आज ही के दिन 1905 को बंगभंग के प्रस्ताव को भारतीय सचिव ने दी थी मंजूरी

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प्रबल सार्वजनिक विरोध के बावजूद 1905 को आज ही के दिन पहले बंगभंग के प्रस्ताव पर भारत सचिव का ठप्पा लग गया था। इस अवसर पर हिंदुओं और मुसलमानों को यह कहकर लड़ाने की चेष्टा की गई कि इस विभाजन से मुसलमानों को फायदा है, क्योंकि पूर्ववंग और आसाम में उन्हीं का बहुमत रहेगा। हालांकि सबसे पहले ढाका के नवाब ने इसका विरोध किया था, लेकिन जब बंगभंग हो गया था तो वे उसके पक्ष में हो गये थे। सर जोजेफ बैमफील्ड फुलर पूर्ववंग और आसाम के नए लेफ्टिनैंट गवर्नर नियुक्त हुए थे।

जानकारों की मानें तो बंगभंग का उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा नहीं, बल्कि हिंदू-मुसलमान को लड़ाना और जागृत हो रहे बंगाल को चोट पहुंचाना था। माना जाता है कि यहीं से पाकिस्तान का बीजारोपण हुआ था, क्योंकि मुस्लिम लीग के 1906 के अधिवेशन में जो प्रस्ताव पास हुए थे उनमें से एक यह भी था कि बंगभंग मुसलमानों के लिए अच्छा है और जो लोग इसके विरुद्ध आंदोलन करते हैं, वे गलत काम करते हैं और वे मुसलमानों को नुक्सान पहुंचाते हैं। बाद में लीग के 1908 के अधिवेशन में भी यह प्रस्ताव पारित हुआ कि कांग्रेस ने वंगभंग के विरोध का जो प्रस्ताव रखा है, वह स्वीकृति के योग्य नहीं। सबसे पहले 1903 में बंगाल के विभाजन की बात उठी थी और चिट्टागांग तथा ढाका और मैमनसिंह के जिलों को बंगाल से अलग कर असम प्रान्त में मिलाने के अतिरिक्त प्रस्ताव भी रखे गए थे।

अंग्रेज सरकार ने आधिकारिक तौर पर 1904 की जनवरी में यह विचार प्रकाशित किया और फरवरी में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के पूर्वी जिलों में विभाजन पर जनता की राय का आकलन करने के लिए आधिकारिक दौरे किये थे और विभाजन पर सरकार के रुख को समझाने का प्रयास किया था। तत्कालीन आसाम के चीफ कमिश्नर हेनरी जॉन स्टेडमैन कॉटन ने इस विचार का विरोध भी किया था। 1905 में 16 अक्टूबर को भारत के तत्कालीन वॉयसराय लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया था। उस समय हिंदू और मुस्लिम दोनो ही ने विभाजन का विरोध किया था। यहाँ तक कि पश्चिम बंगाल के नये प्रांत के राज्यपाल की हत्या का प्रयास भी शामिल था।

सारे विरोधों को दरकिनार करते हुए बंगभंग हुआ और नये प्रान्त का नाम क्रमशः पूर्वी बंगाल और आसाम था, जिसमें पूर्वी बंगाल की राजधानी ढाका और आसाम का अधीनस्थ मुख्यालय चिट्टागांग था। इसका क्षेत्रफल 106,540 वर्ग मील (275,940 कि॰मी2) था और जनसंख्या तीन करोड़ दस लाख थी, जिसमे एक करोड़ अस्सी लाख मुस्लिम और एक करोड़ बीस लाख हिन्दू थे। हालांकि ये विभाजन बमुश्किल आधे दशक तक चल पाया था, लेकिन इसके बाद से राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं और मुसलमानों के लिए दो स्वतंत्र राज्यों के निर्माण की माँग उठने लगी थी और अधिकांश बंगाली हिन्दू अब हिंदू बहुमत क्षेत्र और मुस्लिम बहुमत क्षेत्र के आधार पर होने वाले बंगाल के बंटवारे का पक्ष लेने लगे थे। मुस्लिम अब पूरे प्रान्त को मुस्लिम राज्य पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे। 1947 को बंगाल में इस बार धार्मिक आधार पर विभाजन हुआ और यह पूर्वी पाकिस्तान बन गया था, लेकिन 1971 में पश्चिमी पाकिस्तानी सैन्य शासन के साथ एक सफल मुक्ति युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश नाम का स्वतंत्र राज्य बन गया था।

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