हरियाणा सरकार महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य का रखेगी ध्यान

हरियाणा सरकार महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य का रखेगी ध्यान

चंडीगढ़। भारत में कुपोषण की स्थिति की बात करें तो वह तस्वीर बेहद भयावह है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईएमआरसी) की एक रिपोर्ट में वर्ष 2017 तक के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि पांच साल तक के बच्चों में मौत की एक बहुत बड़ी वजह कुपोषण है। अब भी कुपोषण से पांच साल से कम आयु के फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है।

अच्छा पोषण अस्तित्व, स्वास्थ्य और विकास के लिए आधारशिला है। बच्चे देश का भविष्य हैं। उन्हें स्वस्थ वयस्क बनाना हमारे समाज का कर्तव्य है। 5 अगस्त को हरियाणा सरकार ने महिलाओं व बच्चों को कुपोषण, एनीमिया से निजात दिलाने के लिए मुख्यमंत्री दूध उपहार और महिला एवं किशोरी सम्मान योजना शुरू कर दी। सीएम मनोहर लाल ने इसका शुभारंभ किया। सीएम ने सभी डीसी से कहा कि वे मुख्यमंत्री दूध उपहार योजना को फ्लैगशिप कार्यक्रमों में शामिल करें। महिलाओं और बच्चों की एनीमिया, कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए अथक प्रयास किए जाएं। सीएम ने दूध उपहार योजना के तहत तीन बच्चों और दो महिलाओं को सुगंधित दूध पाउडर व महिला एवं किशोरी सम्मान योजना के लाभार्थियों को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन के पैकेट वितरित किए।

दूध उपहार योजना के तहत 1 से 6 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती व दूध पिलाने वाली माताओं को फोर्टिफाइड सुगंधित दूध पाउडर दिया जाएगा। महिला एवं किशोरी सम्मान योजना के तहत 11 लाख 24 हजार 871 बीपीएल परिवारों की 10-45 वर्ष तक की किशोरियों व महिलाओं को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन दिए जाएंगे। सीएम ने कुपोषण और एनीमिया की समस्या पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि महिला एवं किशोरी सम्मान योजना के तहत लगभग 22.50 लाख महिलाओं और किशोरियों को एक साल तक हर महीने मुफ्त सैनिटरी नैपकिन का एक पैकेट दिया जाएगा, जिसमें 6 नैपकिन होंगे। इसके अलावा शिक्षा विभाग ने भी एक योजना तैयार की है जिसके तहत 6.50 लाख छात्राओं को हर महीने छह सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाएंगे।

वर्तमान राज्य सरकार 4-एस यानी शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वावलंबन पर ध्यान केंद्रित करते हुए काम कर रही है। आज इसमें एक और एस यानी स्वाभिमान को भी शामिल किया गया है। साथ ही महिला और बाल विकास विभाग के सुपरवाइजर के लिए ऑनलाइन स्थानांतरण नीति लांच की। मनोहर लाल ने सोनीपत जिले के प्रदीप सिंह को यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2019 में टॉप करने के लिए बधाई दी। महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री कमलेश ढांडा ने कहा कि इन दोनों योजनाओं पर हर साल 256 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ मार्च 2018 को महिला दिवस के मौके पर 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' या पोषण अभियान की शुरुआत राजस्थान के झुंझुनू में की थी। इसका मकसद भारत में खासकर महिलाओं और बच्चों को कुपोषण-मुक्त करने और उनमें एनीमिया यानी खून की कमी की समस्या दूर करना था। इस योजना का मकसद 10 करोड़ से अधिक लोगों को फायदा पहुंचाना था, लेकिन हुआ ये है कि मिजोरम, लक्षद्वीप, बिहार और हिमाचल प्रदेश के अलावा भारत की कोई भी राज्य सरकार बीते तीन वित्तीय वर्षों के दौरान जारी रकम का आधा भी खर्च नहीं कर सकी है। लांसेट जर्नल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते दो दशकों के दौरान भारत में कुपोषण और मोटापे के मामले तेजी से बढ़े हैं। महिला व बाल विकास मंत्रालय के इस फ्लैगशिप कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2022 तक गर्भवती महिलाओं, माताओं व बच्चों के पोषण की जरूरतों को पूरा करना और बच्चों व महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) को दूर करना भी है। भारत में खून की कमी या एनीमिया बहुत आम बीमारी है। देश में 6 से 59 माह की आयु वर्ग में हर दस में सात बच्चे खून की कमी का शिकार हैं। इनमें से चालीस प्रतिशत बच्चे मामूली तौर पर और तीन प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से प्रभावित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं, युवतियां व बच्चे एनीमिया से ज्यादा पीड़ित हैं। एनएफएचएस के दूसरे सर्वे से तीसरे सर्वे में एनीमिया 74 प्रतिशत से बढ़कर 79 प्रतिशत पाया गया था।

भारत में कुपोषण की स्थिति की बात करें तो वह तस्वीर बेहद भयावह है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईएमआरसी) की एक रिपोर्ट में वर्ष 2017 तक के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि पांच साल तक के बच्चों में मौत की एक बहुत बड़ी वजह कुपोषण है। अब भी कुपोषण से पांच साल से कम आयु के 68.2 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और असम के साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नगालैंड और त्रिपुरा के बच्चे कुपोषण के सबसे ज्यादा शिकार हैं।

यूनिसेफ की ओर से जारी एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि कुपोषण के मामले में दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में हालात बदतर हैं। कुपोषण की वजह से बच्चों का बचपन तो गुम हो ही रहा है। उनका भविष्य भी अनिश्चितता का शिकार है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूट्रीशन की ओर से कुपोषण की स्थिति पर हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर 21.4 फीसदी रही। इसके अलावा एनीमिया से पीड़ित और कम वजन वाले बच्चों के जन्म की तादाद भी बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1990 से 2017 के बीच पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों के मौत के मामले घटे हैं, लेकिन कुपोषण से होने वाली मौतों की तादाद में कोई खास अंतर नहीं आया है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है। ऐसे में पोषण अभियान की अहमियत काफी बढ़ जाती है लेकिन इसे जमीनी स्तर पर लागू करने में सामने आने वाली खामियों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है।

कुपोषण से जहां बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास धीमा हो जाता है, वहीं पोषण से बच्चों की बढ़त अच्छी होती है व दिमाग का विकास भी अच्छा होता है। सही पोषण से बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है और बच्चे बार-बार बीमार नहीं पड़ते। जब कोरोना जैसी महामारी फैली हुई है कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों पर यह वायरस जल्दी पकड़ बनाता है। ऐसे में पोषण की महत्ता बढ़ जाती है ऐसे में हरियाणा सरकार की योजना इस बीमारी से लड़ने में अहम भूमिका भी निभा सकती है। पोषण से ही बार-बार बीमार होने से बचा जा सकता है और कुपोषण के दायरे से मुक्ति भी पाई जा सकती है। सही पोषण से बीमारी नहीं होती, इसका असर प्रत्यक्ष रूप से जीवन पर देखने को मिलता है, उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है, बच्चों की एकाग्रता बढ़ जाती है और पढ़ाई में मन लगता है। देश का बेहतर भविष्य सुनिश्चित होता है।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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