जागरूक महिलाओं को मोदी का सलाम

जागरूक महिलाओं को मोदी का सलाम

नई दिल्ली। प्रशंसा मनोबल को बढ़ाती है, इसलिए अच्छा कार्य करने वालों को अगर हम राजपाट नहीं दे सकते तो उनकी तारीफ तो खुलकर करनी ही चाहिए। भारत में यह परम्परा राजा-महाराजाओं ने भी कायम रखी थी। राजा के दरबार में विद्वानों को नवरत्न की संज्ञा दी जाती थी। उनके सुझाव पर राजकाज किया जाता था। कालिदास जैसे महान नाटककार उज्जैयिनी के राजा विक्रमादित्य के नवरत्न थे। भारत में अब लोकतंत्र है। सरकार के मुखिया अगर अच्छे कार्य करने वाले को सम्मानित करते हैं तो इससे समाज में सकारात्मक संदेश जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत दिनों मन की बात कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव की महिला बबीता राजपूत की प्रशंसा की। बबीता ने अन्य महिलाओं की मदद से 100 फीट से बड़ी नहर बनायी है। पीएम मोदी ने बबीता जैसी जागरूक महिलाओं को सलाम किया है।

बीती 28 फरवरी 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में बबीता और उनके साथ की महिलाओं की जमकर तारीफ की है। जल संरक्षण के लिए काम करने वाली बबीता ने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर 107 फीट की बड़ी नहर बना दी वो भी पहाड़ काट कर। मोदी की पीएम के रूप में बबीता का तारीफ दूसारों को प्रेरणा दे गयी।

बबीता राजपूत खिलखिलाते हुए कहती हैं, प्रधानमंत्री ने उनके काम को सराहा, उनकी तारीफ की ये हमारे लिए गर्व की बात है। बबीता का कहना है कि जो लोग कल तक उनके इस काम का विरोध कर रहे थे वही अब आज बधाई देने आ रहे हैं। बबीता की उम्र मात्र 19 वर्ष की है।

बबीता बतातीं हैं, हमारे गांव में पानी की इतनी किल्लत है कि लड़कियां जब पांच, छह साल की होती हैं, तब से वो छोटे-छोटे बर्तन उठाकर पानी भरने में लग जाती हैं। मैंने खुद भी आठ साल की उम्र से पानी भरना शुरू कर दिया था। लेकिन आज बहुत हद तक पानी की समस्या में कमी आई है, गांव में जो हैंडपंप हैं उसका वाटर लेवल भी कम हुआ है। हालांकि आने वाली गर्मी में गांव को जल संकट का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पूरा बुंदेलखंड इलाका ही कम बारिश की वजह से पानी के लिए जूझता है। बबीता और उनके गांव की महिलाओं ने अपनी मेहनत के दम पर पहाड़ को पस्त कर दिया। बबीता बताती है, ये सब कुछ इतना आसान भी नहीं था। हम सब सोचते थे कि अगर पानी आ जाए, तो काम बन जाए, लेकिन जब जल जोड़ो अभियान वाले हमारे घर आए और उन्होंने समझाया कि ये इस तरह हो सकता है, तो लगा कि किया जा सकता है। थोड़ी बहुत दिक्कतें हुईं, लेकिन आखिर में सब साथ आ गए और काम हो गया। कोराना काल में पहाड़ काटने का काम शुरु हुआ जिसका नतीजा सबके सामने है। इसमें महिलाओं के साथ प्रवासी मजदूरों ने साथ दिया। साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज पर काम आसान होता गया।

बीए सेंकेंड इयर में पढ़ने वाली बबीता तीन बहन और एक भाई में सबसे छोटी हैं। पिता मलखान लोधी और मां तीजा लोधी की भी खुशी का ठिकाना नहीं है। उनकी बेटी की तारीफ देश के प्रधानमंत्री ने की है। बबीता कहती हैं, अब उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है वो चाहती हैं कि आसपास के इलाकों में काम करें। ताकि पानी की समस्या से इलाके को दो चार ना होना न पड़े। परमार्थ समाज सेवी संस्था ने जल जोड़ो अभियान के तहत लोगों को जागरूक करने का काम किया। संस्था के संस्थापक डॉ। संजय सिंह हैं। संजय सिंह कहते हैं कि उनके काम को देश के प्रधानमंत्री ने सराहा ये हमारे लिए गर्व की बात है। संजय कहते हैं कि ये सामूहिक प्रयास है। ये बुदेलखंड के लिए गर्व की बात है। संजय जी कहते हैं कि मन की बात में जल सहेलियों की तारीफ से उनके हौसले बुलंद है। इससे दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी।

