35A आर्टिकल क्या है ?

35A आर्टिकल क्या है ?
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भारतीय संविधान का आर्टिकल 35A धारा 370 का ही हिस्सा है |
जम्मू-कश्मीर में स्थानीय नागरिकों को कुछ विशेषाधिकार देता है| इसमें उनके नागरिकता अधिकार, संपत्ति अधिकार और वैवाहिक अधिकार शामिल हैं| तो चलिए जानते हैं आर्टिकल 35A के बारे में|


भारतीय संविधान के आर्टिकल 35A का इतिहास


14 मई 1954 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान में आर्टिकल 35A को जोड़ा था |
आर्टिकल 35A भारतीय संविधान की धारा 370 का ही एक हिस्सा है|


1952 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने मिलकर आर्टिकल 35A लाने का विचार किया था|


1954 में जवाहरलाल नेहरू के सुझाव पर ही राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने इसे धारा 370 से जोड़ा|


संसद में आए बिना ही लागू हुआ आर्टिकल 35A
इसे लागू करने के लिए भारतीय संसद में किसी प्रकार का संशोधन या बिल नहीं लाया गया था|


धारा 370 के तहत मिले ख़ास अधिकारों और जम्मू-कश्मीर की सरकार के समर्थन के बाद आर्टिकल 35A धारा 370 का हिस्सा बना|


भारतीय संविधान की धारा 370(1) (d) के तहत राष्ट्रपति को संविधान में अपने मुताबिक बदलाव करने का हक मिलता है|


इसके कारण ही बिना किसी संसद बिल के आर्टिकल 35A संविधान में जोड़ा गया|


आर्टिकल 35A के विशेषाधिकार


आर्टिकल 35A जम्मू कश्मीर की विधान सभा का एक अधिकार है। जिसके तहत वह स्थानीय निवासियों, जो हैं, या होंगे, की परिभाषा तय कर सकते हैं|


जम्मू-कश्मीर की सरकार शरणार्थियों और दूसरे राज्यों के नागरिकों को अपने क्षेत्र में अपने मुताबिक सुविधाएं मुहैया करवा सकती हैं|


आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को बाकी भारतीय नागरिकों से अलग बनाता है|


सेक्शन 35 A के अनुसार :भारतीय संविधान का कोई मौजूदा कानून जम्मू और कश्मीर राज्य में लागू नहीं है| स्थायी निवासियों और उनके अधिकारों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार

:(a) जम्मू और कश्मीर राज्य के स्थायी निवासी, जो हैं, या होंगे, के वर्गों को परिभाषित करना; या(b) ऐसे स्थायी निवासियों को कोई विशेष अधिकार और विशेषाधिकार देना या बाकी लोगों पर इन अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना
(i) राज्य सरकार के अधीन रोजगार;
(ii) राज्य में अचल संपत्ति का अधिग्रहण;
(iii) राज्य में स्थाई रुप से रहने के लिए या
(iv) छात्रवृत्ति और राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली किसी भी प्रकार की सहायता
सिर्फ राज्य सरकार को है।

अनुच्छेद 370


17 अक्तूबर, 1949 को संविधान में शामिल, अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को छूट देता है (केवल अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) और राज्य को अपने संविधान का मसौदा तैयार करने की अनुमति देता है।

यहतब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई थी जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान हासिल नहीं कर लिया जाता।

यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता है और इसे अपने स्थायी निवासियों को कुछ विशेषाधिकार देने की अनुमति देता है।

राज्यकी सहमति के बिना आंतरिक अशांति के आधार पर राज्य में आपातकालीन प्रावधान पर लागू नहीं होते हैं|

राज्यका नाम और सीमाओं को इसकी विधायिका की सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।

राज्यका अपना अलग संविधान, एक अलग ध्वज और एक अलग दंड संहिता (रणबीर दंड संहिता) है।

राज्यविधानसभा की अवधि छह साल है, जबकि अन्य राज्यों में यह अवधि पाँच साल है।

भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में जम्मू-कश्मीर के संबंध में कानून पारित कर सकती है। संघ द्वारा बनाया गया कोई अन्य कानून केवल राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब राज्य विधानसभा की सहमति हो।

राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि इस अनुच्छेद को तब तक कार्यान्वित नहीं किया जा सकेगा जब तक कि राज्य विधानसभा इसकी सिफारिश नहीं कर देती है|

अनुच्छेद 35 A



अनुच्छेद 35A, जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और उन स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता है।
इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता पर इस आधार पर बहस की जाती है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि, इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है।


अनुच्छेद 35A और 370 को रद्द करने से संबंधित मुद्दे



वर्तमान में इन अनुच्छेदों से मिले अधिकारों को कश्मीरियों द्वारा धारित एकमात्र महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता के रूप में माना जाता है। अत: इससे छेड़छाड़ से व्यापक प्रतिक्रिया की संभावना है।
यदि अनुच्छेद 35A को संवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया जाता है तो जम्मू-कश्मीर 1954 के पूर्व की स्थिति में वापस आ जाएगा। उस स्थिति में केंद्र सरकार की राज्य के भीतर रक्षा, विदेश मामलों और संचार से संबंधित शक्तियाँ समाप्त हो जाएंगी।
यह भी तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को दी गई कई प्रकार की स्वायत्तता वैसे भी कम हो गई है और संघ के अधिकांश कानून जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी लागू होते हैं।

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