रेड डॉट कैमपेन को पीरियड के दर्द को साझा करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा मंच बनाना है उद्देश्य

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नई दिल्ली। चाहे दफ्तर हो या घर। दुनिया भर में हुए अध्ययन से पता चला है कि पीरियड यानी मासिक के दर्द से ज्यादातर महिलाओं की उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। भारत जैसे देश में जहां एक विषय के रूप में माहवारी एक सामाजिक कलंक, अभिशाप और रूढ़िवादी मानसिकता से घिरा हुआ है। मासिक के दर्द और उससे होने वाली परेशानियों को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता है। इससे उनके काम के समय का बड़ा हिस्सा तनावपूर्ण और तकलीफदेह होता है। महिला स्वास्थ्य और हाईजीन सशक्तिकरण को 21वीं सदी का सबसे बड़ा सामाजिक आंदोलन बनाने की मुहिम में आईआईटी दिल्ली इनक्यूबेटेड अग्रणी फेमिनिन हाईजीन ब्रांड सैनफी ने रेड डॉट कैम्पेन की शुरुआत की है। इस अभियान का मकसद पीरियड के दौरान महिलाओं के जीवन में होने वाली तकलीफ के प्रति जागरुकता पैदा करना है। इस अभियान मकसद उन्हें बताना है कि कैसे यह उन्हें जीवन के भिन्न क्षेत्र में नई उंचाइयों तक पहुंचने से रोकता है।

पीरियड के दर्द से संबंधित चर्चा की शुरुआत और महिलाएं पीरियड को सबसे अच्छे तरीके से अपनाएं इसके लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से रेड डॉट कैमपेन ने महिलाओं को आमंत्रित किया है कि वे सोशल मीडिया पर अपनी फोटो पोस्ट करें जिसमें हाथों पर लाल निशान या रेड डॉट हो। इसे दो मित्रों या परिवार के सदस्यों को टैग करना है। सैनफी ने जाने.माने एनजीओ पिंकीशी और द बेटर इंडिया से साझेदारी की है ताकि पीरियड की तकलीफ से जुड़ी चर्चा आम हो सके। महिलाएं periodpain.in पर लॉग इन करके इस अभियान से जुड़ सकती हैं।

स्थिति की गंभीरता और एक जन अभियान की आवश्यकता की चर्चा करते हुए सैनफी के सीईओ और निदेशक अर्चित अग्रवाल ने कहा कि पीरियड का दर्द मासिक चक्र का आम और सामान्य हिस्सा है। चिकित्सकों ने भी पीरियड के मरोड़ को बहुत बुरा और हार्ट अटैक जैसा कहा है। अक्सर इसे कम आंका जाता है या नजरअंदाज किया जाता है। इससे काम के दौरान उत्पादकता घटती है और महिलाओं की दैनिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। महिलाएं परिवार की रीढ़ होती हैं इसलिए उन्हें सक्रिय रहना अनिवार्य है। आज वे सक्रियता से राष्ट्रनिर्माण में भागीदारी कर रही हैं। देश के सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकास में उनके योगदान में वृद्धि करने के लिए समाज को पीरियड की तकलीफ को समझने की जरूरत है ताकि देश के बेहतर भविष्य में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका अब इससे और प्रतिबंधित न हो। उन्हांेने कहा कि अगर पीरियड की तकलीफ को समझने वाली सभी महिलाएं रेड डॉट कैम्पेन को सहयोग करेंगी, तो मुमकिन है कि हम लोगों को इस समस्या की विशालता से अवगत करा पाएंगे।श्

रेडडॉट कैम्पेन और पीरियड से जुड़े मुद्दों को संबोधित करते हुए सैन्फी के सीओओ और निदेशक हैरी सेहरावत ने कहा कि स्वास्थ्य से संबंधित उनके ज्यादातर सवाल अस्पष्ट और अनसुलझे रह जाते हैं। उन्हें अपना दर्द साझा करने और स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए किसी की आवश्यकता होती है। समय की आवश्यकता है कि महिला के जीवन में पीरियड के दर्द संबंधित योजनाओं को लेकर अच्छी जागरूकता तैयार की जाए। प्राकृतिक उत्पाद और समाधान पीरियड के दर्द का समय पर उपयुक्त प्रबंधन महिला के जीवन में अजूबे कर सकता है। इससे काम करने की उनकी उत्पादकता के साथ.साथ जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ सकती है। रेड डॉट कैम्पेन मनःस्थिति बदलने और मासिक के दौरान होने वाले दर्द को सही ढंग से समझने तथा इस बारे में समाज को शिक्षित करने की एक कोशिश है। रेड डॉट कैम्पेन इस विश्वास को चुनौती देना चाहता है कि गंभीर या सामान्य पारियड दर्द सहना महिलाओं की नियति है।श्

अमेरिकन ऐकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियन्स के मुताबिक 20 प्रतिशत तक महिलाएं मासिक के दौरान मरोड़ और दर्द सहती हैं, जो इतना गंभीर होता है कि उनके दैनिक जीवन को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त होता है। दुर्भाग्य से मासिक के उम्र वाली ज्यादातर महिलाएं चुप.चाप इस तकलीफ को झेलती हैं और इसे अपनी नीयति या किस्मत मानती हैं। उन्हांेने बताया कि रेड डॉट कैमपेन का लक्ष्य एक सामाजिक आंदोलन शुरू करना है जिससे मासिक के बारे में खुलकर बातें हो सकें और यह पीरियड की तकलीफ से जुड़ी कहानियों को साझा करने का दुनिया का सबसे बड़ा मंच बने।

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