दिनचर्या से अधिक महत्वपूर्ण है रात्रिचर्याः सिंह

दिनचर्या से अधिक महत्वपूर्ण है रात्रिचर्याः सिंह

मुजफ्फरनगर। भारतीय योग संस्थान के प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि दिनचर्या से अधिक महत्वपूर्ण रात्रिचर्या है। रात्रि में भोजन और सोने के बीच लगभग 3 घंटे का अंतर होना चाहिए। सूर्य छिपने के एक घंटे के भीतर ही भोजन कर लेना चाहिए। छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर स्वयं को निरोगी रखा जा सकता है।


जानकारी के अनुसार ग्रीन लैंड स्कूल में रात्रिचर्या विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में भारतीय योग संस्थान के प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ व सुखी जीवनयापन करना चाहता है। इसके लिए उसे अपनी दिनचर्या को सुधारना चाहिए। उन्होंने कहा कि जितना महत्व दिनचर्या का है, उससे भी कहीं अधिक महत्व रात्रिचर्या का है। उन्होंने बताया कि जब सूरज छिपता है, उस समय को संधिकाल कहते हैं। संधिकाल में ईश्वर की उपासना करना व दिनभर में किए गए कार्यों का अवलोकन करना श्रेष्ठ है। जो कार्य छूट गये हो, उन्हें अगले दिन की कार्ययोजना में शामिल करना चाहिए। सूरज छिपने के एक घंटे के अंदर रात्रि का भोजन कर लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि यदि इसके बाद भोजन करते हैं, तो भोजन ठीक से नहीं पच पाता है और पाचन नहीं होता, जिससे मोटापा, शुगर, हृदय रोग आदि घेर लेते हैं। रात्रि खाने व सोने के बीच लगभग 2 से 3 घंटे का समय होना चाहिए। रात्रि में 9 से 10 बजे के बीच सो जाना चाहिए, क्योंकि 9-10 बजे सोने वाले व्यक्ति को स्वाभाविक नींद आती है।


उन्होंने कहा कि आज हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर बीमार हो रहे हैं। खानपान, रहन-सहन अव्यवस्थित हो गया है, इससे लोग बीमार हो रहे हैं। हमें फिर से भारतीय संस्कृति की ओर लौटना होगा। योग शिक्षक यज्ञ दत्त आर्य ने कहा कि गांव में लोग प्रकृति के नजदीक रहते हैं, इसलिए वे कम बीमार पड़ते हैं। पशु-पक्षी दिन छिपते ही अपने घर आ जाते है और दिन निकलते ही कार्य में लग जाते हैं, क्योंकि वे भी प्रकृति के नियम से भलीभांति परिचित हैं। एक इंसान ही है, जो प्रकृति के नियमों का पालन नहीं कर रहा है और रोगी हो रहा है। इस अवसर पर सत्यवीर सिंह पंवार, केंद्र प्रमुख नीरज बंसल, प्रदीप शर्मा, रीतू मलिक, रजनी मलिक, अपर्णा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

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