आतंकवाद और नक्सलवाद मानव अधिकार के सबसे बड़े दुश्मन हैं : गृह मंत्री
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार संकुचित धारणा से ऊपर उठकर 'वसुधैव कुटुंबकम' और 'सबका साथ सबका विकास' जैसे सूत्र लेकर आगे बढ़ रही है: अमित शाह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कल्याणकारी नीतियों से देश के लगभग 70 करोड़ लोगों को बिजली, गैस, शौचालय और स्वास्थ्य बीमा देकर उनके मानवाधिकार की रक्षा की है: गृह मंत्री
महात्मा गांधी के 'वैष्णव जन तो तेने कहिए...' भजन के एक-एक वाक्य से बड़ा मानवाधिकार के लिए कोई चार्टर हो ही नहीं सकता: अमित शाह
आतंकवाद और नक्सलवाद मानव अधिकार के सबसे बड़े दुश्मन हैं; इनके प्रति भारत सरकार शून्य सहिष्णुता की नीति पर अडिग है: गृह मंत्री
गृह मंत्री ने मानव अधिकारों के प्रति एक 'भारतीय दृष्टिकोण' रखते हुए अधिकारों के उलंघन को उजागर करने और शोध के आधार पर मानव अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार का मार्गदर्शन करने की अपील की
नई दिल्ली । केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के 26वें स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर अपना संबोधन दिया। मंच पर आयोग के अध्यक्ष, पूर्व न्यायाधीश एच एल दत्तू भी उपस्थित रहे।
भारत की सामाजिक संरचना में मानव अधिकारों की वर्तमान स्थिति पर अपने विचार रखते हुए शाह ने कहा कि मानव अधिकार के मामले में भारत और विश्व की मान्यताएं एवं परिस्थितियां बहुत भिन्न है। विश्व के मानव अधिकार मानकों पर भारत का आंकलन करना सही नहीं होगा। भारत की सामाजिक संरचना एवं पारिवारिक व्यवस्था में मानव अधिकार की रक्षा समाहित हैं, चाहे वे बच्चों के हो, महिलाओं के हो या पिछड़ी वर्ग के लोगों के हो। किसी भी गांव या शहर में देखें तो बिना किसी कानून की आवश्यकता के मानव अधिकारों की रक्षा करने की संरचना और संस्थाएं स्थापित मिलेंगी।
शाह का मानना है कि विश्व में मानवाधिकार के क्षेत्र में सब से परिपूर्ण काम करने वाले देशों में से भारत एक देश बन सकता है। उन्होंने कहा कि कायदे-कानून की परिधि से ऊपर उठकर, विभिन्न क्षेत्रों में स्वतह ही जो लोग अपना दायित्व समझ कर मानव अधिकार का रक्षण कर रहे हैं, उन्हें एक प्रक्रिया के साथ जोड़ना ज़रूरी है। ऐसे लोगों को मंच प्रदान करने का दायित्व मानव अधिकार आयोग का है।
मानव अधिकारों का संकुचित अर्थ निकालने का विरोध करते हुए शाह ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि हर एक नागरिक को संविधान प्रदत्त रक्षा मिलनी ही चाहिए, परंतु, इस विषय के कई ऐसे आयाम और दृष्टिकोण हैं जिनके बारे में गहनता से चिंतन करने की आवश्यकता है, ताकि उनका दुरुपयोग ना हो। भारतीय समाज सदियों से केवल अपने परिवार के लिए सोचने वाली संकुचित धारणा से ऊपर उठकर 'वसुधैव कुटुंबकम सूत्र' का पाठ विश्व को पढ़ाता आया है। इस सूत्र में मानव अधिकार का विषय समाहित है। आज हमें इस सूत्र को एक वैश्विक मंच प्रदान करने की आवश्यकता है। भारत के कई संतों ने अपने जीवन के कार्यकलापों के द्वारा मानव अधिकार के संरक्षण के लिए काम किया है और साहित्य की रचना की है। आज की परिस्थिति में इस साहित्य का महत्व किसी भी मानव अधिकार कानून से ऊपर है।
Union Home Minister Shri @AmitShah addresses the 26th Foundation Day celebrations of National Human Rights Commission in Delhi. https://t.co/kvXgB4TyOL
— गृहमंत्री कार्यालय, HMO India (@HMOIndia) October 12, 2019
महात्मा गांधी की डेढ़ सौवीं जयंती वर्ष में उनके सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए श्री शाह ने कहा कि गांधीजी के सिद्धांत आज भी शाश्वत और प्रासंगिक हैं, जिन्हें विश्व के सामने रखा जाना बहुत आवश्यक है। उनके भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिये, पीड़ पराई जाने रे' का उल्लेख करते हुए श्री शाह ने कहा कि आज भी वैश्विक स्तर किसी भी मानव अधिकार के चार्टर से ऊपर है।
शाह ने कहा की मानवाधिकार के क्षेत्र में आज विश्व स्तर पर कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिनमें सबसे बड़ी चुनौती गरीबी और हिंसा के बढ़ते स्तर से है। उनका मानना है कि भारत में मानव अधिकार के सभी हित धारक, जैसे कि सरकार, संसद, न्यायपालिका, मीडिया, सिविल सोसाइटी, आदि सब को गरीबी उन्मूलन के लिए कार्य करना अत्यंत आवश्यक है। नरेंद्र मोदी सरकार ने 'सबका साथ सबका विकास' की धारणा के साथ गरीबी उन्मूलन के लिए लड़ाई लड़ने का एक अद्वितीय प्रयास किया है और सफलतापूर्वक परिणाम भी प्राप्त किए हैं।
