नेपाली प्रधानमंत्री ओली को क्यों याद आए राम?

नेपाली प्रधानमंत्री ओली को क्यों याद आए राम?

लखनऊ। कहावत है कि हारे को हरि नाम। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को भी अंततः राम याद आ गए। नेपाल के प्रधानमंत्री विगत दो महीने से एक के बाद एक विवादास्पद मुद्दे उठा कर भारत के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। परन्तु इसके पीछे उनका वास्तविक उद्देश्य अब प्रकट हो रहा है। आश्चर्य यह है कि प्रधानमंत्री के इस बयान पर भारत में उग्र प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। जबकि नेपाल में लोग मजे ले रहे हैं। विगत कुछ महीने के घटनाक्रम से पता चलता है कि ओली शोशेबाजी कर नेपाली जनता को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। जबकि भारत में सरकार कोई माकूल कदम उठाने से कन्नी काटते नजर आती है। अधिकांश मीडिया व कुत्सित सोच वाले लोग नेपाली प्रधानमंत्री की बजाय नेपाल की लानत-लानत में जुट जाते हैं। फलस्वरूप नेपाल में कम्युनिस्ट एजेंडा का विरोध करने वालों पर भारत समर्थक का ठप्पा लगा कर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। ध्यान रहे नेपाली प्रधानमंत्री ने कहा था हमारी सांस्कृतिक पहचान को दबा दिया गया। तथ्यों के साथ छेड़छाड़ हुई है। हम अब भी मानते हैं कि हमारी सीता की शादी भारतीय राजकुमार राम से हुई थी। दरअसल, हमने सीता भारत के राजकुमार को नहीं बल्कि अयोध्या के राजकुमार को सौंपी थी। अयोध्या वीरगंज से थोड़ा पश्चिम का गांव है। वो भारत की अयोध्या नहीं है। भारत की अयोध्या को लेकर विवाद है लेकिन हमारी अयोध्या को लेकर कोई विवाद नहीं है। वास्तव में नेपाल की अयोध्या किसी जगह का नाम नहीं है। ओली जिसे राम की जन्मभूमि बता रहे हैं, वो एक वाल्मीकि आश्रम है जो नेपाल के तराई इलाके के परसा जिले के ठोरी गांव में है। यह भारत के बिहार राज्य से सटा इलाका है। जनकपुर भी पास में ही है जो सीता की जन्मस्थली है। नेपाल में चितवन के माड़ी में एक और आश्रम है जिसे बाल्मीकि आश्रम के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि ने ही रामायण की रचना की थी। प्रधानमंत्री ओली ने नेपाली कवि भानुभक्त जयंती समारोह में राम को नेपाल का राजकुमार बताया था। भानुभक्त ने ही नेपाली भाषा में रामायण का अनुवाद किया था। भारत के खिलाफ जिस तरह से नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपना रुख अख्तियार कर रहे हैं, उससे वे अब अपने मानसिक दिवालियापन का परिचय दे रहे हैं। यही कारण है कि उक्त बयान को लेकर अब वे अपने ही देश में मजाक का पात्र बन गए हैं।

पीएम ओली के इस बयान से बवाल मचता देख आनन-फानन में विदेश मंत्रालय ने सफाई पेश की। नेपाली विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि पीएम ओली के बयान का राजनीतिक मुद्दे से लेना देना नहीं है। इससे किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं था। बयान का उद्देश्य अयोध्या के महत्व और सांस्कृतिक मूल्य को भी कम करना नहीं था।

