टैगोर सांस्‍कृतिक सद्भावना पुरस्‍कार प्रदान करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के भाषण का मूल पाठ

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नई दिल्ली। टैगोर सांस्कृतिक सद्भावना पुस्कार के सभी विजेताओं को मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं राजकुमार सिंहाजित सिंह', राम सुतार और छायानट का सम्मान, कला का सम्मान है, संस्कृति का सम्मान है और ज्ञान का सम्मान है।

संस्कृति किसी भी राष्ट्र की प्राणवायु होती है। इसी से राष्ट्र की पहचान और अस्तित्व को शक्ति मिलती है। किसी भी राष्ट्र का सम्मान और उसकी आयु भी संस्कृति की परिपक्वता और सांस्कृतिक जड़ों की मजबूती से ही तय होती है।

भारत के पास तो हज़ारों वर्षों का एक सांस्कृतिक विस्तार है, जिसने गुलामी के लंबे कालखंड का, बाहरी आक्रमण का भी बिना प्रभावित हुए सामना किया है। ये अगर संभव हो पाया है तो उसके पीछे स्वामी विवेकानंद और गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर जैसे अनेक मनीषियों का योगदान रहा है।

भारत का सांस्कृतिक सामर्थ्य एक रंग-बिरंगी माला जैसा है, जिसको उसके अलग-अलग मनकों के अलग-अलग रंग शक्ति देते हैं। कोस-कोस पर बदले पानी चार कोस पर बानी यही भारत को बहुरंगी और बहुआयामी बनाते हैं।

भारत की इसी शक्ति को गुरुदेव ने समझा और रबिंद्र संगीत में इस विविधता को समेटा। रबिंद्र संगीत में पूरे भारत के रंग हैं और ये भाषा के बंधन से भी परे है।

गुरुदेव, लोक-कला और पारंपरिक नृत्‍यों को देश की एक संस्‍कृति का परिचायक मानते थे। मणिपुरी नृत्य के शिक्षक नबाकुमार सिंहा इनसे वो कितना प्रभावित थे, ये शांतिनिकेतन में जाकर पता चलता है।

आज टैगोर सम्मान से सम्मानित राजकुमार सिंहाजित सिंह इसी समृद्ध संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजकुमार जी मणिपुरी नृत्‍य के प्रचार-प्रसार के प्रति समर्पित रहे हैं। उन्होंने मणिपुरी नृत्‍य परंपरा के माध्‍यम से सांस्‍कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाई है। आशा है वे भविष्‍य में भी इस क्षेत्र में अपना योगदान देते रहेंगे। इस पुरस्‍कार के लिए मेरी ओर से उनको बहुत-बहुत बधाई।

साथियों, गुरुदेव हर सीमा से परे थे। वो प्रकृति और मानवता के प्रति समर्पित थे। गुरुदेव पूरे विश्व को अपना घर मानते थे, तो दुनिया ने भी उन्हें उतना ही अपनापन दिया। आज भी अफगानी लोगों की जुबान पर काबुली वाला की कहानी है। आज भी दुनिया के अनेक शहरों में उनके नाम से जुड़ी स्मृतियां हैं, अनेक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में उनके नाम पर चेयर हैं। साढ़े तीन वर्ष पूर्व जब मैं ताजिकिस्तान गया था, तो मुझे वहां पर गुरूदेव की प्रतिमा का लोकार्पण करने का भी सौभाग्य मिला था।

साथियों, ये भी बहुत कम ही होता है कि किसी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में दो देश के प्रधानमंत्री शामिल हों। ये गुरुदेव के प्रति अपनत्व था, उनके प्रति श्रद्धा थी, जो विश्वभारती के convocation में मेरे साथ बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना जी भी मौजूद थीं।

गुरुदेव की रचना 'आमार सोनार बांग्ला' बांग्लादेश की पहचान है, वहां का राष्ट्रगीत है। भारत और बांग्लादेश की इसी साझी सांस्कृतिक विरासत को छायानट ने और मजबूत किया है। छायानट के मानवतावादी और सांस्‍कृतिक मूल्य गुरुदेव की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। मैं उन्हें आज के सम्मान के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों, गुरुदेव की बात करते हुए मैं अकसर गुजरात में बिताए उनके दिनों की भी चर्चा करता हूं। उनके भाई अहमदाबाद के कमिश्नर थे और अपने भाई के साथ रहते हुए उन्होंने कई कविताओं की रचना वहां की थी। गुरुदेव की रचना जन-गण-मन की जो भावना है, उसको एक भारत, श्रेष्ठ भारत के प्रणेता सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सशक्त किया।

मुझे खुशी है कि इन दोनों महानायकों को आज एक और कड़ी जोड़ रही है। राम सुतार आज गुरुदेव और सरदार साहब के बीच के सेतु बने हैं। सुतार जी ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के माध्यम से देश को गौरवान्वित किया है। राष्ट्रीय एकता की भावना को सशक्त करने में भारतीयों में गौरव का भाव और मजबूत करने वाले सुतार को मैं टैगोर पुरस्कार के लिए फिर से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। और अभी मैंने उनके भाषण में सुना है, आयु तो 93 को पार कर गई है, लेकिन उनके भाषण का मूलमंत्र यही था-अभी मुझे बहुत कुछ करना बाकी है। यह हर युवा को प्रेरणा देने वाली बात है।

साथियों, गुरुदेव का कृतित्व और उनका संदेश समय, काल और परिस्थिति से परे है। मानवता की रक्षा के प्रति उनके आग्रह को आज और मजबूत करने की आवश्यकता है। आज दुनिया में जिस तरह की चुनौतियां हैं, उसमें गुरुदेव को पढ़ा जाना, उनसे सीखा जाना, और अधिक प्रासंगिक हैं।

मैं गुरुदेव की पंक्तियों से अपनी बात को विराम दूंगा-

गुरूदेव ने लिखा है -

''I slept and dreamt that life was joy.

I awoke and saw that life was service.

I acted and behold, service was joy.

यानी

''मैं सोया और स्‍वप्‍न देखा कि जीवन आनंद है।

मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है।

मैंने सेवा की और पाया कि सेवा ही आनंद है।''

हम सभी सेवा का ये भाव यूं ही बनाए रखें, देश की संस्कृति को और समृद्ध करने के लिए कार्य करते रहें, इसी कामना के साथ एक बार फिर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

राष्‍ट्रपति जी का मैं धन्‍यवाद करता हूं कि उन्‍होंने समय निकाला और इस प्रसंग की शेाभा अनेक गुणा बढ़ाई है। भाई महेश शर्मा जी का भी मैं अभिनंदन करता हूं कि उनके विभाग ने बहुत ही बखूबी इस एक award के माध्‍यम से उन भावनाओं को जोड़ने का बखूबी प्रयास किया है।

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