औरतों को एकजुट करने का काम किया परमार्थ समाज सेवी संस्था ने किया। ये संस्था जल जन जोड़ो अभियान के तरह परमार्थ संस्था बुंदेलखंड के गांवों में जल स्त्रोतों को जिंदा करने का काम कर रही है। इसमें स्थानीय महिलाओं को शामिल किया जाता है। संस्था गांव में 20 या 25 महिलाओं की एक पानी पंचायत बनाती है, जिसमें अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष होते हैं। पानी पंचायत की सदस्य महिलाएं फिर गांव की बाकी महिलाओं को पानी के लिए जागरूक करती हैं, उन्हें समझाती हैं। फिर बनाई जाती हैं जल सहेलियां। इन्हीं जल सहेलियों ने पहाड़ काटा और पास के तालाब को एक तरह से जिंदा किया है। इसके पहले गांव में छोटे छोटे चैक डेम, स्टाप डेम बनाए गए। धीरे-धीरे करके गांव का वाटर लेवल बढ़ गया। तारीफ तो मिलनी ही थी। छतरपुर कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने बबीता राजपूत को बधाई दी है। साथ ही उन्होंने कहा कि ये हमारे जिले ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड के लिए गौरव की बात है। शीलेंद्र सिंह खुद जल संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम चला रहे हैं। वो कहते हैं कि छतरपुर समेत पूरा बुंदेलखंड जल संकट से जूझ रहा है। अगरौठा गांव की महिलाओं ने जो काम किया वो सराहनीय है। बबीता जिले के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी रोल मॉडल हैं। आने वाले गर्मियों के सीजन में इलाके को पानी के लिए परेशान न होना पड़े इसके लिए कलेक्टर खुद जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। वो कहते हैं कि हम सूखे पड़े जल स्त्रोतों को जिंदा करने की कोशिश में हैं। ताकि महिलाओं को पानी के लिए मीलों का सफर तय करना पड़े। जिला प्रशासन जल संरक्षण के लिए खास योजना पर काम कर रहा है साथ ही लोगों को भी जल संरक्षण के लिए जागरूक होना पड़ेगा।

ये कार्य आसान नहीं था। अगरौठा गांव और आसपास के इलाके का ज्यादातर हिस्सा पठारी क्षेत्र है। यहां लगभग 100 फीट की गहराई पर पानी मिलता है। परमार्थ समाज सेवी संस्था से जुड़े मानवेंद्र बबीता राजपूत और जल सहेलियों की तारीफ मन की बात में होने से बहुत खुश हैं। वो कहते हैं कि ये काम काफी मुश्किल था, बुंदेलखंड पैकेज के तहत इस गांव में 40 एकड़ का एक तालाब बनाया गया था, जो जंगल क्षेत्र से जुड़ा हुआ था। लेकिन इस तालाब में पानी आने का कोई रास्ता नहीं था। जंगल क्षेत्र के एक बड़े भू भाग का पानी बछेड़ी नदी से होकर निकल जाता था। अब सवाल ये था कि जंगल का पानी किसी तरह इस तालाब तक आ जाए। लेकिन ये इतना आसान नहीं था। काफी समय तक विचार विमर्श के बाद ये तय किया गया कि फिलहाल ऐसा किया जाए कि अभी जितना पानी पहाड़ पर आता है, उसे ही कम से कम तालाब तक लेकर आया जाए और फिर लोगों ने खुद अपने स्तर पर तालाब तक पानी लाने का जिम्मा उठाया और ये कर दिखाया।

आज बबीता और उसके साथ की जल सहेलियों की चर्चा पूरे देश और इलाके में हो रही है। लेकिन इसके पहले इन्होंने 6 महीने के पहले जो संघर्ष किया उसका अंदाजा किसी को नहीं होगा। बबीता और उनके साथ की महिलाओं ने बहुत संघर्ष किया, हाड़ तोड़ मेहनत की। घरों में झगड़े किए, पतियों के ताने सुने, बच्चों को धूप में अपने साथ रखा। नाजुक कही जाने वाली कलाइयों ने गेतियां चलाईं, तसले उठाए और काट दिया पहाड़। जल संकट से जूझ रहे बुंदेलखड के लिए इस तरह की जन जागरूकता चेतना बहुत जरूरी है। पानी का संकट देश के अन्य स्थानों पर भी बढ़ता जा रहा है और वहां की बबीता जैसी युवतियों को जल स्रोत खोजने पड़ेंगे।

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