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में यह भी कहा गया है कि श्री राम और उनसे जुड़े स्थानों को लेकर कई तरह के मिथ और संदर्भ हैं। ऐसे में पीएम ओली और अधिक अध्ययन और शोध के महत्व को रेखांकित कर रहे थे। ओली के बयान का विश्लेषण करते हुए नेपाल के पत्रकार धरूबा एच अधिकारी ने लिखा है, ओली की पार्टी का नाम है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल। नाम में 'कम्युनिस्ट' लगा है। कम्युनिजम यानी साम्यवाद धर्म को नहीं मानता। ओली ने जब शपथ ली थी तो उन्होंने भगवान का नाम लेने से मना कर दिया था। जब पीएम मोदी ने जनकपुर में पूजा की, तो ओली ने नहीं की। लेकिन ऐसे समय ओली को राम और अयोध्या की चिंता हो रही है। हैरानी की बात है। नेपाल के लेखक और ख्यातलब्ध राजनीतिक विश्लेषक कनक मणि दीक्षित ने ट्वीट किया है, भगवान राम का जन्म कहाँ हुआ और अयोध्या कहाँ है, ऐसी पौराणिक बातों पर विवाद खड़ा करना पीएम ओली की मूर्खतापूर्ण कोशिश है। अभी तो सिर्फ भारत सरकार के मन में मौजूदा स्थिति के कारण कड़वाहट है। इससे लोगों में भी फूट पैदा हो सकती है। जबकि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के उप-प्रमुख बिष्णु रिजल ने कहते हैं, यह कहना एक बड़ा भ्रम है कि कोई व्यक्ति अप्रमाणिक, पौराणिक और विवादास्पद बातें कहकर विद्वान बन जाता है। यह ना केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि 'रहस्यमय' भी है कि कैसे विरोध और उकसावे के लिए रोज नए मसाले डाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री के पूर्व प्रेस सलाहकार और नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कुंदन आर्यल का कहना है कि ओली ने ये क्या कह दिया? क्या वो भारतीय टीवी चैनलों से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। नेपाली लेखक और पूर्व विदेश मंत्री रमेश नाथ पांडे का मानना है कि धर्म राजनीति और कूटनीति से ऊपर है। यह एक बड़ा भावनात्मक विषय है। अबूझ भाव और ऐसी बयानबाजी से आप केवल शर्मिंदगी महसूस करते हैं। यदि असली अयोध्या बीरगंज के पास है तो फिर सरयू नदी कहाँ है। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के चेयरमैन और नेपाल के पूर्व उप-प्रधानमंत्री कमल थापा ने प्रधानमंत्री ओली को फटकारते हुए कहा कि किसी भी प्रधानमंत्री के लिए इस तरह का आधारहीन और अप्रामाणित बयान देना उचित नहीं है। ऐसा लगता है कि पीएम ओली भारत और नेपाल के रिश्ते और बिगाड़ना चाहते हैं। जबकि उन्हें तनाव कम करने के लिए काम करना चाहिए। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबू राम भट्टाराई का ओली के बयान पर व्यंग्य बड़ा दिलचस्प है।

वे एक ट्वीट करते हैं। आदि-कवि ओली द्वारा रचित कल युग की नई रामायण सुनिए, सीधे बैकुंठ धाम का यात्रा करिए। नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार अमित ढकाल पीएम ओली के बयान पर मजे लेते हुए कहते हैं, श्रीलंका द्वीप नेपाल के कोशी में है। वहाँ हनुमान नगर भी है जिसका निर्माण वानर-सेना ने किया होगा, जब वो पुल बनाने के लिए एकत्र हुए होंगे। भारत की मीडिया व साधु संतों की प्रतिक्रिया को यदि परे रखा जाय तो कांग्रेस की ही प्रतिक्रिया दृष्टव्य है। यूथ कॉन्ग्रेस ने अपने ट्विटर पर लिखा, "पहले उन्होंने भारतीय न्यूज चैनलों को बैन किया और अब नेपाल की इतनी हिम्मत कि ये कह रहे हैं कि भगवान राम भारतीय मिट्टी के पुत्र नहीं हैं। विचारणीय है कि नेपाल में जब प्रधानमंत्री ओली की लानत-मलानत की जा रही है तब नेपाली प्रधानमंत्री की निंदा की बजाय नेपाल को निशाने पर क्यों लिया जा रहा है। जो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर भगवान राम के अस्तित्व को ही नकार चुकी है, उसे राम की चिंता क्यों हो रही है। कांग्रेस व नेपाल के प्रधानमंत्री के मध्य वैचारिक साम्य परिलक्षित होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि ओली ने राम के बारे में अनर्गल बात न कर केवल राम को अपने देश का बताया है। राम तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के हैं। स्मरण रहे कि कम्युनिस्ट न तो राष्ट्र को मानते हैं , न ही धर्म को तो ओली को राम कैसे याद आए। ऐतिहासिक तथ्य यह कि भारत व नेपाल एक ही गर्भनाल से जुड़े हुए हैं, इन्हें सनातन धर्म कभी भी अलग नहीं होने देगा। इसलिए प्रधानमंत्री ओली नेपाल को भारत से अलग कर चीनी उपनिवेश बनाने के गर्हित एजेंडे पर काम कर रहे हैं । सीमा को विवादित करने के बाद नागरिकता व हिंदी के नाम पर नेपाली जनता को बरगला कर चीनी एजेंडे से ध्यान हटाना उनका लक्ष्य प्रतीत होता है। इसमें सफलता मिलते न देखकर उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की शरण ली है। नेपाल में भारत के प्रति जो आशंका का वातावरण बनाया गया है, उसके लिए नेपाल के माओवादियों- कम्युनिस्टों के साथ ही भारत के कम्युनिस्ट व उनके पृष्ठ पोषक जिम्मेवार बताए जाते हैं। तथ्य बताते हैं कि कांग्रेस को नेपाल के हिन्दू राष्ट्र बने रहने से दिक्कत रही हैं। भारत विरोधी शक्तियों से उसका याराना सवालों के दायरे में रहा है। नेपाल में प्रधानमंत्री ओली व चीन के

मध्य दुरभि सन्धि के विरुद्ध आक्रोश को दृष्टिगत रखते हुए भगवान राम पर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की बजाय चीन व नेपाली प्रधानमंत्री के विरुद्ध सामयिक कदम उठाना समीचीन होगा।

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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