जन्मदिन विशेष: लुक ईस्ट पॉलिसी के जनक पीवी नरसिंह राव

जन्मदिन विशेष:  लुक ईस्ट पॉलिसी के जनक पीवी नरसिंह राव

नई दिल्ली भारत की सियासत में मौनी बाबा के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री पामुलापति वेंकट नरसिंह राव ने ही भारत में लुक ईस्ट पाॅलिसी प्रारम्भ की थी। इसके बाद ही आसियान देशों से भारत की निकटता बढ़ी थी। उनके कार्यकाल में ही ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद ढहाई गयी थी। राजनीति में कुछ लोग उन्हें चाणक्य भी कहते थे। उनके जन्मदिन 28 जून पर बहुत सी भूली, बिसरी बातें याद आती हैं। वे ही डा. मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाकर राजनीति में ले आए थे। मुंबई में आतंकी हमले के बाद देश में तनावपूर्ण स्थिति को उन्होंने बड़ी होशियारी से नियंत्रित किया था। भारत में आर्थिक सुधार कार्यक्रम उन्हीं की सरकार के दौरान शुरू हुए जिन्हें अब तक बरकरार रखा गया है।

पीवी नरसिंहराव का जन्म 28 जून, 1921 को करीमनगर, आंध्र प्रदेश, में एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता पी. रंगा राव और माता रुक्मिनिअम्मा कृषक थे। राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर जिले के भीमदेवरापल्ली मंडल के कत्कुरू गाँव में अपने एक रिश्तेदार के घर रहकर ग्रहण की। इसके पश्चात उन्होंने ओस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद नागपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत हिस्लोप कॉलेज से लॉ की पढाई की। राव की मातृभाषा तेलुगु थी पर मराठी भाषा पर भी उनकी जोरदार पकड़ थी। आठ भारतीय भाषाओँ (तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती) के अलावा वे अंग्रेजी, फ्रांसीसी, अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने में पारंगत थे।

नरसिंह राव भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान एक सक्रिय कार्यकर्ता थे और आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। राजनीति में आने के बाद राव ने पहले आन्ध्र प्रदेश और फिर बाद में केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। आंध्र प्रदेश सरकार में सन 1962 से 64 तक वे कानून एवं सूचना मंत्री, सन 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, सन 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री और सन 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। नरसिंह राव सन 1971 से 1973 तक आंध्र प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। वे सन 1957 से लेकर सन 1977 तक आंध्र प्रदेश विधानसभा और सन 1977 से 1984 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक सीट से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए।

राज्य स्तर पर विभिन्न विभागों और मंत्रालयों में अनुभव प्राप्त राव ने केंद्र सरकार में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। राजनीति में उनके विविध अनुभव के कारण ही उन्हें केंद्र सरकार में गृह, रक्षा और विदेश मंत्रालय जैसे मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी गयी। नरसिंह राव 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में भी केंद्र सरकार में कार्य किया। ऐसा माना जाता है की सन 1982 में ज्ञानी जैल सिंह के साथ-साथ राष्ट्रपति पद के लिए उनके नाम पर भी विचार किया गया था।

सन 1991 के आस-पास राव ने सक्रीय राजनीति से लगभग संन्यास सा ले लिया था पर राजीव गाँधी की हत्या के बाद उनकी किस्मत पलटी और वे एकाएक भारतीय राजनीति के केंद्रबिंदु बन गए। सन 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सबसे अधिक सीटों पर विजय हासिल की पर उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका था। इसके बाद नरसिंह राव को अल्पमत सरकार चलने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। इस प्रकार राव नेहरु-गाँधी परिवार के बाहर पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे पांच साल प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे पहले दक्षिण-भारतीय प्रधानमंत्री भी थे। उन्होंने परंपरा से हटते हुए एक गैर-राजनैतिक मनमोहन सिंह को देश का वित्त मंत्री बनाया। उन्होंने विपक्षी दल के सुब्रमण्यम स्वामी को 'श्रमिक मापदंड और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार' आयोग का अध्यक्ष बनाया, यह भारतीय राजनीति के इतिहास में पहला अवसर था जब विपक्ष के किसी सदस्य को कैबिनेट स्तर का पद दिया गया हो।

सन् 1991 में जब नरसिंह राव भारत के प्रधानमंत्री बने उस समय देश की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब थी। उनके सामने बहुत बड़ी चुनौती थी पर उन्होंने इस गंभीर परिस्थिति का हल अपनी सूझ-बूझ के साथ निकला। उन्होंने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी और देश को एक नए आर्थिक दौर में ले गए। उन्होंने विदेशी निवेश, पूंजी बाजार, मौजूदा व्यापार व्यवस्था और घरेलु व्यापार के क्षेत्र में सुधार लागू किये। उनकी सरकार का लक्ष्य था मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण, सार्वजानिक क्षेत्र का निजीकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना। उन्होंने औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रणाली में भी सुधार करते हुए मात्र 18 महत्वपूर्ण उद्योगों को इसके अन्दर रखा। उनके आर्थिक सुधारों का ही नतीजा था कि देश में विदेशी निवेश बहुत तेजी से बढ़ा। राव के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रिय सुरक्षा और विदेशी नीति के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण बातें हुईं। इस दौरान मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम को गति मिली जिसके परिणामस्वरूप सन 1998 में वाजपेयी सरकार परमाणु परिक्षण करने में सफल रही। उन्होंने पाकिस्तान और चीन को ध्यान में रखते हुए देश की सैन्य ताकत में वृद्धि की और पंजाब में आतंकवाद का सफाया भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ। उन्होंने आतंकवाद और आतंकवादियों द्वारा अपहरण की घटनाओं का सामना प्रभावशाली तरीके से किया।

विदेश नीति के क्षेत्र में भी उन्होंने पश्चिमी यूरोप, चीन और अमेरिका से सम्बन्ध सुधरने की दिशा में प्रयास किया और भारत-इजराइल सम्बन्ध को एक नयी दिशा दी। इसी दौरान इजराइल भारत की राजधानी दिल्ली में अपना दूतावास खोला। उन्होंने 'लुक ईस्ट' नीति प्रारंभ की जिसके फलस्वरूप आसियान देशों से भारत की निकटता बढ़ी। सन् 1993 के बॉम्बे बम धमाकों के बाद राव के संकट प्रबंधन की बहुत तारीफ हुई।

नरसिंह राव के कार्यकाल की एक और महत्वपूर्ण घटना थी बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना। उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर स्थित बाबरी मस्जिद (जिसे प्रथम मुगल शाशक बाबर ने बनवाया था) को हजारों लोगों की एक भीड़ ने 6 दिसम्बर 1992 को ढहा दिया। हिन्दू मान्यता के अनुसार इस जगह भगवान् राम का जन्म हुआ था। अब वहां भव्य राम मंदिर बनाने का आदेश देश की सबसे बड़ी अदालत ने दिया है।

~केशव कांत कटारा (हिफी)

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