अनु जाति के समान लाभ के हकदार होंगे दिव्यांग

अनु जाति के समान लाभ के हकदार होंगे दिव्यांग

लखनऊ। विकलांगों को जहां एक ओर शारीरिक अक्षमता के के चलते जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं, वहीं दूसरी ओर समाज से अपेक्षानुरूप सहयोग नहीं मिल पाता। विकलांगों को दिव्यांग कहे जाने के बाद भी स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन परिलक्षित नहीं होता। ऐसे हालात में सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय ने दिव्यांगों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि दिव्यांग लोग भी सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और इस प्रकार वो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को दिए गए लाभों के समान योग्य हैं। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह पिता/ प्राकृतिक संरक्षक के माध्यम से अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी 2012 (131) क्त्श्र 583 मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में निर्धारित सिद्धांत का अनुसरण कर रही है।

ज्ञात हो याचिकाकर्ता, जो दिमागी रूप से 50 फीसदी की सीमा तक अक्षम है, उसने शारीरिक/मानसिक रूप से विकलांग छात्रों के लिए फाइन आर्ट में डिप्लोमा कोर्स के लिए आवेदन किया था। उसने कॉलेज द्वारा जारी प्रॉस्पेक्टस के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की, जिसमें कहा गया था कि शारीरिक रूप से विकलांग छात्रों और मानसिक/बौद्धिक रूप से विकलांग छात्रों के बीच कुल उपलब्ध सीटों का द्विभाजन होना चाहिए। उसने न्यायालय से यह भी प्रार्थना की कि बौद्धिक/मानसिक रूप से विकलांग छात्र को एप्टीट्यूड टेस्ट लेने से छूट दी जानी चाहिए। उच्च न्यायालय ने रिट याचिका खारिज कर दी। जब अपील पर अंतिम सुनवाई हुई तो अदालत को सूचित किया गया कि यह मामला निष्प्रभावी हो गया था क्योंकि दिव्यांगों के लिए आरक्षित सीट पहले ही किसी अन्य व्यक्ति को दे दी गई थी। पीठ में न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बीआर गवई भी शामिल थे।

न्याय पीठ के अनुसार, हमारा विचार है कि उच्च न्यायालय द्विभाजन पहलू पर सही है। इसके अलावा, उत्तीर्ण होने के लिए योग्यता परीक्षण के रूप में संबंधित है, उच्च न्यायालय यह कहने में सही है कि कोई छूट नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन हम पिता/प्राकृतिक संरक्षक के माध्यम से अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी 2012 (131) क्त्श्र 583, के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में दिए गए सिद्धांत का पालन कर रहे हैं, जिसमें उच्च न्यायालय ने सही ढंग से माना है कि दिव्यांग लोग भी सामाजिक रूप से पिछड़े हैं, और इसलिए, कम से कम,वो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के समान लाभ के हकदार हैं। प्रॉस्पेक्टस का सन्दर्भ देते हुए, न्यायालय ने कहा कि चूंकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को योग्यता परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए 35 प्रतिशत की आवश्यकता होती है, वही भविष्य में दिव्यांगों के मामले में लागू होगा।

पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को एक कोर्स बनाने की व्यवहार्यता की जांच करने का निर्देश दिया है जो दिव्यांग व्यक्तियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करे और साथ ही पेंटिंग और एप्लाइड आर्ट के अनुशासन में सीटों की संख्या को ऐसे छात्रों समायोजित करने की दृष्टि से बढ़ाए। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अनमोल भंडारी फैसला अनमोल भंडारी (सुप्रा) में, दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी प्रॉस्पेक्टस को चुनौती दी गई थी, जिसने एससी/एसटी से संबंधित उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम पात्रता आवश्यकताओं में 10 फीसदी अंकों की रियायत प्रदान की थी, लेकिन दिव्यांग लोगों के लिए केवल 5 फीसदी की छूट स्वीकार्य की।

जानकारी हो न्यायमूर्ति एके सीकरी (तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति राजीव सहाय की पीठ ने इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या कानून के तहत दो श्रेणियों के लिए अलग-अलग उपचार की अनुमति है या ये पीडब्लूडी श्रेणी के रूप में भेदभाव करने के समान है। विभिन्न रिपोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का सन्दर्भ देते हुए, न्यायालय ने कहा कि दिव्यांगों के लिए आरक्षण को क्षैतिज आरक्षण कहा जाता है, जो सभी सीधी श्रेणियों जैसे एससी, एसटी, ओबीसी और सामान्य में कटौती करता है। यह भी कहा गया- इसलिए, जो मान्यता प्राप्त थी कि चूंकि पीडब्ल्यूडी एससी/एसटी श्रेणियों से संबंधित है, अर्थात, सीधी श्रेणियों ने छूट का आनंद लिया जो एससी/एसटी श्रेणियों को प्रदान किया जाता है, जो दिव्यांग हैं, उन्हें समान लाभ/रियायत नहीं देने का कोई कारण नहीं है जिससे सामान्य श्रेणी या अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में उस प्रक्रिया के रूप में केवल सभी व्यक्तियों के बीच समानता आएगी, भले ही उनकी सीधी श्रेणियों के लिए असमानता हो। यह खुद को एक ही रियायत, अर्थात, पीडब्लूडी के लिए 10ः रियायत के साथ ही सभी श्रेणियों में औचित्य प्रदान करता है। इसे उन पीडब्ल्यूडी के लिए बढ़ाया गया है, जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं। सभी उपर्युक्त परिणाम यह प्रदर्शित करते हैं कि दिव्यांग लोग सामाजिक रूप से पिछड़े हैं, ये ज्यादा नहीं तो एससी/ एसटी श्रेणियों से संबंधित जितने और इसलिए संवैधानिक जनादेश के प्रति के अनुसार वे कम से कम एससी/ एसटी उम्मीदवारों को दी गई छूट के समान लाभ के हकदार हैं।

न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को प्रदान की गई 10 फीसदी छूट को देखते हुए पीडब्ल्यूडी उम्मीदवारों को अंकों में केवल 5 फीसदी रियायत देने का प्रावधान भेदभावपूर्ण है और पीडब्ल्यूडी उम्मीदवार भी उसी उपचार के हकदार हैं। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय दिशाबोधक है। यदि कार्यपालिका मानवीय संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनुपालन करे तो दिव्यांग समाज की मुख्यधारा में अहम स्थान बना सकते हैं।

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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