झुग्गियों में रहने वाले में से 50% ही एलपीजी सिलेंडर का करते हैं उपयोग

झुग्गियों में रहने वाले में से 50% ही एलपीजी सिलेंडर का करते हैं उपयोग

नई दिल्ली। बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के शहरी झुग्गी बस्तियों (स्लम) में रहने वाले आधे ही परिवार एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं। कौंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा आज जारी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है।

इसमें कहा गया है कि इन शहरी झुग्गियों में 86 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन है। भारत की स्लम आबादी का एक चौथाई हिस्सा इन्हीं छह राज्यों में रहता है। इसके अलावा, ऐसे घरों में 16 प्रतिशत लोग

आज भी प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का उपयोग करते हैं। इनमें जलावन की लकड़ी, गोबर के कंडे, कृषि अपशिष्ट, चारकोल और मिट्टी का तेल शामिल है। मिट्टी का तेल इनका प्राथमिक ईंधन है और एक तिहाई से ज्यादा एलपीजी को छोड़ प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का उपयोग करते हैं। इससे घर के अंदर प्रदूषण बढ़ जाता है और घर में रहने वाले इसी प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं।

ये नतीजे सीईईडब्ल्यू के 'कुकिंग एनर्जी ऐक्सेस सर्वे 2020' पर आधारित हैं। यह सर्वेक्षण छह राज्यों के शहरी स्लम में किया गया था। इस सर्वेक्षण में 83 शहरी झुग्गी बस्ती क्षेत्रों के 656 घरों को कवर किया गया। ये झुग्गियां देश के 58 विभिन्न जिलों में हैं जो अधिसूचित और गैर अधिसूचित हैं।

सीईईडब्ल्यू के सीईओ अरुनाभा घोष ने कहा, "प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के अगले चरण के भाग के रूप में सरकार को शहरी झुग्गी बस्ती में रहने वाले उन गरीब परिवारों को लक्षित करना चाहिए जिनके पास एलपीजी कनेक्शन नहीं है। नीति निर्माताओं को तेल का विपणन करने वाली कंपनियों और वितरकों से कहना चाहिए कि एलपीजी रीफिल की होम डिलीवरी ठीक करें। इससे एलपीजी का एक्सक्लूसिव उपयोग बढ़ेगा। इसके अलावा, एलपीजी रीफिल की कीमत बढ़ रही हैं तो सरकार को पीएमयूवाई के लाभार्थियों के अलावा अन्य परिवारों को भी अधिक सब्सिडी देनी चाहिए। इस तरह, उन्हें एलपीजी का स्थायी उपयोग करने के लिए स्थायी लाभ दिया जाना चाहिए।"

इस अध्ययन से यह भी पता चला कि सिर्फ 45 प्रतिशत परिवार ही एलपीजी का उपयोग सर्दियों में प्राथमिक ईंधन के रूप में करते हैं। इसके अलावा, प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का उपयोग करने वाले तीन चौथाई परिवार घर के अंदर ही खाना पकाते हैं और साफ हवा के लिए उनके यहां चिमनी नहीं है। इससे पता चलता है कि वे बड़े पैमाने पर घरेलू वायु प्रदूषण झेलते हैं। खासतौर से महिलाएं और बच्चे। लंबे समय तक जैव ईंधन के उत्सर्जन के संपर्क में रहने वाली आबादी कोविड-19 संक्रमण का गंभीर जोखिम झेलती है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एलपीजी का उपयोग करने वाले झुग्गियों के परिवारों में 37 प्रतिशत को रीफिल की डिलीवरी घर पर नहीं मिलती है। यह एक महत्वपूर्ण कारण है जो एलपीजी के एक्सक्लूसिव उपयोग में बाधा डालता है। आधे घरों में महिलाएं तय करती हैं कि एलपीजी रीफिल कब खरीदा जाए और खरीदा जाए या नहीं।

वार्ता

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