भाजपा नेताओं की बंपर एंट्री कराकर गलती तो नहीं कर रहे अखिलेश

भाजपा नेताओं की बंपर एंट्री कराकर गलती तो नहीं कर रहे अखिलेश

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले जिस प्रकार भाजपा के नेताओं की समाजवादी पार्टी में धड़ाधड़ एंट्री हो रही है, उसके चलते राजनीति के जानकारों को उत्तर प्रदेश में भी पश्चिम बंगाल जैसे हालात होते दिख रहे हैं। इस बाबत उनकी ओर से दी जा रही दलील भी शत-प्रतिशत फिट बैठ रही है, क्योंकि भाजपा ने भी टीएमसी एवं अन्य पार्टियों के नेताओं की पश्चिम बंगाल में धड़ाधड़ एंट्री कर इसी तरह अपने पक्ष में माहौल बनाया था। लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो भाजपा का यह माहौल दूर तक भी नजर नहीं आया।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य के अब भाजपा छोड़ने के बाद समाजवादी पार्टी में जाने की चर्चाएं तेजी के साथ राजनैतिक क्षेत्रों में दौड़ रही है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी स्वामी प्रसाद मौर्य की सपा में एंट्री को अगड़ा बनाम पिछड़ा के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य के कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ने के बाद सपा मुखिया ने मेला होबे लिखते हुए कुछ अन्य नेताओं के बीच सपा में स्वागत की बात कही है। शायद सपा मुखिया के इसी विश्वास के चलते बुधवार को योगी सरकार में वन, पर्यावरण एवं जंतु उद्यान मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी अपना इस्तीफा दे दिया है। उनके इस संदेश से साफ है कि सपा मुखिया भाजपा से आने वाले नेताओं को अपनी पार्टी के भीतर लेने के लिए पलक पावडे बिछाए बैठे हैं। भाजपा नेताओं की सपा में एंट्री को वह एक बड़ी बढ़त के तौर पर चुनाव से पहले प्रचारित करना चाहते हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजे आने तक इस प्रकार की बातें अफसाना ही कही जा सकती हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश की अलझ पलझ राजनीति की समझ रखने वाले कुछ लोगों का मानना है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव भाजपा से आए नेताओं की ताबड़तोड़ एंट्री अपने दल के भीतर कराकर पश्चिम बंगाल में भाजपा जैसी गलती ही दोहरा रहे है। उनकी दलील है कि पश्चिम बंगाल के भीतर भी विधानसभा चुनाव से ऐन पहले भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी इसी प्रकार का बड़ा माहौल बनाया गया था। तृणमूल कांग्रेस से तकरीबन 140 नेताओं ने पलायन करते हुए भाजपा का दामन थामा था। यहां तक कि पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी समेत कई दिग्गज नेता त्यागपत्र की बयार में शामिल होते हुए भारतीय जनता पार्टी में दाखिल हुए थे। 35 विधायक ऐसे थे जो तृणमूल कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में आए थे। इसी के चलते भारतीय जनता पार्टी को पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के मुकाबले टक्कर में माना जाने लगा था। यह लेकिन जब विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए तो बड़ा अंतर सामने था। चुनाव नतीजों के बाद भाजपा में आए नेता जीत हासिल करने के बाद खुद टीएनसी में ही चले गए।




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