वसुंधरा राजे सिंधिया ने किया भाजपा के किले को कमजोर

वसुंधरा राजे सिंधिया ने किया भाजपा के किले को कमजोर

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विजय रथ जहां देश भर में बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है, वहीं राजस्थान में भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भाजपा के किले को कमजोर साबित कर दिया है। भाजपा नेतृत्व के लिए यह बात इसलिए ज्यादा चिंता की है क्योंकि इसी साल के अंत में यहां विधानसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा 2014 से ही कांग्रेस को मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानकर चल रही है और उसने कांग्रेस से एक-एक करके कई सरकारें छीन भी ली हैं। अभी दो महीने पहले ही कांग्रेस शासित हिमाचल पर भाजपा ने अपनी विजय पताका फहराई है। इससे पूर्व असम और मणिपुर के साथ उत्तराखण्ड को भी भाजपा ने कांग्रेस से ही छीना था। अब राजस्थान में भी भाजपा की मुख्य प्रतिद्वन्द्व़ी कांग्रेस है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दावे तो बहुत चढ़कर कर रही थीं लेकिन 29 जनवरी को हुए दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा सीट के उपचुनाव में जो नतीजे मिले हैं, उससे भाजपा के लिए इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव ही नहीं अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी खतरे की घंटी सुनायी पड़ रही है। भाजपा तीनों सीटों पर हार गयी है।
राजस्थान में लोकसभा की अजमेर और अलवर लोकसभा सीटों के साथ मंडलगढ़ विधानसभा के उपचुनाव कराये गये। मंडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव के नतीजे जब घोषित हो रहे थे तब शुरुआत में भाजपा को बढ़त मिलती दिखाई दी थी लेकिन बाद में भाजपा प्रत्याशी शक्ति सिंह हांडा को कांग्रेस प्रत्याशी विवेक धाकड़ ने पराजित कर दिया। शक्ति सिंह हांडा को 12976 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी विवेक धाकड़ ने पराजित किया है। इसी प्रकार अलवर लोकसभा सीट से कांग्रेस के करण सिंह यादव ने भाजपा के जसवंत सिंह यादव को एक लाख 96 हजार 496 मतों से और अजमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के रघुशर्मा ने भाजपा के रामस्वरूप लांबा को 84414 मतों से पराजित कर दिया। कांग्रेस के नेता सचिन पायलेट ने कहा कि इन चुनाव नतीजों को देखकर यह कहा जा सकता है कि राजस्थान की जनता ने वसुंधरा राजे सरकार को नकार दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य की जनता ने भाजपा के सारे तेवर ढीले कर दिये हैं। इन उपचुनावों को जीतने के लिए भाजपा की केन्द्र और राज्य सरकार ने पूरी ताकत लगा दी थी। श्री पायलट ने कहा कि पिछले 30-40 सालों से राजस्थान में उपचुनाव हमेशा सत्तारूढ़ दल ही जीतता रहा है लेकिन वसुंधरा राजे की सरकार में हार हो रही है। राजस्थान की जनता उपचुनाव के जरिए आठ महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव का संदेश दे रही है। पायलट कहते हैं कि कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में मजबूत थी और और मजबूत रहेगी। हम लोगों को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गयी है। पायलट ने कहा कि मैं प्रदेश का अध्यक्ष हूं तो निश्चित रूप से हमारी जिम्मेदारी है कि हम हर चुनाव जीतें, चाहे वह नगर पालिका का चुनाव हो अथवा लोकसभा का। उन्होंने याद दिलाया कि अब तक पांच उपचुनाव हो चुके हैं और उनमें से कांग्रेस ने तीन उपचुनाव जीते हैं।