गृह मंत्री ने पूछा कि आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में अगर 5 करोड़ लोग बिना घर के जी रहे थे या 3.5 करोड़ लोग ऐसे थे जिनके घर में बिजली नहीं थी या वे करोड़ों महिलाएं जिनके घर में गैस चूल्हा नहीं था और धुएं से उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा था, तो क्या यह उनके मानव अधिकार का उल्लंघन नहीं है? गृह मंत्री ने स्वास्थ्य सुविधाओं और शौचालयों के अभाव में करोड़ों लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कहा कि मोदी सरकार के आने के बाद ये सारी सुविधाएं भारत के करोड़ों नागरिकों को मिलीं। उन्होंने कहा कि मानव अधिकार की रक्षा हेतु भारत सरकार की इन पहलों और उपलब्धियों को विश्व पटल पर रखने की आवश्यकता है।
आतंकवाद और नक्सलवाद को मानव अधिकार का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए गृह मंत्री ने कहा कि जहां एक तरफ पुलिस अत्याचार से हुई हिरासत में मौत के खिलाफ भारत सरकार की शून्य सहिष्णुता की नीति है, वहीं आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रति भी भारत सरकार शून्य सहिष्णुता की नीति पर अडिग है। आतंकवाद से पीड़ित परिवारों का उल्लेख करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि अकेले कश्मीर में पिछले 30 सालों में 40000 से ज्यादा लोगों की मौत आतंकवाद के कारण हुई है। नक्सलवाद के चलते, देश में कई जिले विकास से वंचित रह गए, कई लोगों की जानें गई। क्या यह सब मानव अधिकारों का हनन नहीं है, गृह मंत्री ने पूछा।
"मानव अधिकार की रक्षा का दायित्व सरकार का है", यह कहते हुए श्री शाह ने कहा कि भारत के संविधान में मानव अधिकारों की रक्षा समाहित है और सरकार इसे सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है। जिस प्रकार भारत के संविधान और उसके निर्माताओं की चर्चाओं में मानव अधिकारों की रक्षा के महत्व दिया और इसके लिए व्यवस्था को स्थापित किया, एसा किसी और देश के संविधान में नहीं पाया जाता। श्री शाह ने हाल ही में संसद द्वारा किए गए मानव अधिकार अधिनियम में संशोधन का हवाला देते हुए कहा कि अब भारत का मानव अधिकार कानून पहले से कहीं अधिक समावेशी बन गया है। उन्होंने मानवाधिकार आयोग के 26 साल के सफर में आई चुनौतियों व उपलब्धियों पर चिंतन कर मानव अधिकार कानून को और सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
शाह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकारों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए जो मानक बनाए गए हैं, वे भारत जैसे देश के लिए पर्याप्त नहीं है। इनके बंधन और दायरों में रहकर अगर हम मानव अधिकार पर विचार करेंगे तो हमारे देश की समस्याओं को समाप्त करने में शायद ही सफल हो पाएंगे। हमें इन मानकों के दायरे से ऊपर उठकर के नए दृष्टिकोण से अपने देश की समस्याओं को समझ कर उनका समाधान ढूंढना होगा। उन्होंने कहा कि मानव अधिकार आयोग देश के नागरिकों के अधिकारों के प्रति सजग भी है और उनका प्रहरी भी है। गृह मंत्री ने आयोग को अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों द्वारा 'ए' स्टेटस प्रदान किये जाने पर बधाई दी।
मानव अधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में कानून के होने और सरकार के अपने दायित्व पर बात करते हुए श्री शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने नागरिकों के मानव अधिकारों के सजग प्रहरी के रूप में कार्य कर रही है और ऐसा प्रयास कर रही है कि मानव अधिकार कानून के उपयोग के बिना ही अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके। उनका मानना है कि कानून होना अच्छी बात है परंतु जब सरकार स्वयं ही आगे बढ़कर मानव अधिकारों की रक्षा के लिए काम करें इससे उत्तम कुछ नहीं हो सकता। गृह मंत्री ने फिर एक बार सभी हित धारकों से मानव अधिकारों के प्रति एक 'भारतीय दृष्टिकोण' रखते हुए अधिकारों के उलंघन को उजागर करने और शोध के आधार पर मानव अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार का मार्गदर्शन करने की अपील की। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए गृह मंत्री ने कहा, "आने वाले दिनों में मानव अधिकारों के एक नए दृष्टिकोण से हम भारत को विश्व पटल पर सर्वप्रथम देश के रूप में खड़ा करेंगे, जहां किसी प्रकार के मानव अधिकार के उल्लंघन की संभावना नहीं होगी। मोदी सरकार इस उद्देश्य के लिए कटिबद्ध है।