भारत की आन-बान और शान को साबित करने में बहत्तर घंटे का इंतजार

भारत की आन-बान और शान को साबित करने में बहत्तर घंटे का इंतजार
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यह कोई टीवी सीरियल नहीं है, कहानी भी नहीं है लेकिन जिसने भी इस चार शब्दों के वाक्य को सुना होगा, उसके खौलते हुए दिल में कुछ शीतलता जरूर आयी होगी। उसने उसी समय से अपनी घड़ी में यह देखना शुरू कर दिया होगा कि पाकिस्तान को जवाब देने, चार जवानों की शहादत का बदला लेने और भारत की आन-बान और शान को साबित करने में इन 72 घंटों में कितने घंटे का इंतजार करना पड़ेगा। बातों से न समझने वाला यह पड़ोसी देश हद से आगे बढ़ चुका है। लाइन आफ कंट्रोल (एलओसी) पर पाकिस्तान के सैनिकों ने अंधाधुंध गोलिया चलाकर कैप्टन समेत चार जवानों को धोखे से शहीद कर दिया। खुलकर मैदान में लड़ते तो उन्हें पता चल जाता कि भारत के जवान कितने बहादुर हैं। दस-दस पर हमारा एक जवान भारी पड़ता। इस घटना से पूरे देश में आक्रोश पैदा हो गया। दूरदर्शन के एक चैनल पर इसी संदर्भ में विभिन्न वर्गों के लोग अपनी राय जाहिर कर रहे थे। पूर्व सेनाधिकारी, रक्षा विशेषज्ञ, राजनीतिक दलों के नुमाइंदे भी मौजूद थे। पूर्व सेनाधिकारियों के हृदय में तो जैसे शोले ही दहक रहे थे। उनका गुस्सा सरकार पर भी था। राजनीतिक दलों को भी उन्होंने नसीहत दी। इसी के दौरान केन्द्र में सत्तारूढ़ दल के प्रतिनिधि ने जब यह कहा कि पाकिस्तान की इस जलील, अक्षम्य हरकत का किस तरह से जवाब दिया जाएगा, यह 72 घंटे में पता चल जाएगा। लोगों ने इसे सरकार की तरफ से आश्वासन समझा है, इसलिए 72 घंटे का इंतजार पांच फरवरी की शाम साढ़े पांच बजे से किया जा रहा है।
पाकिस्तान के उस इतिहास पर हम नहीं जाना चाहते जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य के भारत में अंतिम गवर्नर जनरल माउंटबेटन और महात्मा गांधी को नंगा फकीर कहने वाले इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की दुरभि संधियां भी शामिल थीं और मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली की सत्तालोलुपता का फायदा उन अंग्रेजों ने भरपूर उठाया और भारत के दो टुकड़े कर दिये। इसके बावजूद पाकिस्तान को हमने छोटा भाई ही माना था लेकिन वह संपोला निकला। उसके विषदंत दिन पर दिन बड़े होते गये और उनमें जहर की थैलियां बढ़ती गयीं। पिछले साल अर्थात 2017 में ही पाकिस्तान ने 860 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है इसके पिछले वर्ष अर्थात् 2016 में 221 दफे संघर्ष विराम को धता बतायी। इस साल 2018 में अभी एक महीना और पांच दिन के भीतर 9 जवानों समेत 17 लोग मारे गये और 70 अन्य लोग घायल हुए हैं। बीती पांच फरवरी की शाम संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तानी रेंजर्स ने राजौरी के भीम वेर गली सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास भारी गोलाबारी और बमबारी की। इस गोलाबारी में सैन्य अफसर कुंडू, ग्वालियर निवासी रायफल मैन राम अवतार और सांबा के हवलदार रोशन लाल शहीद हो गये। इससे एक दिन पूर्व ही पुंछ जिले के शाहपुर में पाकिस्तानी सेना ने संघर्ष विराम का उल्लंघन किया था जिसमें एक किशोरी और जवान घायल हो गये। पाकिस्तान की सेना ने अग्रिम चैकियों और गांवों को भी निशाना बनाया। शाहपुर में भारतीय सेना की फारवर्ड पोस्ट पर मोर्टार और मशीनगनों से हमला करना सामान्य झड़प नहीं कही जा सकती। यह पाकिस्तान की तरफ से युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न करना है और इसका जवाब उसी की भाषा में दिया जाना चाहिए।
