमतुल्लाह अलैहि और अल्लामा क़रतबी रहमतुल्लाह अलैहि ने ये इशकाल इस तरह रफ़ा किया है कि असल तामीर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के हाथों हुई, दूसरी तामीर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने की और तीसरी तामीर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने कराई जिसमें उनके साथ जिन्नात भी शरीक हुए। (फ़तह अलबारीः 408/6, तफ़्सीर अलक़रतबीः 130/4) अह्दे हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हा में भी मस्जिदे अक्सा की तामीर हुई, मौजूदा इमारत की तामीर का आग़ाज़ उम्मवी ख़लीफ़ा अब्द अलमुल्क बिन मरवान के दौर में हुआ और उनके बेटे वलीद बिन अब्द अलमुल्क के दौरे हकूमत में सन् 715 मुताबिक़ 94 हिजरी में पायए तकमील को पहुंची, ये मस्जिद फ़ने तामीर का नादिर व नायाब नमूना है, इसका मजमूई रकबा 47 हज़ार मुरब्बा फिट है, लंबाई 262 फिट और चौड़ाई 180 फिट है, मस्जिद में दाख़िल होने के ग्यारह दरवाज़े हैं, इस मस्जिद के अंदरूनी हिस्से में लगभग पाँच हज़ार अफ़राद ब-यकवक़्त नमाज़ पढ़ सकते हैं।

रवायात में है कि जिस वक़्त हज़रत सुलेमान अलैहि अस्सलाम मस्जिदे अक्सा की तामीर से फ़ारिग़ हुए तो उन्होंने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से तीन चीज़ों की दुआ की एक तो ये कि उनके फ़ैसले अल्लाह के फ़ैसलों के ऐन मुताबिक़ हों, दूसरे ये कि उनको ऐसी बेमिसाल और वसी हुकूमत अता की जाय, जो उनके बाद किसी को ना मिले, तीसरे ये कि जो शख़्स सिर्फ़ नमाज़ के इरादे से मस्जिद में दाख़िल हो तो गुनाहों से पाक साफ़ होकर इस हाल में मस्जिद से बाहर निकले जैसे उस की माँ ने उसे आज ही जना हो, सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया इनमें से दो चीज़ें तो सुलेमान अलैहिस्सलाम को अता कर दी गई हैं, उम्मीद है तीसरी भी अता की जाएगी, (सुनन इब्ने माजाः 326/4, रक़म :498) मस्जिदे अक्सा के बड़े फ़ज़ाइल हैं, इस मस्जिद की इससे बढ़ कर और क्या फ़ज़ीलत हो सकती है के वाक़िया मेराज के ज़िम्न में क़ुराने करीम ने इसका ज़िक्र किया है। इरशादे बारी ताला हैः सुबहानल्लज़ी इसरन बेअब्देही लैलम मेनल मस्जिदिल हरामे एलल मस्जिदिल अक्सा अल्लज़ी बरकना होलहू (सूरे अल-असराः 1) पाक है वो ज़ात जो अपने बंदे को शब के वक़्त मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक ले गया जिसके आस पास हमने बरकतें कर रखी हैं। इस आयत में वाक़िया मेराज का ज़िक्र है जो हमारे नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का ख़ास इम्तेयाज़ और मख़सूस मोजिज़ा है, मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक के सफ़र को शरई इस्तेलाह में असरा कहा जाता है, और मस्जिदे अक्सा से जो सफ़र आसमानों का हुआ उसको मेराज कहा जाता है।

मेराज की तफ़सीलात हदीस की किताबों में मौजूद हैं, मुहद्दिसीन व मोफ़स्सिरीन ने लिखा है कि इसरा व मेराज की रवायात मुतवातिर हैं, हाफ़िज़ इब्ने कसीर ने पच्चीस सहाबा किराम के अस्मा ज़िक्र किए हैं जिन्होंने असरा व मेराज की तफ़्सीलात ज़िक्र फ़रमाई हैं, (मुलाहिज़ा हो तफ़्सीर इब्ने कसीर: 136/6)। क़ुराने करीम का ये इरशाद कि हमने इसके इर्दगिर्द बरकतें रखी हैं मस्जिदे अक्सा की फ़ज़ीलत का एक बड़ा उन्वान है, मुफ़स्सिरीन ने यहां तक बरकतों से दीनी और दुनयवी दोनों तरह की बरकतें मुराद ली हैं, दुनयवी बरकात तो ये हैं कि ये मस्जिद तमाम अंबियाए साबक़ीन का क़िबला रहा है और ये ख़ित्ता जिसमें शाम, लेबनान, उर्दुन और फ़लस्तीन वाक़े हैं बेशुमार अंबिया किराम का मस्कन और मदफ़न है, इसकी दुनयवी बरकतों का क्या ठिकाना आज भी ये इलाक़ा मशरिक़ी वुस्ता का सबसे ज़्यादा सरसब्ज़ व शादाब और ज़रखेज़ इलाक़ा है, क़ुदरती चश्मों, नहरों और बाग़ात से मालामाल है, एक रवायत में है कि सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः कि अल्लाह ताला इरशाद फ़रमाते हैं, ऐ मुल्क शाम तो तमाम शहरों में मेरा मुंतख़ब ख़ित्ता है, मैं तेरी तरफ़ अपने मुंतख़ब बंदे मबऊस करूंगा (तफ़्सीर क़रतबी बहवाला मआरिफ़ुल क़ुरआनः 443/5) क़ुराने करीम में एक और जगह इस ख़ित्ते को बाबरकत ख़ित्ता कहा गया है, इरशाद फ़रमाया: वनज्जैनाहो वलूतन एलल अर्दिल्लती बरकना फीहेमा लिलआलमीन (अल-अंबियाः 71) और हमने उनको और लूत अलैहिस्सलाम को ऐसी सरज़मीन में महफ़ूज़ पहुंचाया जिसमें हमने दो जहां वालों के लिए बरकतें रखी हैं। हज़रत मैमूना रज़ियल्लाहू अन्हा रवायत करती हैं कि हमने अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह! हमें बैतुल मोक़द्दस के बारे में कुछ बतलाएं, आपने इरशाद फ़रमाया, वो हश्र व नश्र की जगह है, वहां जाओ और नमाज़ पढ़ो (मस्नद अहमदः 159/5, रक़मः 26343, सुनन इब्ने माजाः 325/4, रक़मः 397)

