भारत के राष्ट्रपति का पाइकअ विद्रोह स्मारक स्थल के शिलान्यास समारोह में सम्बोधन

भारत के राष्ट्रपति का पाइकअ विद्रोह स्मारक स्थल के शिलान्यास समारोह में सम्बोधन
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नई दिल्ली। खोरधा की इस पवित्र धरती से, मैं पाइकअ विद्रोह के वीर-बलिदानियों को नमन करता हूँ। भगवान जगन्नाथ का यह क्षेत्र भक्ति और क्रान्ति का अपूर्व संगम प्रस्तुत करता है। यहाँ के पाइकअ विद्रोहियों ने अन्याय के विरुद्ध जब शस्त्र उठाया तो उनका युद्धघोष था 'जय जगन्नाथ'।

इस वीर भूमि में पाइकअ विद्रोह के सेनानियों के स्मारक-स्थल की भूमि पूजा और शिलान्यास का अवसर प्रदान करने के लिए मैं इस समारोह के आयोजकों को धन्यवाद देता हूँ।

हमारे इतिहास के गौरवशाली अध्यायों से देशवासियों को परिचित कराना, खासकर युवा पीढ़ी को पूर्वजों के बलिदान का महत्व समझाना, राष्ट्र-निर्माण का एक अहम हिस्सा है। यहाँ जिस स्मारक का निर्माण होगा, वह पाइकअ शूरवीरों की गाथा को भविष्य के लिए संजोकर रखेगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए, प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में लगभग 10 एकड़ के इस पाइकअ विद्रोह स्मारक परिसर को एक तीर्थ-स्थल की महिमा प्राप्त होगी।

इस क्षेत्र के खेतिहर योद्धाओं को पाइकअ कहा जाता था। वे ऐसे किसान थे जिनमें युद्ध करने का कौशल और साहस होता था। उन्हें राजा द्वारा करमुक्त जमीन दी जाती थी जिस पर खेती करके वे अपनी आजीविका चलाते थे। 19वीं सदी के आरंभ में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया और उनकी मालगुजारी व्यवस्था का बोझ यहाँ के किसानों पर भी पड़ने लगा। स्वाभिमानी पाइकों ने विद्रोह कर दिया। खोरधा विद्रोह के महानायक जयी राजगुरु को बेरहमी से फांसी दी गयी। आज उस बलिदान के क्षेत्र में उपस्थित होकर, और उन शहीदों को याद करके हम सबका रोमांचित होना स्वाभाविक है।

जयी राजगुरु के वीरगति प्राप्त करने के बाद, अंग्रेजों ने सोचा होगा कि पाइकों के विद्रोह को उन्होंने कुचल दिया। परंतु विद्रोह की आग सुलगती रही जिसे बक्शी जगबंधु बिद्याधर ने अपने साहसी नेतृत्व से पाइकअ विद्रोह की ज्वाला का रूप दिया। 1817 में कंध जनजाति के लोगों ने बक्शी जगबंधु की सेना के साथ मिलकर अंग्रेजों पर भीषण हमला किया।

अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध लड़ने वाली सेनाओं में ओडिशा के इस क्षेत्र के सभी वर्गों के लोग जुड़ गए और पाइकअ विद्रोहियों का समर्थन किया। जय जगन्नाथ का घोष करते हुये भूस्वामी, किसान, आदिवासी, शिल्पकार, जुलाहे, कारीगर और मजदूर, सभी ने पाइकअ विद्रोहियों का साथ दिया और इस तरह वह विद्रोह एक व्यापक आंदोलन बन गया।

यद्यपि अंग्रेज़ उस आंदोलन को दबाने में सफल रहे और बक्शी जगबंधु कारावास में शहीद हुए लेकिन वह विद्रोह एक सुसंगठित आंदोलन के रूप में अमर हो गया। सन 2017 में उस आंदोलन के 200 साल पूरा होने के उपलक्ष में भारत सरकार ने बड़े पैमाने पर अनेक समारोह किए।