दूरदर्शन की बहस में सेना के रिटायर्ड कर्नल ने कहा कि अब बर्दाश्त से बाहर की बात हो गयी है। पाकिस्तान की नापाक हरकतें करारा जवाब चाहती हैं। उसने हमारी सहनशीलता को हमारी कमजोरी समझ लिया है। हमारी तरफ से दी जा रही कड़ी चेतावनी को वह हवा में उड़ा देता है तो अब उसे ऐसा जवाब दिया जाएगा जैसा सन् 71 में हमने दिया था। रिटायर्ड कर्नल ने कुछ सुझाव भी दिये। उन्होंने कहा कि हमें तत्काल अपने राजदूत को पाकिस्तान से वापस बुला लेना चाहिए और पाकिस्तान के राजदूत से भी कहा जाए कि वे अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर पहली फ्लाइट से अपने देश चले जाएं। इसके साथ ही हमें पाकिस्तान को चीनी खिलाकर उसका मुंह मीठा करने की कोई जरूरत नहीं है और न हम वहां से हींग मंगवाएं। यदि हम ऐसा करें तो पाकिस्तान के लोग हींग खा-खाकर मर जाएंगे....। इस तरह की कितनी ही बातें रिटायर्ड कर्नल जैन ने कहीं। उनका आक्रोश था जो बहुत कुछ कहलवा गया लेकिन उनके शब्द जनता की आवाज जैसे लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि यह रिटायर्ड कर्नल जैन नहीं बल्कि भारत की जनता बोल रही है। उन्होंने कश्मीर के हालात को लेकर भी असंतोष जताया। वहां पथराव करने वालों को नियंत्रित करने के लिए सेना को गोली चलानी पड़ी थी। अब वहां की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सैनिकों के खिलाफ ही दो-दो एफआईआर दर्ज करवायी हैं रिटायर्ड कर्नल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में फौरन राज्यपाल का शासन लगाना चाहिए और सैनिकों के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लेनी चाहिए। इसी प्रकार के विचार सैन्य विशेषज्ञों और सेना के अन्य रिटायर्ड अफसरों ने भी व्यक्त किये।
ऐसा नहीं कि सेना के ये सेवानिवृत्त अफसर लोकतंत्र को नहीं समझते। वे लोकतंत्र की गरिमा का हमेशा सम्मान करते रहे हैं। उन्हें पता है कि लोकतांत्रिक देश में सभी फैसले जनता की चुनी हुई सरकार करती है। सेना अगर फैसला लेने लगेगी तो यह सैन्य तंत्र हो जाएगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसके साथ ही हम अन्तरराष्ट्रीय नियम-कानूनों से भी बंधे हुए हैं। आज विश्व में जहां-जहां गंभीर समस्याएं हैं, वहां भारत की भूमिका को याद किया जाता है। विश्व के पंचों में भारत की गिनती होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की इस गरिमा को और बढ़ाया है। पूरी दुनिया में यह संदेश गया है कि भारत न्याय पर चलता है। इसीलिए इजरायल के प्रधानमंत्री बंेजामिन नेतन्याहू ने इस बात का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत ने येरुशलम को इजरायल की राजधानी मानने वाले प्रस्ताव का विरोध किया है, इसके बावजूद हम भारत से प्रगाढ़ दोस्ती की इच्छा रखते हैं। यह भारत की महान हैसियत का सबूत है। पाकिस्तान तो इसके आगे कहीं टिका ही नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति उसे झूठा और मक्कार कहकर आर्थिक सहायता पर रोक लगा चुके हैं चीन ने भी पाकिस्तान को बेईमान कहते हुए ग्वादर बंदरगाह से जुड़ी एक योजना बंद करने की चेतावनी दी है। कभी पाकिस्तान का ही हिस्सा रह चुका पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश बन चुका है, उसने भी पाकिस्तान को आंतकवादी कहना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान में कई वर्षों तक सैनिक राज रहा है और आज भी उसका लोकतंत्र नाम मात्र का है। वहां की सरकार सेना के इशारे पर ही चलती है।
परेशानी की बात यह कि वहां की सरकार कैसी भी हो लेकिन वह पागल कुत्ते की तरह हरकत कर रही है। कुत्ता जब पागल हो जाता है, तब उसे खुद पता नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। उसका काम रहता है सिर्फ दूसरों को काटना। पाकिस्तान और पागल कुत्ते में सिर्फ इतना अंतर है कि पागल कुत्ता कुछ दिन बाद अपने आप मर जाता है लेकिन अगर वह नहीं मरा है तो उसे मार देना पड़ता है। यही उसका इलाज है। यदि उसे नहीं मारा गया तो जब तक जीवित रहेगा लोगों को काट-काट कर पागल बनाता रहेगा। हमारा देश अब तक उसका इलाज करने में लगा रहा। कभी मलहम लगाया तो कभी सर्जिकल स्ट्राइक जैस कड़वी दवा भी पिला दी लेकिन उसका पागलपन ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है। राजनीतिक दलों को भी अब इस पर एकमत होना पड़ेगा। मरहूम दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां याद आती हैं-
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए। (हिफी)

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