सचिन पायलट के लिए निश्चित रूप से यह जश्न मनाने जैसा है। राहुल गांधी ने जब उन्हें राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी थी, तब कई नेता अंदरूनी तौर पर विरोध कर रहे थे। इसलिए राजस्थान में उनका प्रदर्शन बेहतर होना चाहिए था। इस बार उपचुनाव में जहां भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अग्नि परीक्षा थी तो सचिन पायलट की भी यह कठिन परीक्षा थी। तीनों सीटें भाजपा के पास थीं और वसुंधरा राजे को इन्हें जीतना था लेकिन कांग्रेस ने भाजपा से सीटें छीन लीं तो इसका बड़ा श्रेय सचिन पायलट को जाता है। वसुंधरा राजे की पूरी कैबिनेट ने चुनाव क्षेत्रों में डेरा जमा रखा था। सचिन कहते हैं कि भाजपा की केन्द्र और राज्य दोनों जगह सरकार है। ऐसे में यह दोनों सरकारों की हार है। भाजपा से जनता का मोह भंग हो गया है। भाजपा को राज्य की जनता ने घुटनों पर ला दिया है। सचिन ने कहा कि भाजपा अपने को चुनाव विनिंग मशीन कहती थी लेकिन जनता से बड़ा कोई नहीं होता है। सचिन पायलट कहते हैं कि हमे जब राजस्थान में पार्टी को जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, उस समय कांग्रेस के पास सिर्फ 21 विधायक थे। इस प्रकार राजस्थान में एक तरह से कांग्रेस हाशिए पर आ गयी थी। इसके बाद हम सबने मिलकर और एकजुट होकर मेहनत की है। इसी का नतीजा है कि आज हम सत्ताधारी दल को पछाड़कर उपचुनाव जीत रहे हैं। वह कहते हैं कि पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है। राहुल गांधी के नेतृत्व में हम सब काम कर रहे हैं। हमारी पहली प्राथमिकता चुनाव जीतने की है।
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी को गुजरात में अच्छा प्रदर्शन करने पर शाबाशी मिली थी और अब राजस्थान के उपचुनावों में कांग्रेस को शानदार सफलता ने उनके नेतृत्व को पुख्ता कर दिया है। इसी के साथ राहुल गांधी की राजस्थान को लेकर रणनीति भी सफल मानी जा रही है। राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को और उनके समर्थकों को यह बात अच्छी नहीं लगी थी जब राहुल गांधी ने युवा नेता सचिन पायलट को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी और अप्रत्यक्ष रूप से यह भी कह दिया कि राजस्थान मंे अगर कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही तो सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री भी बनेंगे। कांग्रेस के अंदर इस प्रकार गुटबंदी हो गयी थी लेकिन राहुल गांधी ने जब गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए अशोक गहलोत को प्रभारी बना दिया और वहां उनकी कई जनसभाएं भी हुईं तो गहलोत के समर्थकों ने समझा था कि कांग्रेस हाईकमान की नजर में गहलोत की महत्ता बरकरार है। यही कारण रहा कि राजस्थान में उपचुनावों के दौरान कांग्रेस में पूरी तरह एकता दिखाई पड़ी।
इसके विपरीत भाजपा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के प्रति पार्टी के नेताओं का मतभेद बरकरार रहा। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनाव परिणाम पर सधी हुई प्रतिक्रिया जतायी है। उन्होंने जनता के फैसले को मानते हुए कहा कि हमारी सरकार राज्य के विकास के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन भाजपा की ये तीनों सीटें उसके हाथ से निकल जाना भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर सकता है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सांवरलाल जाट के निधन से अजमेर लोकसभा सीट रिक्त हुई थी जबकि महंत चांदनाथ के निधन से अलवर लोकसभा सीट और कीर्ति कुमारी के निधन से मंडलगढ़ विधानसभा सीट खाली हुई थी। लोकसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने 2014 में लगभग तीन लाख मतों से जीत दर्ज की थी। इस प्रकार दो लोकसभा सीटों की लगभग 10 विधानसभा और मंडलगढ़ को मिलकर 11 विधानसभाओं में कांग्रेस ने भाजपा को पछाड़ दिया है। यह बात भाजपा के लिए चिंतनीय है क्योंकि इसी साल वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं। वसुंधरा राजे का नेतृत्व अब भाजपा के लिए जोखिम भरा हो गया है।

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