संगीत के जादू से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया हेमंत कुमार ने

संगीत के जादू से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया हेमंत कुमार ने

..पुण्यतिथि 26 सितंबर के अवसर पर ..

मुंबई। फिल्म जगत को अपनी मधुर संगीत लहरियों से सजाने संवारने वाले महान संगीतकार और पार्श्वगायक हेमंत कुमार मुखोपाध्याय उर्फ हेमंत दा के गीत आज भी फिजां में गूंजते महसूस होते हैं।

16 जून 1920 को बनारस में जन्में हेमंत कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता के मित्रा इंस्टीच्यूट से पूरी की। इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हेमंत कुमार ने जादवपुर विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग मे दाखिला ले लिया,लेकिन कुछ समय बाद हेमंत कुमार ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि उस समय उनका रूझान संगीत की ओर हो गया था और वह संगीतकार बनना चाहते थे ।

इस बीच हेमंत कुमार ने साहित्य जगत मे भी अपनी पहचान बनानी चाही और एक बंगाली पत्रिका देश में उनकी एक कहानी भी प्रकाशित हुयी। लेकिन वर्ष 1930 के अंत तक हेमंत कुमार ने अपना पूरा ध्यान संगीत की ओर लगाना शुरू कर दिया।

अपने बचपन के मित्र सुभाष की सहायता से वर्ष 1930 में हेमंत कुमार को आकाशवाणी के लिये अपना पहला बंगला गीत गाने का मौका मिला। हेमंत कुमार ने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक बंगला संगीतकार शैलेश दत्त गुप्ता से ली। हेमंत कुमार ने उस्ताद पैयाज खान से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ली।

वर्ष 1937 में शैलेश दत्त गुप्ता के संगीत निर्देशन में एक विदेशी संगीत कंपनी कोलंबिया लेबल के लिये हेमंत कुमार ने गैर फिल्मी गीत गाये। इसके बाद हेमंत कुमार ने लगभग हर वर्ष ग्रामोफोनिक कंपनी ऑफ इंडिया के लिये अपनी आवाज दी। ग्रामोपोनिक कंपनी के लिये ही 1940 कमल दास गुप्ता के संगीत निर्देशन में हेमंत कुमार को अपना पहला हिन्दी गाना कितना दुख भुलाया तुमने गाने का मौका मिला जबकि वर्ष 1941 में प्रदर्शित एक बंगला फिल्म के लिये हेमंत कुमार ने अपनी आवाज दी।

वर्ष 1944 मे एक गैर फिल्मी बंगला गीत के लिये हेमंत कुमार ने संगीत दिया ।इसी वर्ष पंडित अमर नाथ के संगीत निर्देशन में उन्हें अपनी पहली हिन्दी फिल्म इरादा में गाने का मौका मिला ।इसके साथ ही वर्ष 1944 मे रवीन्द्र नाथ ठाकुर के रवीन्द्र संगीत के लिये हेमंत कुमार ने कोलंबिया लेबल कंपनी के लिये गाने रिकार्ड किये। वर्ष 1947 में बंगला

फिल्म अभियात्री के लिये बतौर संगीतकार काम किया।

इस बीच हेमंत कुमार भारतीय जन नाट्य संघ: इप्टाः के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करने लगे। धीरे धीरे हेमंत कुमार बंगला फिल्मों में बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाते चले गये। इस दौरान हेमंत कुमार ने कई बंगला फिल्मों के लिये संगीत दिया जिनमें हेमेन गुप्ता निर्देशित कई फिल्में शामिल है।

कुछ समय के बाद हेमेन गुप्ता मुंबई आ गये और उन्होंने हेमंत कुमार को भी मुंबई आने का न्यौता दिया। वर्ष 1951 मे फिल्मीस्तान के बैनर तले बनने वाली अपनी पहली हिन्दी फिल्म आनंद मठ के लिये हेमेन गुप्ता ने हेमंत कुमार से संगीत देने की पेशकश की। फिल्म आनंदमठ की सफलता के बाद हेमंत कुमार बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गये । फिल्म आनंदमठ में लता मंगेश्कर की आवाज में गाया हुआ वंदे मातरम आज भी श्रोताओं को भावावेश में ला देता है।

वर्ष 1954 में हेमंत कुमार के संगीत से सजी फिल्म नागिन की सफलता के बाद हेमंत कुमार सफलता के शिखर पर पहुंच गये। फिल्म नागिन का एक गीत मन डोले मेरा तन डोले आज भी श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय है।इस फिल्म के लिये हेमंत कुमार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये।

वर्ष 1959 में हेमंत कुमार ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे भी कदम रखा और हेमंता बेला प्रोडक्शन नाम की फिल्म कंपनी की स्थापना की जिसके बैनर तले मृणाल सेन के निर्देशन में एक बंगला फिल्म नील आकाशेर नीचे का निर्माण किया । इस फिल्म को प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल दिया गया।इसके बाद हेमंत कुमार ने अपने बैनर तले बीस साल बाद कोहरा, बीबी और मकान,फरार,राहगीर और खामोशी जैसी कई हिन्दी फिल्मों का भी निर्माण किया।

वर्ष 1971 में हेमंत कुमार ने एक बंगला फिल्म आनंदिता का निर्देशन भी किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह से नकार दी गयी।वर्ष 1979 में हेमंत कुमार ने चालीस और पचास के दशक में सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में गाये गानों को दोबारा रिकार्ड कराया और उसे लीजेंड ऑफ ग्लोरी 2 के रूप में जारी किया और यह एलबम काफी सफल भी रही।

वर्ष 1989 मे हेमंत कुमार बंगलादेश के ढ़ाका शहर में माइकल मधुसूधन अवार्ड लेने गये, जहां उन्होंने एक संगीत समारोह मे हिस्सा भी लिया। समारोह की समाप्ति के बाद भारत लौटने के बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद हेमंत कुमार 26 सिंतबर 1989 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।


वार्ता

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