पाइकअ विद्रोह के विषय में जागरूकता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। पाइकअ विद्रोह के विषय पर अध्ययन और अनुसंधान करने के लिए उत्कल विश्वविद्यालय में एक विशेष पीठ की स्थापना की गई है। अभी आप सबने आंध्र प्रदेश के राज्यपाल हरिचन्दन का ज्ञान वर्धक सम्बोधन सुना। उन्होंने पाइकअ विद्रोह पर गहरा अध्ययन किया है और अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं। जरूरत इस बात की है कि भारतीय इतिहास की गौरवशाली उपलब्धियों के विषय में इस प्रकार के अध्ययन और प्रकाशन निरंतर होते रहें।

इस स्मारक के बन जाने पर यहाँ देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों और विशेषकर युवाओं को पाइकअ विद्रोह से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होगी। पाइकअ विद्रोह स्मारक का निर्माण करने में, केंद्र और राज्य सरकार के प्रयास सराहनीय हैं। मुझे प्रसन्नता है कि राज्यपाल प्रोफेसर गणेशी लाल जी का अनुभवी मार्गदर्शन ओडिशा राज्य की सरकार और जनता को प्राप्त हो रहा है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने और केंद्र सरकार में मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने इस स्मारक के निर्माण को विशेष महत्व दिया है। इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ।

बहनो और भाइयो,

उत्कल जननी की इस पवित्र भूमि में वह शक्ति है जिसने चंडाशोक को धर्माशोक बना दिया था। ओडिशा के लोग प्राचीन काल से ही अनेक देशों में अपनी सभ्यता, दर्शन कला और संस्कृति की सौगात लेकर जाते रहे हैं। कला के उत्कर्ष के इस उत्कल क्षेत्र ने पूरे विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया है। मैंने अपनी विदेश यात्राओं के दौरान विभिन्न देशों में रहने वाले ओडिशा के प्रतिभाशाली समुदायों की सफलता को देखा है।

ओडिशा की सभ्यता और संस्कृति ने सदियों पहले कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण संभव किया। इस समृद्ध परंपरा के विषय में लोगों को जागरूक बनाने से उन्हें प्रेरणा मिलेगी और वे आत्म-गौरव की भावना के साथ ओडिशा और भारत के भविष्य के निर्माण के लिए उत्साहित होकर कार्य करेंगे।

प्रकृति ने ओडिशा को अपना असीम वरदान दिया है। शस्य श्यामला उपजाऊ धरती, हिलोरें भरता विशाल समुद्र, खनिज पदार्थों से समृद्ध रत्न-गर्भा भूमि, प्रचुर वन संपदा से भरपूर क्षेत्र, आकर्षक पर्वतमाला और इन सबसे बढ़कर प्रतिभाशाली और मेहनती लोगों का यह राज्य विज्ञान से लेकर पर्यटन तक सभी क्षेत्रों में अग्रणी स्थान प्राप्त करने की क्षमता रखता है।

पर्यावरण का संरक्षण करते हुए प्राकृतिक संपदाओं का समुचित उपयोग करने के अवसर ओडिशा में हैं। परम्पराओं का सम्मान करते हुए जन-जातियों को आधुनिक विकास से जोड़ने और समावेशी विकास को बल देने का कार्य ओडिशा के समग्र विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

भारत सरकार ने देश के पूर्वी क्षेत्र के विकास को विशेष प्राथमिकता दी है। ओडिशा में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में भारी निवेश किया जा रहा है। ओडिशा में स्थापित आधुनिक शिक्षा के अनेक संस्थान देश की युवा शक्ति को 21वीं सदी की चुनौतियों और अवसरों के लिए तैयार कर रहे हैं।

उत्कल-गौरव मधुसूदन दास, उत्कल-मणि गोपबंधु दास से लेकर आधुनिक ओडिशा के निर्माता बीजू बाबू ने ओडिशा के लोगों के विकास के लिए अमूल्य प्रयास किए थे। उनके सपनों के ओडिशा का निर्माण करके ही हम सब, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों के भारत तथा नए भारत का निर्माण करने में सफल होंगे।

हम सबको यह सदैव ध्यान रखना है कि भारत के गौरव और देश की स्वाधीनता के लिए अनगिनत लोगों ने कुर्बानी दी है। मुझे विश्वास है कि आधुनिक विश्व समुदाय में भारत को अग्रणी स्थान दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करके, उन बलिदानी वीरों के प्रति सही मायनों में हम सब अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।

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