मस्जिदे अक्सा उन तीन मस्जिदों में से एक है जिसकी ज़ेयारत के लिए सफ़र करके जाने की इजाज़त है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं: ला तशद्दुद अलरेहाला इल्ला अला सलसता मसाजिद, मस्जिदिल हराम, वलमस्जिदिल अक़्सा ,व मस्जिदी (सही अलबुख़ारीः 376/4, रक़म :1115, सही अलमुस्लिमः 159/7, रक़मः 2475) सिर्फ तीन मस्जिदों का सफ़र किया जा सकता है, मस्जिदे हराम, मस्जिदे अक्सा और मेरी मस्जिद( जो मदीना मुनव्वरा में वाक़े है) ये उन चार मसाजिद में से एक है जिनमें दज्जाल दाख़िल नहीं हो सकेगा मस्जिद हराम, मस्जिद नब्वी, मस्जिदे अक्सा और मस्जिद तूर (मस्नद अहमद बिन हम्बलः ब-हवाला मआरिफ़ुल क़ुरानः 444/5) मस्जिदे अक्सा की एक बड़ी फ़ज़ीलत ये है कि इस्लाम के इब्तेदाई मरहले में इसकी तरफ़ रुख करके नमाज़ पढ़ी जाती थी, ये सिलसिला हिजरत के बाद भी सोलह सत्रह महीने तक जारी रहा, यहां तक कि आपके क़ल्बे मुबारक में ये इश्तियाक़ पैदा हुआ कि काश काबतुल्लाह को क़िबला क़रार दे दिया जाय, चुनांचे ऐन हालते नमाज़ में तहवीले क़िबला का हुक्म नाज़िल हुआ और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने नमाज़ ही में क़िबले की सिम्त तब्दील फ़रमाई, सहाबा किराम ने भी आपकी इत्तेबा की, मस्जिदे अक्सा में दो अज़ीम इस्लामी यादगारे और भी हैं जिनमें से एक इस अज़ीम वाक़ए की यादगार है जिसे हम वाक़िया मेराज कहते हैं, ये क़बतुल सोख़रा के नाम से मौसूम है, ये एक गोल चुनान है जहां से सरकारे दो आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मेराज पर तशरीफ़ ले गए थे, हरम मस्जिद के ऐन वस्त में ये चट्टान वाक़े है, वलीद बिन अब्द अलमुल्क बिन मरवान ने इस पर एक ख़ूबसूरत और नादराए रोज़गार गुम्बद तामीर कराया था, ये गुम्बद ज़मीन से तक़रीबन एक सौ बीस फुट ऊंचा है, इस गुम्बद के तामीर को एक अज़ीम वाक़िया की यादगार ज़रूर कह सकते हैं लेकिन इसको छोटा, तवाफ़ करना, उसकी तरफ़ रुख करके नमाज़ पढ़ना वग़ैरह सही नहीं है, क्योंकि उसकी कोई शरई हैसियत नहीं है।

दूसरी यादगार एक मस्जिद है, जो मस्जिदे अक्सा की हदूद से बाहर तामीर की गई है, तारीख़ की किताबों में इसका नाम जामे उमरिया मस्जिद उमर वग़ैरा लिखे गए हैं, जिस वक़्त हज़रत उमर बिन अलख़त्ताब ने 16 हिजरी में बैतुल मोक़द्दस फ़तह किया और आप वहां तशरीफ़ ले गए तो एक ईसाई राहिब ने आपको अपना कनीसा (इबादतगाह) देखने की दावत दी, आप कनीसा में तशरीफ़ ले गए, इसी अस्ना में मग़रिब की नमाज़ का वक़्त आ गया, राहिब ने इसरार किया कि आप कनीसा से बाहर तशरीफ़ लाकर दाख़िली दरवाज़े की सीढ़ीयों पर नमाज़ अदा करें, इसके बाद हज़रत उमर को ख़्याल आया कि कहीं बाद वाले लोग मेरी नमाज़ के हवाले से कनीसा में तब्दीली ना कर बैठें और उसे मस्जिद ना बना दें, आपने उसी वक़्त काग़ज़ क़लम मंगवाया और ये तहरीर लिख कर कनीसा के मुंतज़मीन को दी कि मेरे इस अमल को देख कर मुसलमान इस इबादतगाह में तसर्रुफ़ ना करें, पादरी और राहिब हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हा की इस ग़ायत एहतियात से बेहद मुतास्सिर हुए और उन्होंने अपनी इबादतगाह से बीस क़दम के फ़ासले से एक मस्जिद तामीर कराई जो बाद में जामे उमर के नाम से मशहूर हुई। एक तरफ़ हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हा की ये रवादारी, दूसरी तरफ़ यहूद व नसारा का ये तास्सुब, अहले नज़र ख़ुद फ़ैसला कर सकते हैं कि क्या मौजूदा दौर के यहूद व नसारा का ये तर्ज़े अमल जो वो मस्जिदे अक्सा के साथ रवा रखे हुए हैं, अक़ल व इंसाफ़, दयानत व अमानत, और रवादारी के मुताबिक़ है ?

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