अयोध्या केस-सुप्रीम कोर्ट का खूबसूरत फैसला, ना कोई जीता, ना कोई हारा

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अयोध्या के बाबरी मस्जिद और राम मन्दिर विवाद में आखिरकार सदियों बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ एक खूबसूरत रास्ता निकलकर सामने आया। हिन्दुस्तान के इतिहास के इस सबसे बड़े मुकदमा का हल इस तरह से हुआ कि ना किसी की हार हुई और ना ही कोई जीत पाया। इस फैसले को हिन्दुस्तान ने अपनी गंगा जमुनी तहजीब की भांति ही स्वीकार कर देश में भाईचारे और सद्भाव का वातावरण पैदा किया है। अभी तक राजनीतिक लिहाज से भारत का सबसे बड़ा मुद्दा बने रहने वाले अयोध्या केस के राजनीतिकरण का भी इस फैसले के साथ ही पटाक्षेप हो गया है। यह फैसला आस्था के विश्वास के सम्मान के रूप में भी देखा जा रहा है। निर्माही अखाड़ा का दावा खारिज कर दिया गया, इसके साथ ही विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष कोई भी दावा साबित नहीं कर पाया। विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दे दिया गया है। इस फैसले का पूरे हिन्दुस्तान ने दिल खोलकर साम्प्रदायिक सद्भाव के साथ स्वागत किया है। इस फैसले में सबसे बड़ी बात यह रही कि पांच सदस्यीय खण्डपीठ में सभी पांचों जजों की फैसले को लेकर एक राय रही है।

करीब 200 साल पुराने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिन की सुनवाई के बाद शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई सहित पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने विवादित जमीन पर रामलला विराजमान के हक में निर्णय सुनाया। शीर्ष अदालत ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को राम मंदिर बनाने के लिए तीन महीने में सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा कि 02.77 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के अधीन ही रहेगी। साथ ही मुस्लिम पक्ष को नई मस्जिद बनाने के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने के भी निर्देश हैं। इसके अलावा कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े और शिया वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया है। हालांकि निर्मोही अखाड़े को ट्रस्ट में जगह देने की अनुमति को स्वीकार कर लिया गया है। अयोध्या मामले के एक याचिकाकर्ता इकबाल अंसारी ने फैसले पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश हूं। आखिरकार फैसला आ गया, मैं फैसले का सम्मान करता हूं। निर्मोही अखाड़े के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी 150 साल पुरानी लड़ाई को पहचाना, इसके लिए हम उनका शुक्रिया अदा करते हैं। अदालत ने निर्मोही अखाड़े को ट्रस्ट में उचित जगह दी है। हिंदू महासभा के वकील वरुण कुमार सिन्हा ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इसके जरिए एकता का संदेश दिया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि हम फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन हम इससे संतुष्ट नहीं हैं। हम आगे की कार्रवाई पर जल्द ही फैसला लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले जस्टिस कलिफुल्ला, श्रीराम पांचू और श्रीश्री रविशंकर की प्रशंसा की। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को राष्ट्रीय एकता के रूप में भी देखा जा रहा है।

अयोध्या केस में साल 2010 में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था, इसमें विवादित जमीन को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। हाईकोर्ट के फैसले से अलग सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दिया है, जबकि इस फैसले के साथ ही अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के साथ ही मस्जिद निर्माण का भी रास्ता खुला है। तीसरे किसी भी पक्ष का दावा अदालत ने खारिज किया है।

मस्जिद गिराना कानून का उल्लंघन

बाबरी मस्जिद विध्वंस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद को गिराना कानून का उल्लंघन है। अदालत ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि तीन महीने के भीतर मंदिर बनाने के लिए ट्रस्ट बनाया जाए और मुस्लिम पक्ष को अलग से पांच एकड़ जमीन दी जाए। इस जमीन पर नई मस्जिद बनाई जाएगी। अदालत ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड अयोध्या विवाद में अपना दावा रखने में विफल हुआ है। मुस्लिम पक्ष ऐसे सबूत पेश करने में विफल रहा है कि जिससे यह साबित हो सके कि विवादित जमीन पर सिर्फ उसका ही अधिकार है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अलग जमीन दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि मुस्लिमों को नई मस्जिद बनाने के लिए वैकल्पिक जमीन दी जाए। यह स्पष्ट है कि मुस्लिम अंदर नमाज पढ़ा करते थे और हिंदू बाहरी परिसर में पूजा किया करते थे। हालांकि हिंदुओं ने गर्भगृह पर भी अपना दावा कर दिया। जबकि मुस्लिमों ने मस्जिद को छोड़ा नहीं था। अदालत ने यह भी कहा कि रामजन्मभूमि कोई व्यक्ति नहीं है, जो कानून के दायरे में आता हो। अदालत ने कहा कि आस्था के आधार पर फैसले नहीं लिए जा सकते हैं। ये विवाद सुलझाने के लिए सांकेतक जरूर हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंग्रेजों के शासनकाल में राम चबूतरा और सीता रसोई में पूजा हुआ करती थी। इस बात के सबूत हैं कि हिंदुओं के पास विवादित जमीन के बाहरी हिस्से का कब्जा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा न तो सेवादार है और न ही भगवान रामलला के श्रद्धालु है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि लिमिटेशन की वजह से अखाड़े का दावा खारिज हुआ था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम शिया वक्फ बोर्ड की विशेष याचिका को खारिज करते हैं। शिया वक्फ बोर्ड ने 1946 में फैजाबाद कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। अदालत ने कहा कि बाबरी मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी। अदालत के लिए धर्मशास्त्र के क्षेत्र में जाना सही नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजस्व रिकॉर्ड में विवादित जमीन सरकारी जमीन के नाम पर दर्ज है।

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